copyright. Powered by Blogger.

हिंदी की स्वर ध्वनियों से “ ऋ “ का लोप

>> Sunday, January 24, 2010






हिंदी भाषा के स्वरों की स्थिति इस प्रकार है ---


परंपरा से प्राप्त स्वर – अ , आ , इ , ई , उ , ऊ, ( ऋ ) ,ए , ऐ , ओ , औ .


आगत स्वर - ऑ .



उक्त स्वरों में मूल स्वर तो दस ही हैं. “ ऋ “ संस्कृत भाषा का स्वर हिंदी में प्रयोग किया जाता था . उच्चारण के स्तर पर अब ये समाप्त हो चुका है . इसका प्रयोग केवल तत्सम शब्दों (संस्कृत भाषा के शब्द ) के लेखन में किया जाता है . आज हिब्दी भाषा- भाषी “ ऋ “ का उच्चारण स्वर के रूप में न करके र ( यहाँ र पर हलंत आएगा जो टाइपिंग में नहीं आ रहा है ) र + इ के संयुक्त रूप ( रि के रूप ) में करते हैं





जहाँ एक स्वर था , अब इसका उच्चारण हिंदी में व्यंजन र + इ स्वर के मिले हुए रूप से हो गया है. . हम लिखते तो ऋषि , कृपा , मृग हैं परन्तु बोलते रिशी, क्रिपा , तथा म्रिग हैं .


यहाँ एक प्रश्न उठता है कि यदि हिंदी में “ ऋ “ स्वर का उच्चारण समाप्त हो गया है तो भी हम इसे वर्ण – माला में क्यों रखे हुए हैं ?


इसका प्रमुख कारण ये है कि भाषा विकास क्रम में ध्वनियों के उच्चारण में तो निरंतर परिवर्तन स्वत: ही होते रहते हैं परन्तु लेखन – व्यवस्था सम्बन्धी परिवर्तन स्वत: नहीं होते . जब कभी विद्वानों की कोई समिति बैठती है और विचार करती है तब वह कुछ परिवर्तन का सुझाव देती है . हिंदी की लिपि – वर्तनी में समय – समय पर अनेक बार इस तरह के सायास प्रयत्न होते रहे हैं . दूसरा लाभ है कि इन वर्णों को वर्ण – माला में रखने से शब्द का लिखित रूप देख कर उसका परंपरागत रूप पता चल जाता है , भले ही वह ध्वनि का उच्चारण न होता हो.


अत: आज हिंदी में “ऋ “ स्वर का प्रयोग तत्सम शब्दों के लेखन करते समय किया जाता है , जैसे ऋषि , मृग , गृह ,पृथा आदि .
आगत स्वर --- ऑ स्वर अंग्रेजी और अनेक यूरोपीय भाषाओँ के शब्द हिंदी भाषा में समाहित हो जाने से आया है....इसलिए इसे आगत स्वर कहते हैं . बहुत से अंग्रेजी भाषा के शब्द आज हिंदी के बन गए हैं जैसे – doctor , coffee , copy , shop , इन शब्दों की “o “ ध्वनि न तो हिंदी की ओ है और ना ही औ .इसका उच्चारण इन दोनों के मध्य में कहीं होता है . इस आगत ध्वनि के लिए “ ऑ “ वर्ण बना लिया गया है .मानक वर्तनी के अनुसार इन आगत शब्दों को ऑ स्वर से लिखा जाना चाहिए . जैसे



डाक्टर – डॉक्टर


कापी / कोपी – कॉपी


शोप / शाप – शॉप आदि


अनुनासिक स्वर ध्वनि –


जब स्वरों का उच्चारण करते समय वायु को मुख के साथ साथ नाक से भी बाहर निकाला जाता है तब वे स्वर अनुनासिक हो जाते हैं .अत: अनुनासिकता स्वरों का एक गुण है. हिंदी में सभी मूल स्वर अनुनासिक हो सकते हैं उदाहरण के तौर पर---


शब्द                     ध्वनि                                     

सवार                       अ                                          


सँवार                       अं   ( चन्द्र बिंदु)

सास                       आ


साँस                       आँ


आई                        ई

आईं                        ईं

पूछ                         उ 

पूँछ                         ऊँ 


 इस प्रकार हिंदी में अनुनासिक स्वर शब्दों का अर्थ परिवर्तन कर देते हैं...


उपर्युक्त जानकारी मानक हिंदी व्याकरण पुस्तक पर आधारित हैं ..


आप सब सुधिजन की टिप्पणियों का इंतज़ार है.

16 comments:

अपूर्व 1/24/2010 9:30 PM  

बहुत-बहुत धन्यवाद..बड़ी जरूरी और दुर्लभ जानकारी दी आप..आजकल आरंभिक कक्षाओं मे बच्चों को ’रि’ और ’ऋ’ या ’स’ और ’ष’ इत्यादि के उच्चारण संबंधी अंतर को नही बताया जाता है, तो बच्चे कहाँ से जानेंगे, बल्कि अक्सर तो हिंदी शिक्षक स्वयं इन्हे गंभीरता से नही लेते हैं. भाषा की समृद्धि बनाये रखने के लिये उच्चारणगत और वर्तनीगत बारीकियों को जानना आवश्यक है. ऐसे मे हम अज्ञानियों के लिये ऐसी पोस्ट्स बहुत ज्ञानवर्धक होती हैं, इसके लिये धन्यवाद
आगे भी ऐसी जानकारियों की अपेक्षा रहेगी.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao 1/24/2010 9:39 PM  

बहुत बढिया।

य, र, ल, व को अर्द्ध स्वर कहा गया है और इनकी संगति स्वरों से बैठती है जैसे : र - ऋ, ल - ळृ (सही टाइप नहीं कर पा रहा, एक वैदिक स्वर है)।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) 1/24/2010 9:41 PM  

बहुत अच्छी जानकारी प्रदान की आपने.... मैंने इसका प्रिंट आउट ले लिया है..... बहुत ज्ञानवर्धक लेख.... आभार.....

मनोज कुमार 1/24/2010 9:56 PM  

बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

shikha varshney 1/24/2010 10:18 PM  

दी मेरे जैसों के लिए तो आपका ये ब्लॉग क्लास रूम बनता जा रहा है ...बहुत उपयोगी है सच

अनामिका की सदायें ...... 1/24/2010 10:32 PM  

संगीता जी आज मुझे लगता है जैसे अब जाकर मुझे हिंदी का बेसिक ज्ञान मिल रहा है जिस से मैं अब तक अनभिग्य थी, सो आप समझ सकती है आप इस तरह के ज्ञान-वर्धक पोस्ट डाल कर मुझे और अन्य पाठक गणों को कितना कृतार्थ कर रही है. बस इतना ही कह सकती हु. चरण स्पर्श.

शोभना चौरे 1/24/2010 11:31 PM  

sangeetaji
bahut bhut dhnywad hindi keis prathmik aur mhtvpoorn jankari ke liye .

रावेंद्रकुमार रवि 1/24/2010 11:56 PM  

बहुत सराहनीय!
कोई माने या न माने,
पर हम तो मान सकते हैं!
यहाँ आकर मन प्रसन्न हो गया!

--
क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
--
संपादक : सरस पायस

रावेंद्रकुमार रवि 1/25/2010 12:17 AM  

"ताला क्यों लगा रखा है?
ज़रा देखिए -
कितना आसान है -- "

--
हिंदी भाषा के स्वरों की स्थिति इस प्रकार है ---
परंपरा से प्राप्त स्वर – अ , आ , इ , ई , उ , ऊ, ( ऋ ) ,ए , ऐ , ओ , औ .
आगत स्वर - ऑ .
उक्त स्वरों में मूल स्वर तो दस ही हैं. “ ऋ “ संस्कृत भाषा का स्वर हिंदी में प्रयोग किया जाता था . उच्चारण के स्तर पर अब ये समाप्त हो चुका है . इसका प्रयोग केवल तत्सम शब्दों (संस्कृत भाषा के शब्द ) के लेखन में किया जाता है . आज हिब्दी भाषा- भाषी “ ऋ “ का उच्चारण स्वर के रूप में न करके र ( यहाँ र पर हलंत आएगा जो टाइपिंग में नहीं आ रहा है ) र + इ के संयुक्त रूप ( रि के रूप ) में करते हैं!

Udan Tashtari 1/25/2010 1:41 AM  

बढ़िया जानकारी..

संगीता स्वरुप ( गीत ) 1/25/2010 9:58 AM  

आप सबका आभार.

रावेंद्रकुमार जी,
आपने तो सही में दिखा दिया कि ताला लगाना बेकार है....बहुत आसान है चोरी करना....पर ताला भी तो चोरों के लिए ही लगाया जाता है न....वरना वो चोरी क्या करेंगे? :):)
चोरी के लिए कुछ तो जानकारी और मेहनत कि ज़रूरत होगी न.
अब ये आसान कला मुझे भी सीखनी होगी हा हा हा हा ...शुक्रिया

rashmi ravija 1/25/2010 11:08 AM  

बहुत ही बढ़िया जानकारी दी,आपने...कई सारे बातें पता चलीं....ऐसे ही 'पते की बात' बताती रहा करें.

दिगम्बर नासवा 1/25/2010 2:27 PM  

अच्छी जानकारी दी है आपने ...... बहुत कुछ नया सीखने को मिल रहा है ......

पूनम श्रीवास्तव 1/25/2010 8:01 PM  

आदरणीया संगीता जी,
आप इतनी अच्छी जानकारियां दे रही हैं। यह भी हिन्दी भाषा की बड़ी सेवा है।
पूनम

मनोज कुमार 3/20/2011 3:34 PM  

हैप्पी होली।

Yashwant R. B. Mathur 1/26/2013 10:03 AM  


दिनांक 27/01/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!

-----------
'हो गया क्यों देश ऐसा' .........हलचल का रविवारीय विशेषांक.....रचनाकार....रूप चंद्र शास्त्री 'मयंक' जी

Post a Comment

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है...

आपकी टिप्पणियां नयी उर्जा प्रदान करती हैं...

आभार ...

हमारी वाणी

www.hamarivani.com

About This Blog

आगंतुक


ip address

  © Blogger template Snowy Winter by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP