जला दिया घर अपना
>> Friday, January 8, 2010
जला दिया घर अपना रिश्ते निबाहने में
फिर भी हमें बेवफा कहा जाने - अनजाने में .
वफ़ा है कि कहीं सरे बाज़ार नहीं बिकती
रिश्तों पर दांव खेल दिया हमें हराने में .
हैं हम घर से बेघर और सोचते हैं वो
कि सुकून मिल रहा है शायद आशियाने में .
चिंगारी लगा के वो देखते हैं तमाशा
जल गए हैं हाथ मेरे हवन कराने में .
रिश्तों की नीव को कुछ इस तरह हिलाया
कि हाथ छिल गए हैं उसे फिर से जमाने में .
मन के दरख़्त पर अब जम गयी हैं जड़ें
छाले पड़ गए हैं अब उन्हें हटाने में......
फिर भी हमें बेवफा कहा जाने - अनजाने में .
वफ़ा है कि कहीं सरे बाज़ार नहीं बिकती
रिश्तों पर दांव खेल दिया हमें हराने में .
हैं हम घर से बेघर और सोचते हैं वो
कि सुकून मिल रहा है शायद आशियाने में .
चिंगारी लगा के वो देखते हैं तमाशा
जल गए हैं हाथ मेरे हवन कराने में .
रिश्तों की नीव को कुछ इस तरह हिलाया
कि हाथ छिल गए हैं उसे फिर से जमाने में .
मन के दरख़्त पर अब जम गयी हैं जड़ें
छाले पड़ गए हैं अब उन्हें हटाने में......
19 comments:
बिलकुल सही कहा आपने.... रिश्ते निभाने के लिए कई बार हम खुद को ही जला देते हैं.... और मिलता कुछ नहीं....
सुंदर शब्दों के साथ ...बहुत सुंदर कविता .... दिल को छू गई.....
हर पँक्ति लाजवाब है सही मे आजकल रिश्ते स्वार्थी और बेमानी से हो गये हैं निभाने वाले को ही दुख उठाने पडते हैं इस सुन्दर रचना के लिये बधाई और शुभकामनायें
मन के दरख़्त पर अब जम गयी हैं जड़ें
छाले पड़ गए हैं अब उन्हें हटाने में......
bahut hi marmik abhivyakti.rishton ki aag mein sab kuch jal jata hai bas phir rakh hi bachti hai.
जमाने की बेदर्दी
इस सुन्दर रचना के लिये बधाई और शुभकामनायें
रिश्तों को निबाहने का जब इकतरफा प्रयास होता है..........
तो वक़्त से पहले थकान होती है ,
बहुत बढ़िया
सही लिखा है ...शुक्रिया इस को पढवाने के लिए
Bahut samvedit kar gaee aapakee ye rachana .
bahut hee acchee abhivykti .
kya baat kahi hai Di! ek ek shabd dil ke kareeb lagta hai...
मन के दरख़्त पर अब जम गयी हैं जड़ें
छाले पड़ गए हैं अब उन्हें हटाने में......
बहुत सुन्दर भाव
बेहतरीन
वाह ... क्या बात है
बहुत सुन्दर ...
बहुत सुन्दर गीत
अच्छा लगा पढ़कर
शुभ कामनाएं
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
क्रियेटिव मंच
बहुत सुंदर कविता .... दिल को छू गई.....
जला दिया घर अपना रिश्ते निबाहने में
फिर भी हमें बेवफा कहा जाने - अनजाने में .
logo ki taseer aisi hai
jo hatho me namak liye firte hai
jab bhi kari vafa..
be-wafayi k kaante diya karte hai.
वफ़ा है कि कहीं सरे बाज़ार नहीं बिकती
रिश्तों पर दांव खेल दिया हमें हराने में .
kash milti wafa to
unka ghar bhar dete
rishto ko vo kya samjhenge jo lagate hai daav harane me.
हैं हम घर से बेघर और सोचते हैं वो
कि सुकून मिल रहा है शायद आशियाने में .
unki socho ko ham rok nahi sakte
suku na mila ashiyane me
koi pucchhe ja ke unse
rahe.n kya ab kabr khane me.
चिंगारी लगा के वो देखते हैं तमाशा
जल गए हैं हाथ मेरे हवन कराने में .
shouk hai unhe bahut tamashe dekhne me
bas chale unka to hamko jala dale hawan karane me
रिश्तों की नीव को कुछ इस तरह हिलाया
कि हाथ छिल गए हैं उसे फिर से जमाने में .
kya umeed kare unse jo neeve hilate hai
tum jamate raho inko vo fir bhi na maanenge
मन के दरख़्त पर अब जम गयी हैं जड़ें
छाले पड़ गए हैं अब उन्हें हटाने में.....
rakho sambhal kar apni koshisho ko
unki to fitrat hai jado ko hilane me
संगीता जी , मुझे लगता है कि सिर्फ़ ये कह दूं कि बहुत ही खूब लिखा है और सच को सामने रख दिया है तो चलेगा न ...क्योंकि इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता इस बेहतरीन टुकडे के लिए ...आभार । लिखती रहें
वफ़ा है कि कहीं सरे बाज़ार नहीं बिकती
रिश्तों पर दांव खेल दिया हमें हराने में
bahut sundar...
bhavpoorn..
rishton par aapke sher sahi, sateek aur saarthak bane hain..
badhaii...
रिश्तों की नीव को कुछ इस तरह हिलाया
कि हाथ छिल गए हैं उसे फिर से जमाने में ...
किसी के सख़्त हाथों से जो रिश्ते बिगड़ जाते हैं ......... उन्हे संभालने में वक़्त तो लगता है ....
बहुत ही लाजवाब शेर हैं आपकी इस ग़ज़ल में .........
उम्र के एक मुकाम पर पहुँचने के बाद अतीत कि स्म्रतियां मुखर हो जाती है तब अहसास तीव्र हो जाते है |बहूत सुन्दर अभिव्यक्ति |
काबिलेतारीफ बेहतरीन
Sundar abhivyakti....duniyadari ki raah me khai har dhokar ka sundar shabdo aur bhavo ke sath bakhaan kiya hai aapne...aabhar!!
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