सुगबुगाती आहट
>> Tuesday, November 2, 2010
याद है ?
जब तुम लौटते थे
दफ्तर से घर
तुम्हारे आने से
पहले ही
तुम्हारी आहट
पहुँच जाती थी
मुझ तक ,
और मैं
उल्लसित हुयी
मिलती थी
घर की देहरी पर ,
तुम्हारी सुगंध से
जैसे गमक उठता था
सारा घर ,
और मुझे देख
तुम रह जाते थे
हतप्रभ से ,
पूछ बैठते थे कि-
तुम्हें कैसे पता चला ?
आज जब
देखती हूँ बच्चों को ,
आपाधापी भरी ज़िंदगी में
कब , कौन आया
पता ही नहीं चलता
खोये रहते हैं
सब अपने में .
पर आज भी
पहचानते हैं
हर आहट हम
एक दूसरे की,
रात को सोते हुए
किसने कितनी बार
करवट ली ,
कितनी बार किसकी
नींद खुली ,
बेचैन हो कर
कब कौन
कितना टहला
सबका हिसाब रहता है
कहते कुछ भी नहीं
एक दूसरे से हम
बस मौन ही मुखरित होता है
75 comments:
बहुत सुन्दर रचना है ... दरअसल साथ साथ रहते रहते एक ऐसा रिश्ता बन जाता है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है ...
iise hee kahte hai rug rug se wakif hona...........
insanke swayam ke hath me hai dooriya banana ya mimitana.......
door rahkar bhee paas rah sakta hai aur paas rah kar bhee door.........
karta dharta hum hee hai........
aisee meree soch hai........
bhn ji apne apni is kvita ke zriye aek achchi grhni achchi jivnsngini ki smjh or sikh sbko jis andaz men di he agr yeh sikh meri sari bhne maatayen antiyaa or khud meri ptni lele to bhnji yqin he ke mera yeh desh or duniyaa svrg men bdl jaye or bs yhaan pyar hi pyar ho. akhtar khan akela kota rajsthan
यह समय होता है एक दुसरे के ख्याल रखने का।
बाकी समय तो युं ही कट जाता है।
सुंदर शब्दों में जज्बातों को आपने पिरोया है।
आभार
सारी ज़िन्दगी उतार कर रख दी यहाँ आपने…………यही तो होता है ना एक मोड पर आकर ……………।उम्दा अभिव्यक्ति।
जब शब्द पंगु हो जाते हैं तो मौन का ही सहारा लेना पड़ता है,...बहुत भावमयी रचना।
समय पीछे छूट जाता है और भावनाएं नए रूप में सामने आ खडी होती हैं। कभी बेहद करीब रिश्ते भी समय के साथ कब बेगाने बन जाते हैं पता नहीं चलता। अच्छी रचना, बधाई।
जैसे छोटे पौधे को देख रेख की जरूरत होती है, पर जब विकसित हो कर वो पेड़ बन जाता है, तो अपने आप ही जड़ों से पानी खींच लेता है... थोड़े फलसफाई अंदाज़ में यही बात रिश्तों पर भी लागू होती है, इतना विकसित हो चूका है की अब बिना देख रेख देखभाल के भी अपने आप आगे बढता रहता है ....
बहुत अच्छे, लिखते रहिये .....
दीदी,
अन्तरमन के भाव मुखारित हुए।
ऐसा लिखती हैं आप भाव हिलोरे लेने लगते है।
आभार
6/10
यथार्थमय सुन्दर पोस्ट
रिश्तों के उलझाव भरे दौर की अच्छी नब्ज टटोली है ...कविता के साथ चित्र भी बहुत सुन्दर लगाया है.
ये आहट वाकई सुगबुगाती है दी! जाने क्या क्या कह जाती है होले से आपकी कविता.
आपके कविता खजाने में एक और मोती आ गया है.
बहुत सुन्दर.
(सौरी ! एक शब्द गलत टाइप हो गया था इसलिए दुबारा किया है कमेन्ट :))
कुछ ना कह के भी सब कुछ कह डालती है आपकी कविता , मौन मुखरित हो उठता है और यथार्थ प्रफुल्लित , उत्कृष्ट कविता .
Shayad ye sixth sense ab hum insaano ko nahi deta..ye hamari maa ki generation tak seemit ho k reh gaya h.. sundar aur vicharsheel kavita
शायद इसे ही प्रेम कहा जाता है।
पर आज भी
पहचानते हैं
हर आहट हम
एक दूसरे की,
रात को सोते हुए
किसने कितनी बार
करवट ली ,
कितनी बार किसकी
नींद खुली ,
बेचैन हो कर
कब कौन
कितना टहला
सबका हिसाब रहता है
कहते कुछ भी नहीं
एक दूसरे से हम
बस मौन ही मुखरित होता है
......
hum waqt ko jeete the, rishton ko jeete the , to sabkuch yun hi hota tha . aaj bhi kuch log hain per bheed me gum hain
वाह... कितनी खूबसूरती से जज्बातोँ को उकेरा आपने दी। उत्कृष्ट, भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार।
सबका हिसाब रहता है
कहते कुछ भी नहीं
एक दूसरे से हम
बस मौन ही मुखरित होता है
बड़ी सुन्दरता से आज और कल की परिस्थितियाँ बयान की हैं....आज सब एकाकी से हो रहें हैं....खुद में ही लिप्त...प्यारी सी कविता है.
bahoot hi sundarata ke sath ehsason ko appne kagaj par utara.....very nice.
बहुत ही बेहतरीन रचना है...उस्ताद जी ने लगता है थोड़ी कंजूसी कर दी...
खैर उनसे हमें क्या लेना देना.... मुझे तो बहुत अच्छी लगी , दो बार पढ़ी मैंने....वाह.....
इधर भी आयें..आपका इंतज़ार है...
कभी कभी....
नींद खुली ,
बेचैन हो कर
कब कौन
कितना टहला
सबका हिसाब रहता है
कहते कुछ भी नहीं
एक दूसरे से हम
बस मौन ही मुखरित होता है
....maun mein bhi to aadmi maun kahan rahta hai.. kuch na kuch umadta ghumadta hai antarman mein....
bahut sundar bhavabhivyakti.. aabhar
संगीता दी,
आज आपकी कविता पर प्रतिक्रिया के लिये शब्द ढूँढने निकला तो एक गाना मन में गूँज गया... कमाल अमरोहवी का गीतः
.
आप यूँ फ़ासलों से गुज़रते रहे
दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही.
आहटों के अंधेरे चमकते रहे
रात आती रही,रात जाती रही.
.
जब उसके सीने की धड़कनें अपने सीने में सुनाई देने लगे तब जो रिश्ता बनता है उसे प्रेम की पराकाष्ठा कहते हैं.
आपका बयान हमेशा की तरह प्यारा!!
आपकी रचना सोचने को बाध्य करती है कि जमाना इतना क्यों बदल गया है?
--
यह शायद पीढ़ी का अन्तर होगा या नवयुग की सोच!
--
आपाधापी और झंझावातों को लेकर लिखी हुई एक सुन्दर रचना!
आपको बधाई!
bahut bhavmayi rachna.maun ki bhasha ka sundar vishleshan.
आपाधापी भरी ज़िंदगी में
कब , कौन आया
पता ही नहीं चलता
खोये रहते हैं
सब अपने में .
आज इस विषय पर अब और कुछ न कह पाऊंगा, मुझे तो यह शे’र याद आ गया,
आता है कौन वक़्त पर किससे दुआ करें,
अच्छा है अपने मर्ज़ की ख़ुद ही दबा करें।
मेरा ख़्याल और है, उसका ख़्याल और,
हर इक को अख़्तियार है, किसको मना करें।
Nihayat khoobsoorat rachana! Aise hee pragaadh rishte ban jate hain!
सुंदर शब्दों में जज्बातोँ को उकेरा......बेहतरीन रचना
सबका हिसाब रहता है
कहते कुछ भी नहीं
एक दूसरे से हम
बस मौन ही मुखरित होता है
जो काम बरसों से जुबान और चेहरे के भाव कर रहे थे आज मौन कर रहा है...बदला तो कुछ भी नहीं है बल्कि भावों ने गहराई ली है...मतलब खामोशियों ने अपने मौन से बहुत कुछ कह दिया है...और ये ही बात आपसी समझ बन चुकी है...तब, कहाँ जरुरत रह जाती है शब्दों की ?
सुंदर प्रभाव छोडती रचना.
बधाई.
रात को सोते हुए
किसने कितनी बार
करवट ली ,
कितनी बार किसकी
नींद खुली ,
बेचैन हो कर
कब कौन
कितना टहला
सबका हिसाब रहता है
कहते कुछ भी नहीं
एक दूसरे से हम
बस मौन ही मुखरित होता है
उत्कृष्ट, भावपूर्ण रचना सुन्दर अभिव्यक्ति
प्यार क्या हे यह मुझे नही पता, क्योकि हर कोई अलग अलग कहता हे, लेकिन आप की इस कविता मे मुझे प्यार का रस मिला, जेसे आप ने यह कविता हमारे दोनो के लिये लिखी हो, धन्यवाद इस अति सुंदर कविता के लिये
कहते है दर्द और खुबसूरत अहसासों का यह रिश्ता जब वह मक़ाम हासिल कर ले की एक दुसरे की मन की बात कहने सुनाने के लिए किसी को भी शब्दों की ज़रूरत न हो ...तभी जानिये इसे ईमानदारी से जिया है हमने !!
भावनाओं के शिखर पर यह सफल मक़ाम आपको बहुत बहुत मुबारक हो ....हमेशा ही की तरह लाजवाब पेशकश ...आभार !
दैनिक साधारण अनुभवों को शब्दांकित करती अच्छी कविता.
बहुत ही भाव प्रवण रचना...बधाई
एक दूसरे से हम
बस मौन ही मुखरित होता है
मौन शायद और सशक्त सम्प्रेषण का माध्यम है
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
ऐसा ही होता है - शब्द मौन हो जाते हैं !
सच कहा!!
अति सुन्दर!!
कितनी अच्छी और सच्ची बातें कितनी सहजता से कह जाती हैं आप ! बहुत सुन्दर रचना ! उम्र के एक मुकाम पर आकर कुछ कहे बिना ही सब कुछ सुनने समझ लेने की क्षमता शायद खुद ब खुद विकसित हो जाती है ! यह शायद साथ में बिताये पलों को बहुत भावना, ईमानदारी और सम्पूर्ण समर्पण के साथ जीने की वजह से संभव हो पाता है ! क्या आज की बेहद फास्ट लाइफ में कोई एक दूसरे को इतना समय दे पाता है कि इतनी अंतरंगता विकसित हो सके ?
बहुत ही शानदार रचना ! बधाई स्वीकार करें !
वापस आने की राह सब देखते हैं, अपनों की। लौटने का आकर्षण उसी में छिपा है संभवतः।
बहुत अच्छी रचना है...एक संदेश दे रही है.
"मुखरित मौन" बड़ी सहजता से अपनी भावनाएं व्यक्त कर जाता है. बिलकुल आपकी इस कविता की तरह. बहुत खुबसूरत रचना दीदी. बढ़िया पोस्ट और धनतेरस की हार्दिक बधाई.
kai bar maun shabd se bahri ho jata he, aap kahe na kahe lekin saamne wale ko pata chal jata he!
bhavnao aur ehsaason ki prakashtha he aapki is rachna me,'
bahut andar tak chhu gayi Di appki ye rachna!
बहुत ही सुन्दर एवं भावमय प्रस्तुति ।
,
हमारी जीवनचर्या और आज के बच्चों की जीवनचर्या में भी पीढ़ी का अन्तराल आ चुका है और तब हम इस जीवन को धर्म समझ कर निभाते रहे , आज धर्म नहीं बराबरी का हक़ है और उसमें दोनों बराबर के साझीदार हैं, पहले से अच्छा है किन्तु वो वक्त जो हमने जिया वो उनके पास नहीं है.
कमाल की अभिव्यक्ति, पढ़ते पढ़ते मंत्रमुग्ध हो गया, बहुत सुन्दर, बेहतरीन, लाजवाब!
दीपावली की ढेर सारी शुभकामना!
बहुत सुन्दर, बेहतरीन, लाजवाब!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं ...
बदलाव की अच्छी सुध ली !
बदलाव तो आए ही है और आगे भी आते रहेंगे!...सामंज्स्य तो हमने बैठाना है...यही जीवन है!..बहुत गह्न विषय चुना है आपने संगीता जी, बधाई!
मुखरित स्वर मौन के...और इस पर क्या कहूँ?
याद है ?
जब तुम लौटते थे
दफ्तर से घर
तुम्हारे आने से
पहले ही
तुम्हारी आहट
पहुँच जाती थी
मुझ तक ,
और मैं
उल्लसित हुयी
मिलती थी
घर की देहरी पर ,
तुम्हारी सुगंध से
जैसे गमक उठता था
सारा घर ,
बहुत सुन्दर रचना है...
खामोशी दिल में बसे अपनों के आहटों की आवाज तक बिना कुछ कहे पहचान जाती है तो शब्द तो उस खूबसूरत संसार में कुछ भी कहते कहते निशब्द हो जाते हैं. रेगिस्तान बनते जीवनों में "ओएसिस" की मौजूदगी दर्शाती, कोमल, मृदुल भावों से परिपूर्ण सुंदर प्रस्तुति. आभार.
सादर
डोरोथी.
प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।
--
आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!
आपकी एक पुरानी रचना मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित की गयी है , जरूर आएँ और इसका जिक्र अपने ब्लॉग पर भी कर सकती हैं...
सुनहरी यादें :-३ ...
मौन का ही मुखरित होते रहना भी एक गनीमत समझिये -कभी तो मुखरता ही मौन हो जाती है और कभी तो सदा के लिए !
कितने सुन्दर शब्दों मे आज और कल का अन्तर समझा दिया। सुन्दर रचना बधाईअपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
लाजवाब !!! बहुत सुंदर लिखती हैं आप !!!
ज्योतिपर्व की मंगल कामनाएँ !!!
दीवाली के शुभ अवसर पर हार्दिक ढेरो शुभकामनाये और बधाई .
संगीता जी, अहसास जगा दिए आपने। बहुत खूबसूरत उद्गार हैं। बधाई स्वीकार करें।
मानव की विषमता से उलझती जीवन की डोर की व्यथा..बहुत खूब कही आपने..!!
दिवाली की शुभकामनायें... सादर
दीपावली के इस शुभ बेला में माता महालक्ष्मी आप पर कृपा करें और आपके सुख-समृद्धि-धन-धान्य-मान-सम्मान में वृद्धि प्रदान करें!
मेरे पिताजी की ओर से आपको सपरिवार बहुत बहुत आशीष.
इस ज्योति पर्व का उजास
जगमगाता रहे आप में जीवन भर
दीपमालिका की अनगिन पांती
आलोकित करे पथ आपका पल पल
मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
सुख समृद्धि शांति उल्लास की
आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर
आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
चिरागों से चिरागों में रोशनी भर दो,
हरेक के जीवन में हंसी-ख़ुशी भर दो।
अबके दीवाली पर हो रौशन जहां सारा
प्रेम-सद्भाव से सबकी ज़िन्दगी भर दो॥
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
सादर,
मनोज कुमार
बहुत सुन्दर रचना है ...
दीवाली के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामनाये और बधाई .....
किसने कितनी बार
करवट ली ,
कितनी बार किसकी
नींद खुली ,
बेचैन हो कर
कब कौन
कितना टहला
संगीता जी बस मौन हूँ .....
एक गहरी वेदना है और एक लम्बी सांस ......!!
आज का विदुप किन्तु कटु सत्य . सुन्दर रचना . आपको शुभकामनायें ................
दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ...
दिवाली की शुभकामनायें... सादर
गजब, बहुत ही शानदार अभिब्यक्ति प्रस्तुत की है आपने। मेरे साथ भी ऐसा होता है लेकिन आपके नजरिये से कभी सोचा नहीं. कमाल की अमुभूति है आपकी। बधाई, धन्यबाद।
"मौन ही मुखरित होता है"
भावमयी रचना, यही जीवन है और यही सत्य भी समर्पित जीवन जीने वालों का .
Lovely write.
इस सुन्दर रचना के लिए मेरे पास कोई सशब्द नहीं..बस मौन ही मुखरित है.. बहुत्त्त्त्त्त सुन्दर ..
बहोत ही सुन्दर रचना ......
तारीफ करना मुश्किल सा लग रहा है......
maine kal bhi ye padhi thi aur parso bhi
aur aaj phir se padha ..
kya kahun aapne itni acchi kavita likhi hai ki mere paas shabd nahi hai aapki taareef ke liye .
aapko naman
vijay
bemisal.behad achchi lagi.
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