छायादार वृक्ष
>> Tuesday, November 23, 2010
ज़िंदगी की राह में
ऐसा तो नहीं कि
एकांत है -
इच्छाओं की गाड़ियां
स्वार्थ का धुआँ उड़ाती
निकलती जाती हैं सरपट
आस-पास के लोंग
एक भीड़ के मानिंद
भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
भीड़ कोई रिश्ता नहीं देती
भीड़ में कोई अपना नहीं लगता
और एकांत न होते हुए भी
अकेलापन पसर जाता है
ज़िंदगी की राह में ..
किनारे पर खड़े
छायादार वृक्ष भी
अपनी उपस्थिति तो
दर्ज़ कराते हैं
पर साबित होते हैं बस
मील के पत्थर की तरह .
मैं भी तो बस
किनारे पर खड़ा
एक छायादार वृक्ष ही हूँ ......
75 comments:
जीवन की राह में मिला एक छायादार वृक्ष अपने में कई कहानिया समेत के रखता है. जरूरत है उससे वो कहानिया पूछने की...
हर किसी के जिंदगी में ऐसी वृक्षों की जरूरत है....
सफ़र में जो पेड़ दीखते हैं उनमे से वो पेड़ ज्यादा देर तक दीखते हैं जो दूर होते हैं और घुमते हुए से प्रतीत होते हैं....
चेतन जगत में जड़ चीजों की अच्छी प्रस्तुति....
राजेश
insaan sab kuch ho jata है par meel का patthar ban na hi mushkil hota है ... chaaya dena सबसे mushkil kaam है .. gahre jajbaat हैं is रचना mein ...
नवीन बिम्बों के साथ गहन चिंतन को समेटती एक बहुत ही सार्थक और सशक्त रचना ! स्वयं का एक छायादार वृक्ष की तरह होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है ! बधाई !
नवीन बिम्बों के साथ गहन चिंतन को समेटती एक बहुत ही सार्थक और सशक्त रचना ! स्वयं का एक छायादार वृक्ष की तरह होना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है ! बधाई !
वृक्ष को प्रतीक बनाकर बहुत अच्छी रचना हुई है संगीता जी.
manviy sambandhon evam samvednaon ki jadta ka chitrankan kartiaapki rachna sarahniy hai.
hardik shubhkamna.
जब परिस्थितियाँ आग उगलती हैं तो यही छायादार वृक्ष
जीने का , चलने का आधार बनते हैं
भीड़ से बौखलाया मन
इसी छाया में कुछ कह पाता है
मील का पत्थर होना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।
आप केवल एक छायादार वृक्ष ही नहीं फलदार वृक्ष भी हो . आप ऐसे बिम्बों को कहा से महसूस करती है और कलम बद्ध करती है , हमे तो इर्ष्या होने लगती है . अति सुन्दर अभिव्यक्ति
काफी गहरा चिन्तन हैँ। छायादार , फलदार और मील का पत्थर होना तो खुशनसीबी हैँ दी। बहुत- बहुत शुभकामनायेँ!
जीवन के आपा धापी में अक्सर छूट जाते हैं वो मुकाम जहाँ हमें मिलता है सुकून ...
बहुत सुन्दर रचना !
छायादार वृक्ष के बिम्ब से प्रस्तुत बेहतरीन पंक्तियाँ.... उम्दा रचना
मैं भी तो बस
किनारे पर खड़ा
एक छायादार वृक्ष ही हूँ ......
छायादार वृक्ष के माध्यम से बेहद गहन और सघन बात कह दी …………काश सभी छायादार वृक्ष बन पायें……………सुन्दर और सार्थक रचना।
आज के भौतिकता वादी और आर्थिक युग में ऐसे ही लगता है कि भीड़ में अकेले हैं। स्वयं का दूर खड़ा एक पेड़ ही पाते हैं। छायादार पेड़। क्योंकि हम सबको देना चाहते हैं, अपनी छांव से दुनिया में शीतलता लाना चाहते हैं। बस राहगीर छाया में कुछ देर सुस्ताता है और चल देता है। यही उपलब्धि है उस पेड की। बहुत ही सार्थक रचना। बधाई।
छायादार वृक्ष होने का सन्तोष अपरिमित है।
छायादार पेड़ के बिंब के द्वारा जिंदगी के तपते रेगिस्तानों में "ओएसिस" की मौजूदगी को दर्शाया गया है और छायादार पेड़ में तब्दील होना अपने आप में एक बहुत बड़ी आशीष. ऐसी बातों के माध्यम से जिदगी को समझने का नया परिपेक्ष्य देती एक असाधारण प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
भीड़ कोई रिश्ता नहीं देती
भीड़ में कोई अपना नहीं लगता
और एकांत न होते हुए भी
अकेलापन पसर जाता है
ज़िंदगी की राह में ..
ati suMdar kalapanaa...bahut badhhiyaa!
बड़ी हरियाली ली हुई रचना....
दी! आज के आपाधापी युग में एक छायादार वृक्ष बनाने की चाह ही अगर हो तो वही बहुत है,वर्ना आजकल तो लगता है कि फल वाले वृक्ष भी अपना फल नहीं देना चाहते .
बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति.
bhavapoorn rachana abhivyakti...abhaar
भीड़ निकलती है और गुजर जाती है वहाँ कोई किसी को नहीं जानता और उनकी अपनी कोई पहचान होती है लेकिन एक छायादार पेड़ - उसकी अपनी पहचान होती है , मील का पत्थर भी अपनी एक पहचान रखता है. बिना पहचान भीड़ मेंगुम हो जाने से पेड़ और पत्थर बन कर किसी को छाया या दिशा देना अधिक सार्थक है.
बहुत गंभीर बात कही आपने.
5.5/10
रचना पढना सुखद है.
भीड़ में है आदमी कि आदमी में भीड़ है.
इसी भीड़ से बचने और एक अदद छाँव की चाह में अक्सर जिन्दगी निकल जाती है.
bahut sunder rachna.... ruk kar aatmchintan karne ko uksati rachna.
yahi bahut hai masi.. Ek chayadaar vriksh hona apne mein ek uplabdhi hai. Sundar rachna badhai
सुन्दर,
कल्पवृक्ष सम!!
वाह...क्या बात कह दी !!!
मन में उतर गयी रचना...
मर्मस्पर्शी बहुत बहुत सुन्दर रचना...
गंभीरता और सादगी..ऐसा बेजोड़ मिलन..आपके आँगन में ही मिलता है..!!
सादर नमन..!!
भीड़ में कोई अपना नहीं लगता
और एकांत न होते हुए भी
अकेलापन पसर जाता है
ज़िंदगी की राह में ..
जिन्दगी की कश्मोकाश को दर्शाने के लिए सुंदर शब्दों का प्रयोग कर एक सशक्त रचना का सृजन किया है.
छायादार वृक्ष भी ......
पर साबित होते हैं बस
मील के पत्थर की तरह .
मैं भी तो बस .....एक छायादार वृक्ष ही हूँ ...
लेकिन अंततः जिंदगी कैसे भी उतार चढ़ाव में चलती हो है तो औरों के लिए एक छायादार वृक्ष ही ना...ये क्या कम है जिंदगी की सफलता के लिए? एक मील का पत्थर बन पाना ही जिंदगी में पूर्णता को पा लेना है...और यही निचोड़ है.
बहुत ही सशक्त रचना.
एक बुज़ुर्ग हमारे समाज में एक छायादार वृक्ष की ही तरह हैं.. जो अनुभव की छाया देते हैं!!
मैं भी तो बस
किनारे पर खड़ा
एक छायादार वृक्ष ही हूँ ......
--
बहुत सही!
आज छायादार वृक्ष को सभी दरकिनार करने में लगे हुए हैं!
छायादार वृक्ष और मील का पत्थर ... इसके साथ बस क्यों!
यह तो बहुत बड़ी उपलब्धि है।
Sahi kaha Manoj ji ne.. at least in dis world whr every relation is based on "GIVE N TAKE"... u r givin sunthin widout expectin anything in returns..vaakai bahut badi uplabdhi h aapki.. badhai ho :)
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने वृक्ष को प्रतिक बनाकर! लाजवाब पंक्तियाँ! बेहतरीन प्रस्तुती!
छायादार वृक्ष होना अपने आप में एक उपलब्धि है .औरों को विश्राम प्रदान करना हरेक के बस की बात नहीं .
मनोहारी रचना !
भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
भीड़ कोई रिश्ता नहीं देती
भीड़ में कोई अपना नहीं लगता
brilliant....tooo good dadi...kya khoob likha hai aapne, bohot bohot khoobsurat....
किनारे पर खड़े
छायादार वृक्ष भी
अपनी उपस्थिति तो
दर्ज़ कराते हैं
पर साबित होते हैं बस
मील के पत्थर की तरह .
so true, and sooo touching...
मैं भी तो बस
किनारे पर खड़ा
एक छायादार वृक्ष ही हूँ ......
killer...!!! ye punch to bas solid hai...too good !!!
पथिक आते हैं , सुस्ताते हैं फिर अपनी राह पर चल पड़ते हैं ..
छायादार वृक्ष तनहा उदास रह जाता है...
इंसान और वृक्ष दोनों की ही पीड़ा की शानदार अभिव्यक्ति ...
आभार !
पथिक आते हैं , सुस्ताते हैं फिर अपनी राह पर चल पड़ते हैं ..
छायादार वृक्ष तनहा उदास रह जाता है...
इंसान और वृक्ष दोनों की ही पीड़ा की शानदार अभिव्यक्ति ...
आभार !
भीड़ में तनहाई का खूब बखान है सुन्दर बिम्ब के माध्यम से गहन प्रस्तुति .............आभार
पेड़ था साया था घर था आबाद
उठीं दीवारें पेड़ गिर जाने के बाद .
Nice पोस्ट .
चाँद है जेरे कदम और सूरज खिलौना हो गया
हां , मगर इन्सान का किरदार बौना हो गया .
हम एक छायादार वृक्ष बन सकें , यही काफी है । -अच्छी प्रस्तुति !
छायादार वृक्ष कई घटनाक्रमों का साक्षी है...
सुन्दर रचना!
behad sunder kalpana!!!
मैं भी तो बस
किनारे पर खड़ा
एक छायादार वृक्ष ही हूँ ...
बहुत ही सुन्दर एवं गहन भावों को समेटे यह छायादार वृक्ष ....।
इच्छाओं की गाड़ियां
स्वार्थ का धुआँ उड़ाती
निकलती जाती हैं सरपट
बहुत अच्छी लगी ये पँक्तियाँ। ज़िन्दगी रेल गाडी की तरह ही भागी जाती है लेकिन आदमी फिर भी तन्हा है। छायादार वृक्ष बनना भी आज के युग मे एक तप के समान है। आभार।
भीड़ में कोई अपना नहीं लगता
और एकांत न होते हुए भी
अकेलापन पसर जाता है
ज़िंदगी की राह में
एक मनोवैज्ञानिक सत्य को उद्घाटित करती पंक्तियां।
...बहुत प्रभावशाली कविता।
गहरे जज़्बात में डूबी रचना .... बहुत सुंदर प्रस्तुति ...
बहुत सुन्दर रचना.. मै एक छायादार वृक्ष हूँ मील के पत्थर की तरह ..और आसपास के भीड़ जिसका कोई चेहरा नहीं.......वाह उम्दा ..
मैं भी तो बस
किनारे पर खड़ा
एक छायादार वृक्ष ही हूँ ......
aapke issi khasiyat k ham mureed hain.......aap ek dum seedhe saadhe sabdo me bahut kuch kah dete ho......!!
simply superb!!
mujhe iss blog ka pata hi nahi tha Di!!
काश, इंसान भी वृक्षों की भांति सदा सहिष्णु बने रह पाते। बहुत भावपूर्ण रचना है। बधाई।
किनारे पर खड़े
छायादार वृक्ष भी
अपनी उपस्थिति तो
दर्ज़ कराते हैं
पर साबित होते हैं बस
मील के पत्थर की तरह .
bahut sukhad rachna hai
मन को छु लिया रचना ने...
खुबसूरत रचना... साधुवाद और नमन.
छायादार वृक्ष होना ,अपने आप में एक उपलब्धि है.पर छाया क्या स्वयं के लिए है ?
bahut acchi abhivyakti ji
kavita me bahut kuch aisa hai jo socne par majboor kar deta hai .
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
sangeeta ji
behad hi gahan bhao liye hue apne aap
me ek sashakt avam prabhao-purn prastuti------
आस-पास के लोंग
एक भीड़ के मानिंद
भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
भीड़ कोई रिश्ता नहीं देती
भीड़ में कोई अपना नहीं लगता
और एकांत न होते हुए भी
अकेलापन पसर जाता है
ज़िंदगी की राह में ..
poonam
जीवन-क्रम अविरल चलायमान रहता है। अंत में,उसी की निशानी रह जाती है,जो भीड़ से इतर अपनी पहचान बनाते हैं-खजूर-सी नहीं,छाएदार वृक्ष-सी।
बेहद प्रभावी एवं भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकार करें |
इच्छाओं की गाड़ियां
स्वार्थ का धुआँ उड़ाती
निकलती जाती हैं सरपट ....सुन्दर बिम्बों वाली बहुत प्रभावशाली कविता है।
आध्यात्मिक चिंतन
आभार दिशा बोथ के लिये
नेटकास्टिंग:प्रयोग
लाईव-नेटकास्टिंग
Editorials
bahut hi ache shabado me bahvpur rachana pesh ki hai aapne...bhadai
किनारे पे खड़े हो छाया देते रहना ....बड़ों का यही तो स्नेह है .....!!
मैं भी तो बस
किनारे पर खड़ा
एक छायादार वृक्ष ही हूँ ......
वृक्ष किनारे पर भी खड़ा होगा तो पथिक आ ही जाते हैं.
सार्थक और खूबसूरत रचना
बहुत ही शानदार रचना...एक छायादार वृक्ष को कोई कुछ नहीं देता पर वो सबको एक समान छाया प्रदान करता है...
वृक्ष और इंसान की पीड़ा उजागर करती सुन्दर रचना
गूढ अर्थ दर्शाती सुन्दर कविता ।
इस ब्लाग जगत में आपकी उपस्थिति भी किसी छायादार वृक्ष से कम नहीं ।
मेरे जैसे नये प्रयत्नकर्त्ता के ब्लाग पर आकर मेरा उत्साहवर्द्धन करने हेतु आपका आभार...
सुन्दर रचना !!
बहुत सुंदर रचना...
जीवन में छायादार होना ही इसकी संपूर्णता है.
सोचने को मजबूर करती इस खूबसूरत रचना के लिए बधाई !
behad achchi lagi.
He who plants a tree
Plants a hope.
"Plant a Tree"
भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
भीड़ कोई रिश्ता नहीं देती
भीड़ में कोई अपना नहीं लगता
बहुत ही गहरे भाव समेटे है यह कविता.
सादर
भीड़ में कोई अपना नहीं लगता
और एकांत न होते हुए भी
अकेलापन पसर जाता है
ज़िंदगी की राह में ..
बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..आज इंसान सच में भीड़ में भी अकेला है..बहुत सुन्दर
भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता
भीड़ कोई रिश्ता नहीं देती
अनुभूतियों से ही ऐसे सृजन सम्भव होते हैं.
कवि स्व.मुकीम भारती के शब्दों में
मैं दरख्त हूँ सूखा,हो सके तो पानी दो
आने वाले मौसम में रह गया तो फल दूंगा.
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