यादें.......बचपन की
>> Sunday, November 7, 2010
आज भाई- दूज के दिन एक पुरानी रचना आप सबके साथ बाँट रही हूँ ...वक्त के साथ जैसे सब छूटता चला जाता है ....
अक्सर अकेली स्याह रातों में
अपने आप से मिला करती हूँ
और अंधेरे सायों में
अपने आप से बात किया करती हूँ।
याद आते हैं वो
बचपन के दिन
जब भाई के साथ
गिल्ली - डंडा भी खेला था
भाई को चिढाना ,
उसे गुस्सा दिलाना
और फिर लड़ते - लड़ते
गुथ्थम - गुथ्था हो जाना
माँ का आ कर छुडाना
और डांट कर
अलग - अलग बैठाना
माँ के हटते ही
फिर हमारा एक हो जाना
एक दूसरे के बिना
जैसे वक्त नही कटता था
कितनी ही बातें
बस यूँ ही याद आती हैं ।
कैसे बीत जाता है वक्त
और रिश्ते भी बदल जाते हैं
माँ का अंचल भी
छूट जाता है
और हम ,
बड़े भी हो जाते हैं
पर कहीं मन में हमेशा
एक बच्चा बैठा रहता है
समय - समय पर वो
आवाज़ दिया करता है
उम्र बड़ी होती जाती है
पर मन पीछे धकेलता रहता है।
काश बीता वक्त एक बार
फिर ज़िन्दगी में आ जाए
माँ - पापा के साथ फिर से
हर रिश्ते में गरमाहट भर जाए.
58 comments:
गया वक्त कब वापस आता है सिर्फ़ यादें ही धरोहर बन जाती हैं……………बेहद खूबसूरत भाव्।
बहुत सुन्दर भावों से सजी बेहतरीन रचना !
बस युं ही स्मृतियाँ शेष रहती है मानस में जो संबंधों को टूटने नहीं देती। रुठे हुए भाई बहन कभी तो राजी होते हैं। संबंधों की गरमाहट हमें दूर नहीं होने देती।
सुंदर भाव-आभार
कैसे बीत जाता है वक्त
और रिश्ते भी बदल जाते हैं
माँ का अंचल भी
छूट जाता है
और हम ,
बड़े भी हो जाते हैं
पर कहीं मन में हमेशा
एक बच्चा बैठा रहता है
समय - समय पर वो
आवाज़ दिया करता है
उम्र बड़ी होती जाती है
पर मन पीछे धकेलता रहता है।
.....
kaisa hai ye jaal moh ka kaise pakke dhaage ....mann piche bhaage
afsos to yahi hai ki zindgi me beeta waqt vapas nahi aata.bachpan ki yad dila gayee kavita.bhav aise ki hriday bhavuk ho gaya.sunder.
बीता वक़्त कहाँ वापस आता है, उस कमबख्त की तो बस यादें ही आती है ...
लिखते रहिये ...
बचपन की मधुर स्मृतियों को आवाज़ देती रचना . काश ऐसा होता की वक्त ठहर जाता .
काश बीता वक्त एक बार
फिर ज़िन्दगी में आ जाए
माँ - पापा के साथ फिर से
हर रिश्ते में गरमाहट भर जाए.
Sach me! Kaash! Beeta waqt kuchh palon ke liye to laut aaye! Wahee to nahee ata! Na jane kyon,rachana padhke aankhen bheeg gayeen...
sngeeta di,
aapki rachna ne to bhouk kar diya hai .
sach ye rishto ka atuut -bandhan hi haijo hamesh hi apni yaado ke deep jalata rahta hai.
काश बीता वक्त एक बार
फिर ज़िन्दगी में आ जाए
माँ - पापा के साथ फिर से
हर रिश्ते में गरमाहट भर जाए.
bahut hi bhai,ati sundar
poonam
बचपन मधुर स्मृतियों से भरा एक सागर है, हर बार डुबकी लगाने में आनन्द आता है।
काश बीता वक्त एक बार
फिर ज़िन्दगी में आ जाए
माँ - पापा के साथ फिर से
हर रिश्ते में गरमाहट भर जाए.
--
बहुत ही भावमयी प्रस्तुति!
रचना कभी पुरानी नही होती!
वक़्त गुजर जाए तो कब वापस आये.
स्मृतियाँ हरदम संग रहें, मुस्कुराएँ.
भावनामयी लेखन के लिए बधाई दी.
काश बीता वक्त एक बार
फिर ज़िन्दगी में आ जाए
माँ - पापा के साथ फिर से
हर रिश्ते में गरमाहट भर जाए.
काश ......
स्मृतियों को सजाये एक बेहद सुंदर और मन को छूने वाली रचना ......
बीता वक्त वापस आता है, पर हमें फिर से, और फिर से, और फिर-फिर से बचपना जीना पड़ता है।
बहुत सुंदर रचना।
2/10
साहित्यिक दृष्टि से रचना का मूल्य कुछ भी नहीं है.
लेकिन भाव ऐसे हैं जो पाठक को स्वतः ही जोड़ते हैं.
कैसे बीत जाता है वक्त
और रिश्ते भी बदल जाते हैं
माँ का अंचल भी
छूट जाता है
और हम ,
बड़े भी हो जाते हैं
पर कहीं मन में हमेशा
एक बच्चा बैठा रहता है
संगीता जी, कितने प्यारे-दुलारे भाव का समावेश है इस रचना में...बधाई.
बचपन ही तो एक ऐसी बहुमूल्य धन है जो हमेशा खुशी, मुस्कराहट और गुदगुदाहट देता रहता है.
बहुत सुंदर शब्दों की माला में गूंथा है आपने अपने बचपन को जो सबको उनका बचपन याद दिला रहा है.
लेकिन जो छूट जाता है वो लाख कोशिश करो वो वापिस नहीं आता.
सुंदर रचना.
Main bhi is sab ko zoro se jakde hu..bas jaise chhootne ko h magar mann kh ki manta nahi ...sundar kavita...
बहन भाईयों के स्नेहिल निश्चल मासूम पल बचपन बीतते ही जाने कहां गायब हो जाते है, पर पीछे अपनी मीठी सी कसक छोड़ जाते हैं. वे जब भी हमारे स्मृतिफ़लक पर उभरते हैं, तो हमें उसी दुनिया में बरबस खीच ले जाते हैं. भैयादूज के अवसर पर खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
कोई लौटा दे मुझे बीते हुए दिन :) बहुत प्यारे भावों से भरी कविता.
मार्मिक कविता। मुझे बचपन की वह बात या रही है जब मेरी माँ की बुआ, जिन्हे मै दादी कहता था,क्योंकि वे मेरे पिताजी की ममेरी या चचेरी चाची भी लगतीं थीं, हमेशा कहतीं: सगे भाई बहन मे से किसी के भी बिछड़ जाने से वे नहीं मिल सकते। तात्पर्य भाई बहन का प्यार अनूठा होता है। सुन्दर रचना। आभार……॥
जब पिछले दिन हाथ में थे तब सोचा नहीं ! आज फिर हाथ से छूट रहा है , उसे ठीक से जीते नहीं और आगे जाकर इसकी भी वापसी की दुआ करेंगे ! हम लोग बस ऐसे ही हैं !
बहुत हृदयस्पर्शी रचना है ! मन में बचपन की ऐसी कितनी ही स्मृतियाँ इसी तरह जीवित रहती हैं और हमारे वर्त्तमान को भी आनन्दमय बना देती हैं ! आपने तो मुझे भी मेरे बचपन की वीथियों में धकेल दिया ! इतनी सुन्दर और भावपूर्ण रचना के लिये ढेर सारी बधाइयां और शुभकामनाएं !
संगीता जी, आपकी इस संवेदना से पूर्ण रचना पढ़ कर फिर से जीवन के उन दिनों में खो गया जहाँ एक अलग संसार हुआ करता है ...बचपन जीवन का सबसे अनमोल पल होते है...और आप चाहे जितने भी बड़े हो जाओ वो पल हमेशा ही मंडराते रहते है..और समय समय पर यादों की झरोखों में आकर मन को भावुक कर जाते है...अति सुंदर रचना..धन्यवाद
"उम्र बड़ी होती जाती है
पर मन पीछे धकेलता रहता है"
बचपन और भाई बहन के प्यार का बहुत अच्छा और स्वाभाविक चित्र उकेरा है आपने. आपकी कविता ने बचपन की यादों को ताज़ा कर दिया.
बीता वो लम्हा तो लौट कर नहीं आता ...
बेफिक्री भरे वे लम्हे बहुत याद आते हैं ...
भाई दूज पर आपने बहुत ख़ूबसूरत रच्नना प्रस्तुत किया है! बचपन की मीठी यादें ताज़ा हो गयी !
बहुत सुंदर -
बीते हुए पलों की याद उन पलों से भी ज्यादा खूबसूरत होती है -
शुभकामनाएं .
वक्त बीत जाता है ... सिर्फ यादें हैं जो रह जाती हैं ... बहुत सुंदर भावमयी रचना संगीता जी ...
देरी के लिए माफ़ी चाहूंगी... आपको और आपके परिवार को दीपावली और नव वर्ष ही हार्दिक शुभकामनाएं
कुछ भी नहीं छूटता बस यादों में बस जाता है, दिल के एक कोने में अपनी जगह बना लेता है। यह वह बीज है जिसे जैसे ही खाद पानी मिलता है अंकुर बनकर फूट पड़ता है। भाई और बहन का प्रेम इस दुनिया में शाश्वत प्रेम हैं, इससे मधुर रिश्ता और कोई नहीं होता।
उम्र का कोई रिवर्स गियर नहीं .... सब कुछ पीछे छूटता जाता है ... अच्छे एहसास... बुरे अनुभव ... सब पीछे छूट जाता है ...शेष रह जाती हैं तो सिर्फ यादें .. यादें ..खट्टी यादें ... मीठी यादें ...
बहुत सुंदर -
बीते हुए पलों की याद उन पलों से भी ज्यादा खूबसूरत होती है -
शुभकामनाएं .
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ भावमय प्रस्तुति ।
बहुत भावमयी प्रस्तुति..बचपन की यादें फिर से ताज़ा हो गयीं..आभार
गुज़रा हुवा वक़्त ..... मांजी की यादें ... अक्सर लम्बी यादें ... बस दिल चाहता है वहां लौटना बार बार .... भैया दूज के दिन मार्मिक रचना ... दिल भर आता है अक्सर ऐसा पढ़ कर .....
वक्त कहाँ रुकता है और न लौटता है. इसी का नाम काल चक्र है , हर रोज अतीत बन जाता है और फिर याद बहुत आता है.
सच ये बचपन की यादें भाई बहनों का साथ अब सपना ही बन कर रह गया है. मिले भी तो रोज दो रोज के लिए जैसे हम कभी इतने पास और साथ रहे ही न हों.
गर्माहट लौटे या नहीं यादें तो पास रहती ही हैं ..........सुंदर भावपूर्ण रचना
kash ki aisa ho pata
wo bita hua kal bapis aa jata
hum bhi ji lete ek bar fir se un lamho ko
sundar bhav
bahot sundar likhtin hain aap.aap to Delhi men hi rahtin hain ,kabhi milne ka rakhiye mere yahan,aapse milkar bahot achcha lagega.
काश बीता वक्त एक बार
फिर ज़िन्दगी में आ जाए
माँ - पापा के साथ फिर से
हर रिश्ते में गरमाहट भर जाए.
खट्टी-मीठी यादें...सुंदर रचना!
अक्सर अकेली स्याह रातों में
अपने आप से मिला करती हूँ
बेहद खूबसूरत भाव! बेहतरीन!
प्रेमरस.कॉम पर
दैनिक जागरण में: हिंदी से हिकारत क्यों
पर कहीं मन में हमेशा
एक बच्चा बैठा रहता है :)
बहुत मिठास है इसमें...
यादों का सिलसिला जब चलता है तो ऐसी रचना जन्म लेती है ..
बहुत सुन्दर
काश बीता वक्त एक बार
फिर ज़िन्दगी में आ जाए
.
.
मगर ऐसा संभव कहा हो पता है.... बहुत ही सुनहरी यादें
काश बीता वक्त एक बार
फिर ज़िन्दगी में आ जाए
माँ - पापा के साथ फिर से
हर रिश्ते में गरमाहट भर जाए.
काश कि सचमुच ऐसा हो पता ............दिल कि गहराइयों से निकली आपकी यह रचना , हर दिल संवेदनशील ह्रदय की गहराइयों तक समा जाती है .
सुन्दर पोस्ट .बधाई !
sangita di,
unlamhon kaa zikra hai aapane jo sabne khoya hai.. bachapan hi nahin bachapan se judi yaadein bhi..
beeta vakt to laut kar nahi aa sakta.par us beete vakt ki garmahat agar sambandho me hai to uska jana akharta nahi.....bas vo garmahat bani rahe...
बहुत ही सुन्दर रचना है...
सुभद्रा कुमारी चौहान जी की कविता "आजा बचपन एक बार फिर देदे अपने मधुरिम याद" मुझे बहुत पसंद है.आज आपकी कविता ने उस की याद दिला दी
मंजु मिश्रा
एक दूसरे के बिना
जैसे वक्त नहीं कटता था
कितनी ही बातें
बस यूं ही याद आती हैं...
सच कहा आपने, बचपन की बातें रह रह कर याद आती हैं।
बचपन की तस्वीर..यकायक उभर आई..
बहुत-बहुत धन्यवाद..!!
बचपन याद दिला दिया। भावमय रचना। बधाई।
कैसे बीत जाता है वक्त
और रिश्ते भी बदल जाते हैं
माँ का अंचल भी
छूट जाता है
और हम ,
बड़े भी हो जाते हैं
बचपन में बडे होने को मचलते है, और बडे होने पर सब खो गया सा लगता है, वाह रे जिंदगी॥
आपकी ये भावमय प्रस्तुति मुझे तो बहुत अच्छी लगी .
एक बच्चा बैठा रहता है
समय - समय पर वो
आवाज़ दिया करता है
उम्र बड़ी होती जाती है
पर मन पीछे धकेलता रहता है।
- वाह,
माँ का घर और भाई का स्नेह -मन के किसी कोने में चुपचाप समाए रहते हैं और कभी पुराने नहीं हो सकते
एक बच्चा बैठा रहता है
समय - समय पर वो
आवाज़ दिया करता है
उम्र बड़ी होती जाती है
पर मन पीछे धकेलता रहता है।
- वाह,
माँ का घर और भाई का स्नेह -मन के किसी कोने में चुपचाप समाए रहते हैं और कभी पुराने नहीं हो सकते
sab ke bachpan ko chhoo gayi apki ye rachna. aabhar nayi purani halchal ka jo ek baar fir ye rachna padhne ko mili.
बस सब कुछ काश पर ही अटक जाता है...
सुंदर...
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