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रिसता मन

>> Thursday, May 31, 2012



उपालम्भों से 
आती है 
हर रिश्ते में 
खटास 
शिकवे 
नहीं रख पाते 
मन में 
मिठास 
टूट जाए 
जब 
एक बार 
विश्वास 
कैसे करे 
कोई फिर 
प्रेम की 
आस ? 
होता है 
हर बात से 
मन पर 
वज्राघात 
तो वाणी भी 
हो जाती है 
कर्कश 
और हर 
बात से 
होता है जैसे 
कुठाराघात .

प्रेम में 
विश्वास का होना 
ज़रुरी है 
विश्वास न हो तो 
बातों को 
छिपा लेना ही 
मजबूरी है .



तथाकथित प्रेम

>> Tuesday, May 22, 2012




आसक्त हो कर 
किसी के प्रति 
अकसर सोच लेते हैं लोग 
कि वो उससे 
गहन प्रेम करते हैं 
जिन एहसास से 
खुद गुज़रते हैं 
दूसरा भी वैसा ही 
महसूस करे 
ऐसे अरमान 
उनके मन में पलते हैं , 
नहीं उतर पाता खरा 
जब वो उनकी 
उम्मीदों पर तो 
अपनी अपेक्षाओं का बोझ 
उसकी भावनाओं पर 
बड़ी निर्ममता से धरते  हैं ,

दब जाती हैं भावनाएं 
और  अपेक्षाएँ 
हो जाती हैं हावी 
प्रेम का प्रस्फुटन 
होने से पहले ही 
मुरझा जाती है कली
फिर बेवफा का 
तमगा दे कर 
कह दिया जाता है कि
पत्थर दिल 
भला कहीं पिघलते हैं ?


ठहराव ......

>> Monday, May 7, 2012



उम्र के  
छठे  दशक  का 
प्रथम  पड़ाव -
सोच पर भी 
आ जाता है 
जैसे एक ठहराव ,
अनुभवों की पोटली 
संग बंधी रहती है 
फिर भी कभी कभी 
अनुभवों की 
बहुत कमी लगती है 
लगता है कि
जैसे सब कुछ 
बिखर रहा है 
समेटने के लिए 
अंजुरी का दायरा 
कम पड़ रहा है 
फिर मैं अंजुरी छोड़ 
बाहों को फैला देती हूँ 
सारे जहां का दर्द 
खुद में  समेट लाती हूँ 
आज भी आँखों में 
स्वप्न चले आते हैं 
मेरे मन  के व्योम  को 
विस्तृत कर जाते हैं 
भावनाओं के पाखी 
अब थक चुके हैं 
गहन विश्राम के लिए 
चल चुके हैं 
अब कोई विस्तार नहीं 
बस - पड़ाव चाहिए 
ज़िंदगी में बस 
एक ठहराव चाहिए .... 



हमारी वाणी

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