जीवन फूल और नारी का
>> Wednesday, January 27, 2010
जब - जब नारी की तुलना
फूलों से की जाती है
तब - तब ये छवि
मन में उभर आती है।
कि सच ही - नारी
फूलों की तरह कोमल है
फूलों की तरह मुस्कुराती है
लोगों में हर दिन
जीने का उत्साह जगाती है
एक मुस्कराहट से
सबके जीवन में
नया उत्साह ले आती है।
पर जब फूलों की तुलना
नारी से की जाती है
तब फूल के मन में
ये बात आती है
हम फूल मुस्कुराते हैं
हर सुबह
जीने का उत्साह जगाते हैं
पर हम नारी की तरह
कहाँ हो पाते हैं।
नारी तो अगले दिन फिर
जीने का उत्साह जगाती है
हम तो एक ही दिन में
निढाल हो मुरझा कर
टहनी से टूट बिखर जाते हैं.
23 comments:
नारी तो अगले दिन फिर
जीने का उत्साह जगाती है
हम तो एक ही दिन में
निढाल हो मुरझा कर
टहनी से टूट बिखर जाते हैं
कमाल की लाइनें , सच्ची और शानदार रचना
बहुत ही सुंदर पंक्तियों के साथ ..... सचमुच बहुत सुंदर रचना.....
vah sangeetaji
bahut khubsurat tulna do khubsurat vishishto ki .
bahoot hi aachhi lgi .
सच कहा ........ नारी बहुत जीवट है ......... सूरज की तरह ताज़गी बही रहती है उसके आचरण में .... ऊर्जा होती है पुर परिवार की ..........
बहुत ही सुन्दर भाव लिये हुये अनुपम प्रस्तुति ।
oyeeeeeeeeeee...kya baat keh di bhai...ab to naree hone par fakr hone laga :) to tasveer bhi gazab hai..gahan chintan di ! bahut sunder
सचमुच नारी और फूल दोनों ही ईश्वर की बहुमूल्य देन है, और किसी न किसी रूप में दोनों ही पूज्यनीय है।
सुन्दर कविता के लिए धन्यवाद्।
सचमुच नारी और फूल दोनों ही ईश्वर की बहुमूल्य देन है, और किसी न किसी रूप में दोनों ही पूज्यनीय है।
सुन्दर कविता के लिए धन्यवाद्।
wah kis andaz me phool kee vyatha bata dee aapane...
Bahut sunder rachana..........
NAREE KE KAI ROOP HAI .
KABHEE NAJUK TO KABHEE CHATTAN JAISEE ATALTA .
waah waah........bahut hi gahanta aur sundarta ke sath aapne nari aur phool ke jeevan ko chitrit kiya hai.......badhayi
इतना आसान भी नहीं
नारी सा बनना
खुद को मार कर
अंतस को जला कर
दुसरो को ख़ुशी देती है
अपने अश्को के तेल से
हर दिन को उजाले देती है
तब जा के एक नारी
नारी रूप लेती है
कैसे बने वो सिर्फ एक फूल
अपनी कलियों को भी तो
वो ही जीवन देती है
घर भर की खुशबु
की खातिर
खुद हिना बन कर,
पिस कर तब कही
वो जिन्दगी को
महका पाती है
तब जा के एक नारी
नारी रूप लेती है
संगीता जी आपकी कविता पढ़ कर यही पंक्तिया मेरे मन में उठी जो आपके समक्ष रख दी...उमीद है पसंद करेंगी.
आप सभी का बहुत बहुत आभार. आपकी टिप्पणियां ही प्रोत्साहन देती हैं...शुक्रिया
अनामिका जी,
आपने बहुत सुन्दर पंक्तियाँ लिखीं हैं...बहुत बहुत शुक्रिया....
मैंने भी कुछ ऐसा ही कहने का दू:साहस किया था की नारी को तो हर वक्त नया रूप लेना पड़ता है....जो खुशियाँ वो देती है उसके पीछे उसके कितने दर्द होते हैं...ये दिखाई नहीं देते...विस्तृत विवेचना के लिए आभार...
नारी की जीवटता को बहुत सुन्दर शब्दों मे ढाला है सही मे हमे तो नारी होने पर गर्व है। बधाई इस रचना के लिये
आपकी कविता पढ़ने पर ऐसा लगा कि आप बहुत सूक्ष्मता से एक अलग धरातल पर चीज़ों को देखती हैं।
क्या बात है , लाजवाब लिखा है आपने ।
बहुत ही गहरी बात कह दी आपने तो...सच है....नारी रोज नया उत्साह लेकर आती है....रोज कुम्हलाती है..और फिर नवजीवन का संचार कर देती है,सबमे ...बहुत सुन्दर
बहुत बेहतरीन रचना! अच्छा लगा पढ़कर!
आप सबके दिए हुए प्रोत्साहन के लिए आभार...
शास्त्री जी,
आपकी शुक्रगुजार हूँ जो आपने इसे चर्चा में शामिल किया....इस बार चर्चा टिप्पणियों के साथ मन को बहुत भाई. शुक्रिया
नारी तो अगले दिन फिर
जीने का उत्साह जगाती है
हम तो एक ही दिन में
निढाल हो मुरझा कर
टहनी से टूट बिखर जाते हैं
एक अलग और अच्छी सोच के साथ सार्थक कविता
bahut umda rachna hai...sangeeta ji...badhaai
Pahali baar aapke blogpe aayi hun...abhi any blog dekhne hain!Jab ye itna sundar hai,to any bhi aisehee honge!
नारी अद्भूत उर्जा है
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