पिघलता पत्थर
>> Wednesday, July 27, 2011
अमावस सी ज़िंदगी में
अचानक ही
छिटक गयी चाँदनी
एक बादल की ओट से
निकलते हुए
चाँद ने कहा
क्यूँ मायूस हो ?
मैं हूँ न ..
और यह कह
मुस्कुरा दिया
मैं खो गयी
उस मुस्कान में
उसकी स्निग्ध शीतलता ने
जैसे दग्ध मन पर
रख दिए
बर्फ के फाहे
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...
76 comments:
वाह! मनोभावों का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है सच इंसान इससे ज्यादा और क्या चाहता है।
प्रेम की शीतल चांदनी में मायुसी का पाषाण पिघल ही जाता है। अच्छी कविता के लिए बधाई॥
chaand ne kaha- main hun n , kitni bheeni raushni
बेहद शीतल, स्निग्ध और नर्म से अहसास हैं कविता में संगीता जी ! काश आश्वासन की सौगात थमाता ऐसा मनभावन चाँद सबके जीवन में आ जाये ! बहुत प्यारी रचना ! आभार !
बहुत सुंदर अहसासों को शब्द दिए हैं, काश ! ऐसे ही चंद सभी उदास से चेहरे और मानों को अपने शीतलता से रुई के फाहे में लपेट कर बर्फ सा अहसास देकर शांत कर सके तो फिर कितने जीवन ऐसे ही ख़ुशी से भरजाएँ.
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था .
....ek pyara saath jo mil gaya pighalta kyun nahi...
..bahut badiya prastuti..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
वाह दी.... कितनी सहज और सुन्दर अभिव्यक्ति है....
सादर....
मुस्कान में वह ताक़त है जो पत्थर हृदय में भी प्यार का भाव भर दे।
वाह संगीता दी क्या कहना !!!
मन के मधुर भावों को सहज प्रवाह देती ...कोमल-कोमल सुन्दर रचना
Kitna sundar ehsaas!
अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
कोमल अहसास कराती हुई.
आभार.
चाँद ने कहा क्यूँ मायूस हो ? मैं हूँ न .. और यह कह मुस्कुरा दिया मैं खो गयी उस मुस्कान में उसकी स्निग्ध शीतलता ने जैसे दग्ध मन पर रख दिए बर्फ के फाहे और पिघलता रहा बूँद बूँद जो हृदय पत्थर हो चला था .../बहुत सुंदर भाव लिए ,बहुत मन को शीतलता प्रदान करती हुई बेमिसाल रचना/ संगीताजी बधाई आपको /
दग्ध ह्रदय को बर्फ के फाहे का एहसास . मरुस्थल में ओएसिस मिल जाने जैसा अनुभव .
.सुंदर अहसासों को शब्द देकर कितनी सहज और सुन्दर रचना रच डाली है.....
एक आत्मीय मुस्कराहट और एक प्रेम पगा स्पर्श किसी भी पाषाण-ह्रदय को पिघला देता है!!
संगीता दी! बहुत अच्छी लगी यह कविता!!
दग्ध मन पर बर्फ के फाहे
क्या बात है दीदी, कमाल कर रही हैं आप|
बेहद खूबसूरती से पिरोई दिल को छू जाने वाली रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत ही सुंदर भाव ...बहुत अच्छी कविता
yehi to pyar hai jo pathar ko bhi pighla deta hai
Bahut hi sunder kavita.
Bahut bahut badhai.
कोमल एह्सासों से गुंथी सुन्दर, निर्मल, प्यारी रचना.
मनोयोग से भावनाओं की प्रस्तुति
boond-boond snigdhta ...pahunch rahi hai ham tak bhi ....
badhai apko ....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति और साथ में चित्र भी...।
भावपूर्ण अभिव्यक्ति और सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई
चाँद ने कहा क्यूँ मायूस हो ? मैं हूँ न
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
बेहद नाज़ुक सा एहसास
बहुत सुंदर ...मनोभावों की कमाल की अभिव्यक्ति है... बधाई
बेहतरीन रचना...
वाह .. कितनी सरलता से कह दी बात .. झकझोरने वाली बधाई
बर्फ और हृदय के पिघलने की रोचक अभिव्यक्ति।
सुन्दर अभिव्यक्ति
कोमल-कोमल सुन्दर अभिव्यक्ति..........
वाह ...बहुत ही नाजुक से अहसास ...बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
bahu sundar ,ek pyara eahsas ........ pighalta raha boond boond.....!
chand ki shital kiran or barf ki pighlan......... ati sundar .
DIL KE KARIB
bahu sundar ,ek pyara eahsas ........ pighalta raha boond boond.....!
chand ki shital kiran or barf ki pighlan......... ati sundar .
DIL KE KARIB
bahu sundar ,ek pyara eahsas ........ pighalta raha boond boond.....!
chand ki shital kiran or barf ki pighlan......... ati sundar .
DIL KE KARIB
जैसे दग्ध मन पर
रख दिए
बर्फ के फाहे
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...
बहुत सुंदर !
बहुत भावपूर्ण और सकारात्मक अहसास पेश करती रचना.
bahut sunder
हर दिल को बर्फ के फाहे की ज़रूरत है...
सख्त दिखता है, अन्दर पिघलता है...
पत्थर का पिघलाना आसन नहीं, पत्थरों में संवेदना जगाना आसन नहीं. लेकिन जिसने अपने त्याग, तपस्या और समर्पण से जागृत कर लिया पाषाण को, तो वह फिर बन जाता है संवेदनाओं, चैतन्यता का आगार. बहता है शिआजीत बन के... ढलते उसके अश्रुधारा को कितनों के पहचाना है, कितनों ने जाना है? फिर चाहे जो नाम और रूप दें उसका. वह फिर भी छोटा पड़ेगा, हमेशा छोटा पड़ेगा.उसके लिए. वह भी चेतना की मूर्ती है, संवेदनाओं का आगार है. बात केवल समझने-समझाने की है. जागने और जगाने की है. आपका बहुत- बाहुत आभार...
अद्भुत सुन्दर रचना! मन के भावों को बड़े खूबसूरती से व्यक्त किया है आपने! मुस्कुराहट में वो जादू है जो बर्फ को भी पिघला दे! कोमल और मीठे एहसास के साथ लाजवाब प्रस्तुती!
बेहद सुंदर अभिव्यक्ति .
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...
kitni sheetalta hai aapki is hirdyae-sparshi anubhuti me!
simply beautiful ! badhai sweikare
बहुत ही सुंदर भाव .
चाँद ने हृदय को पिघला दिया इसीलिए सदियों से विरहाकुल मन चाँद के द्वारा प्रीतम को संदेशा भिजवाता रहा है... भावपूर्ण रचना के लिये बधाई!
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...
kitna sunder likhi hain aap......
बहुत खूबसूरत रचना दी :)
hame aur kya chahiye rahat ke siva ,sundar ,apni kami poori kare do shabdo se intjaar hai .
उसकी स्निग्ध शीतलता ने
जैसे दग्ध मन पर
रख दिए
बर्फ के फाहे
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...
बहुत खूबसूरत नरम अहसासों से पूर्ण रचना
BAHUT SUNDAR ........ MAAN KE BHAVO KA ADBUDH CHITRN.
bahut hi sundar rachna. Dhanyawad
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
उसकी स्निग्ध शीतलता ने
जैसे दग्ध मन पर
रख दिए
बर्फ के फाहे
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था
भावों का शब्दों में बढ़िया रूपांतरण।
मैं खो गयी
उस मुस्कान में
उसकी स्निग्ध शीतलता ने
जैसे दग्ध मन पर रख दिए बर्फ के फाहे और पिघलता रहा बूँद बूँद
जो हृदय पत्थर हो चला था
वाह..क्या खूब लिखा है आपने।
बहुत सशक्त प्रस्तुति।
उसकी स्निग्ध शीतलता ने
जैसे दग्ध मन पर
रख दिए
बर्फ के फाहे
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...
प्रेम की शास्वत कोमलता जड़ को चेतन रूप प्रदान करती है ..बहुत ही गहन भाव समेटे अत्युत्तम काब्यांजलि ..
सदा जय हो आपकी !!!
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...
Ati-uttam rachanaa...aabhaar..
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था .
ati sunder panktiya
komal man si pavitr hai ye kavita bahut khoob
rachana
दग्ध मन पर बर्फ के फाहे
-सुन्दर!!!
खूबसूरत अभिव्यक्ति .....एहसास दिल के
खूबसूरत अभिव्यक्ति .....एहसास दिल के
आपकी पोस्ट की चर्चा सोमवार १/०८/११ को हिंदी ब्लॉगर वीकली {२} के मंच पर की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ / हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। कल सोमवार को
ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।
Anipam abhivayakti..
bahut laajabab prastuti.
आदरणीय संगीता स्वरुप जी
नमस्कार !
.....भावपूर्ण अभिव्यक्ति और सुन्दर प्रस्तुति..
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...
wah kitni khubsurat lines hain...
nayi hoon blog ki duniya mei.kabhi mere blog per bhi kadam rakhiye, itezar rahega..
पिघलता गया ह्रदय जो पत्थर हो चूका था ...
शीतल प्रेम , चांदनी की उष्णता और मायूसी का पिघलना ...
सभी भावनाओं का मानवीकरण कर दिया आपने तो !
मैं खो गयी
उस मुस्कान में
उसकी स्निग्ध शीतलता ने
जैसे दग्ध मन पर
रख दिए
बर्फ के फाहे ....
Very impressive expression !
.
[ ...और
पिघलता रहा
बूँद बूँद ...]
In addition to the beautiful expression, I think the beauty also comes from the use of continuous tense. A simple past tense would not have been that powerful.
अपने भाव को स्पष्ट करना इसे ह कहते हैं कितनी गहनता कितनी स्थिरता है आपकी रचना में वाह पढकर बहुत ही अच्छा लगा बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप.. मेरे ब्लॉग पर भी आइयेगा मुझे ख़ुशी होगी .
अक्षय-मन
aapki abhiwaykti dil choo leti hai....
बहुत खूबसूरत रचना अपने भावों को प्रकृति की आकृति से बयाँ करती हुई |
बहुत सुन्दर |
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...
बहुत खूब !!
वाकई प्रेम की शक्ति भी अदभुद है , कोमल होकर भी पत्थर से दिल को भी पिघला देता है .....
:):) ये दिल कभी पत्थर नहीं होगा.
Post a Comment