अन्तिम और प्रथम कील - 2
>> Sunday, December 21, 2008
मेरी इच्छाएं,
उम्मीद , भावनाएं
और अनुभव
सब शांत थे ताबूत में।
पर सोच थी ,
कि -
वक्त - बेवक्त
सर उठा लेती थी
और मजबूर कर देती थी
ये सोचने के लिए
कि आख़िर सब
क़ैद क्यों हैं ?
कब तक
निश्छल से पड़े रहेंगे
ये सब ?
आत्ममंथन करते करते
अचानक आभास हुआ
कि ये तो
पलायन है ज़िन्दगी से ------
ज़िन्दगी में सारे तोहफे
तुम्हें अच्छे मिलें
ये ज़रूरी तो नही....
तोहफा चाहे जैसा हो
बिना मांगे मिलता है।
इसलिए श्रद्धा से
स्वीकार करना चाहिए ।
बस इस सोच ने
मजबूर कर दिया मुझे
उस कील को निकालने के लिए
जो अंत में ठोकी थी मैंने
और बन गई वो
4 comments:
आत्ममंथन करते करते
अचानक आभास हुआ
कि ये तो
पलायन है ज़िन्दगी से ------
---yaha apka aatm-manthan uchit disha ki or jata hua prateet hua..aisi hi uha-poh man-o-mastishk me chalti hai jab dwand me ghire hote hai...kam shabdo me hi apni baat ko poorn roop se keh dene ki aapki kaabliyet wakeyi kaabile tareef hai..
ज़िन्दगी में सारे तोहफे
तुम्हें अच्छे मिलें
ये ज़रूरी तो नही....
तोहफा चाहे जैसा हो
बिना मांगे मिलता है।
इसलिए श्रद्धा से
स्वीकार करना चाहिए ।
- positive attitude
बस इस सोच ने
मजबूर कर दिया मुझे
उस कील को निकालने के लिए
जो अंत में ठोकी थी मैंने
और बन गई वो
उखाडी हुई पहली कील .....
-khushi hui padh kar, samajh kar, jaan kar ki positive soch akhtiyaar karte huai aap pryaasrat rahe aur kaamyaab huai ki aap aakhiri keel ko pehli keel me parivartit kar paye...
umeed hai aap zindgi ke har kathin raasto ko isi tareh se himmet se, umeedo ki roshni k saath paar kar jayengi...aur hame bhi seekh milti hai aapki is rachna, is soch aur is positive attitude se...
nice sharing....ek behtareen rachna..
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
कल 23/05/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... तू हो गई है कितनी पराई ...
"aatm-manthan" bada hi albela sa shabd hai... har vyakti ko aaina dikha deta hai..:)
behtareen rachna...di!
गहन भाव छिपे हैं इस रचना में |बहुत अच्छी लगी |"बस इस सोच ने मजबूर कर दिया मुझे -----और बन गयी वह उखाड़ी हुई पहली कील " बढ़िया पंक्ति |
आशा
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