दिल की बात
>> Sunday, December 14, 2008
दीवारों से मैंने अपना
कलाम कह दिया है ,
मैंने सुना है कि
दीवारों के कान होते हैं।
कलाम भी क्या ?
बस यूँ ही
दिल की बात है
हवाएं भी आज - कल कुछ
भीगी - भीगी सी लग रही हैं।
सोच को तो जैसे
पंख लग गए हैं
आसमान के चाँद से
कुछ गुफ्तगू हो रही है।
चाँदनी मुस्कुरा के
कह गई है कानों में
ख्यालों की दूब पर
शबनम बिखरी हुई है।
मोती जो शबनम के मैंने
समेटे अपनी झोली में
धागे में पिरो जैसे
वो एक कविता सी बन गई है।
इस कविता को भी मैं अब
किसको और क्यूँ कर सुनाऊँ
इसिलए मैंने वो सब
दीवारों से कह दिया है।
चाहा - अनचाहा सारा
जज्ब कर लेंगी वो शायद
मैंने तो यूँ कह कर बस
अपना मन हल्का कर लिया है.
9 comments:
sangeta ji bahut acchhi soch...kash toda aur aap iske aage bhi likhti to acchha lagta...apki kavita padh k ek gaane k bol yaad aa gaye..
Tera sath hai to mujhe kya kami hai..
andhero se bhi mil rahhi roshni hai..
MERE SAATH TUM MUSKURA KE TO DEKHO..
UDAASI KA BAADAL HATA KE TO DEKHO..
...
hope u wil like it..
hame jab kuchh aise aehsas hone lagten hain ki hum deewaron se kah rahe hain, sahi men hum khud ko hi sambodhit karten hain aaur yadi sahi 'dialogue' ho jaye khud ka khud se to bas koyee confusion nahin rahta...han yadi deewar ko shrota man hum mahaz 'monologue' hi kar thahar jaten hain...to nateeza...?
dIL KI BAAT ....WAAAH WAAAH KHUB LIKHA HAI.
ohhhhhhh ! bahut khoobsoorat rachnaaaaa.......:)
bahut saadi aur nanhi kali k samaan taaza..:)
itne achchhe shabdo ke saath ye kavita........wakai kamaal ka lekhan
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
यही तो होती है दिल की बात दिल से…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
wah kya baat hai...
चाहा - अनचाहा सारा
जज्ब कर लेंगी वो शायद
मैंने तो यूँ कह कर बस
अपना मन हल्का कर लिया है |
बहुत सुन्दर दी किसी से भी कह दो तो दिल हलका हो ही जाता है |
बहुत सुन्दर रचना |
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