विश्वास का उजास
>> Wednesday, December 17, 2008
रात कुछ गहरा सी गई है
शहर भी सारा सो सा रहा है
अचानक आता है -
कोई मंजर आंखों के सामने
ऐसा लगता है कि -
कहीं कुछ हो तो रहा है।
सडकों के सन्नाटे में ये
हादसे क्यूँ कर हो रहे हैं ?
प्रगति के साथ - साथ ये
इंसानियत के जनाजे
क्यूँ निकल रहे हैं ?
मनुजता को ही त्याग कर तुम
क्या कभी मनुज भी रह पाओगे?
जाना है कौन सी राह पर ?
क्या मंजिल को भी ढूंढ पाओगे?
भटक गए हैं जो कदम हर राह पर
उन्हें तो तुमको ही ख़ुद रोकना पड़ेगा
रूको और सोचो ज़रा देर -
सही मार्ग तुमको ही चुनना पड़ेगा।
कोई नही है यहाँ उंगली थामने वाला
क्यों कि हाथ तो तुम ख़ुद के काट चुके हो
ठहरो ! और देखो इस चौराहे से
सही राह क्या तुम पहचान चुके हो ?
गर राह सही होगी तो सच में
सोया शहर भी एक दिन जाग जायेगा
गहरी हो रात चाहे जितनी भी
मन में विश्वास का उजास फ़ैल पायेगा.
16 comments:
bahut achhe agaz ke sath kahee gayee ek khobsoorat rachana
Anil
Bahut achcha likha apne..
vishwaas ka ujaas hai........sabkuch sambhaw hai,bahut achhi
bahut hi 'practical' baat.........nice composition with your elderly touch.
nicely written poem
mubarak ho
Wah ati sundar
कोई नही है यहाँ उंगली थामने वाला
क्यों कि हाथ तो तुम ख़ुद के काट चुके हो
ठहरो ! और देखो इस चौराहे से
सही राह क्या तुम पहचान चुके हो ?
poori ki poori kavita bilkul sahi rop se saanche mein dhaali hui hai...sahi shuruaat, sahi soch aur sateek ant.....bohot hi sundar rachna hai....lovely.
aur kavit ka message...vo to bas, bohot hi accha hai
kaash sab is baat ko samajh paate...jannat ho jaati zameen
hamesha ki tarha....u rock grandma
love u
mummaaaaaaaaa
is geet me sur hai
lay hai
taal hai
sandesh hai....
sab hai
sabse badi baat mumma hainnnnnn
mauhhhhh luv u mummaaaa
kuCh aur abhiii baki hai........
zara tatolo....
salaam
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 08 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह! सार्थक संदेश देती पंक्तियाँ।
"इंसानियत के जनाजे
क्यूँ निकल रहे हैं ?" - 2008 में रची गयी रचना/विचारधारा आज लगभग 13 वर्ष बाद भी हमारे परिदृश्य के परिप्रेक्ष्य में जीवंत हैं और यह प्रश्न आज भी यक्ष प्रश्न बना खड़ा है। हर कालखण्ड में किसी ना किसी रूप में, अलग-अलग प्रतिशत में यह परिदृश्य रहा है, पर रहा जरूर है और आगे भी रहे .. शायद ...
लगता है यह रचना अभी हाल की ही लिखी हुई है, विश्वास का उजास जब तक मन में न भरे ऐसे ही हादसे होते रहेंगे शायद
सुंदर व सार्थक रचना
बहुत सुंदर रचना, संगिता दी।
गर राह सही होगी तो सच में
सोया शहर भी एक दिन जाग जायेगा
गहरी हो रात चाहे जितनी भी
मन में विश्वास का उजास फ़ैल पायेगा
बहुत सुंदर आशावादी रचना...🙏
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