आखिरी और पहली कील
>> Thursday, December 18, 2008
मैंने ---
अपनी सारी भावनाओं ,
सोच , इच्छा ,
उम्मीद और अनुभवों को
कैद कर दिया है
एक ताबूत में ,
और
ठोक दी है उसमें
एक अन्तिम कील भी ।
अब तुम चाहो तो
दफ़न कर सकते हो
ज़मीन के अन्दर
और न भी करो तो
कोई फर्क नही पड़ता ।
अब इनका बाहर आना
नामुमकिन है ,
बस ---
मुमकिन होगा तब ही
जब मैं ख़ुद
उखाड़ दूँ
इस ताबूत की
पहली कील को ।
4 comments:
jaha shuru me rachna ko padh kar niraasha ka ehsaas hota hai..vahi rachna ki end ki lines...
बस ---
मुमकिन होगा तब ही
जब मैं ख़ुद
उखाड़ दूँ
इस ताबूत की
पहली कील को ।
umeede sir uthaati hui nazer aati hai...jo andhkaar ko tod ujaas ki taraf jane k prayaas ka ehsaas deti hai..
aur ham umeed karte hai sangeeta ji ki vo pehli keel hi praysrat ho aur jald se jald aap us taaboot k kaid se baaher aaye..
ek umda rachna...badhaayi..
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
काश!
कैद करना
अपनी इच्छाओं को
आसान होता
न रिसती
ख़्वाहिशें फिर
पर क्या सचमुच
निर्लिप्त,तटस्थ जीवन
जीने का कोई
अरमान होता?
---
सादर।
बहुत बढिया दीदी | वीतरागी हिय की पीर की सरस अक्कासी !
कभी इससे मिलती-जुलती बात मैंने भी लिखी थी -------
बेहाल था बेज़ार था , अब तलक तो दुनिया से मैं
तुमने भी ठोक दी आख़िरी कील
मेरे ऐतबार में !!
लिखते रहिये | मेरी शुभकामनाएं|
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