रचयिता सृष्टि की
>> Friday, May 14, 2010
माँ के गर्भ में साँस लेते हुए
मैं खुश हूँ बहुत
मेरा आस्तित्व आ चुका है
बस प्रादुर्भाव होना बाकी है।
मैं माँ की कोख से ही
इस दुनिया को देख पाती हूँ
पर माँ - बाबा की बातें समझ नही पाती हूँ
माँ मेरी सहमी रहती हैं और बाबा मेरे खामोश
बस एक ही प्रश्न उठता है दोनों के बीच
कि परीक्षण का परिणाम क्या होगा ?
आज बाबा कागज़ का एक पुर्जा लाये हैं
और माँ की आँखों में चिंता के बादल छाये हैं
मैं देख रही हूँ कि माँ बेसाख्ता रो रही है
हर बार किसी बात पर मना कर रही है
पर बाबा हैं कि अपनी बात पर अड़े हैं
माँ को कहीं ले जाने के लिए खड़े हैं
इस बार भी परीक्षण में कन्या- भ्रूण ही आ गया है
इसीलिए बाबा ने मेरी मौत पर हस्ताक्षर कर दिया है।
मैं गर्भ में बैठी बिनती कर रही हूँ कि-
बाबा मैं तुम्हारा ही बीज हूँ-
क्या मुझे इस दुनिया में नही आने दोगे?
अपने ही बीज को नष्ट कर मुझे यूँ ही मर जाने दोगे?
माँ ! मैं तो तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ , तुम्हारी ही कृति हूँ
तुम्हारी ही संरचना हूँ , तुम्हारी ही सृष्टि हूँ।
माँ ! मुझे जन्म दो, हे माँ ! मुझे जन्म दो
मैं दुनिया में आना चाहती हूँ
कन्या हूँ ,इसीलिए अपना धर्म निबाहना चाहती हूँ।
यदि इस धरती पर कन्या नही रह पाएगी
तो सारी सृष्टि तहस - नहस हो जायेगी ।
हे स्वार्थी मानव ! ज़रा सोचो-
तुम हमारी शक्ति को जानो
हम ही इस सृष्टि कि रचयिता हैं
इस सत्य को तो पहचानो.
30 comments:
हम ही इस सृष्टि कि रचयिता हैं
इस सत्य को तो पहचानो.
और फिर रचयिता को ही नष्ट करने पर तुले है .. बावरे.
सुन्दर भाव सुन्दर रचना
आह बहुत ही दर्दनाक बात कह दी इस बार समझ नहीं पा रही हूँ की क्या कहूँ ..बस ..
चिंतनीय..
Sangeeta ji badi hi maarmik prastuti...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/2010/04/blog-post_24.html ise bhi padhiyega...
बहुत मर्मस्पर्शी रचना ... भ्रूण परिक्षण बिलकुल गैरकानूनी और परिक्षण करने वाले को सख्त से सख्त सजा देनी चाहिए ...
मार्मिक और समसामयिक रचना
"पर बाबा हैं कि अपनी बात पर अड़े हैं"
यहाँ पर मैं अपनी बात कहना चाहूँगा कि माँ अगर बाबा का साथ नहीं देंगी तो भ्रूण हत्या नहीं हो सकती माँ भी अपनी जिद पर अड़ी रहें
.....maarmik prastuti...
Betee ke mata pita bhi usi rachyita kee rachna hote hain..phir bhi use dhikkar dete hain!
दर्द कितना भयावह हो चला है...
बहुत ही मार्मिक कविता है...बहुत दर्द दे गयी...अजन्मी बच्ची का दर्द शब्दों में बड़ी कुशलता से बयाँ किया है
.
यदि इस धरती पर कन्या नही रह पाएगी
तो सारी सृष्टि तहस - नहस हो जायेगी ।
यह रचना हमें नवचेतना प्रदान करती है और नकारात्मक सोच से दूर सकारात्मक सोच के क़रीब ले जाती है।
उत्तम। सारगर्भित।
कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है! लाजवाब !
bahut bahut hi marmsparshi rachna hui hai Mummaa...aur sabse deen heen baat ye k bechri bachchi apne hi mata pita se apne aastitva ke liye vinti kar rai hai...........
uff ! isse nikrisht kaary kuch na hoga..kuch ho bhi ni sakta....:(:(:(
badhayi mumma yatharthwaadi sateeek rachna ke liye............
आजकल लेखनी की धार लगता हे तेज़ हो गयी है बहुत सी कटु सत्यो को उजागर करती रचनाये निकल कर आ रही हैं. बधाई.
बहुत बढ़िया है!
पशु बलि, नर बलि, सती प्रथा तथा भूर्ण हत्या यह सब आदिम और बर्बर युग के लक्षण हैं..... सभ्य समाज के नहीं। आपने इस प्रवृत्ति पर तीखा प्रहार किया है। बधाई।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
zab artdast rachna mumma...halanki is theme pe ek vedio dekh chuka hun...par kavita ki baat alag hopti hai ..rongte khade ho gaye mere...behtareen nazm .. :)
बेहद मार्मिक और संवेदनशील रचना मगर आज का एक दर्दनाक और कटु सत्य्…………………एक अजन्मी बच्ची के दर्द को जिस तरह आपने शब्दों मे बाँधा है ,सराहनीय है और समाज के लिये एक आईना दिखाती है आपकी ये रचना……………………भयावह तस्वीर दिखाती रचना।
Excellent !
Didi...
prbhavshali rachna..behatreen abhivyakti.. shabdon mein bayan nahin kar skati ki kaisa mahsoos ho raha hai..hats off to u
सच्चाई और विडंम्बना का मिश्रण है ..ये रचना .... समझ नहीं आता ....इस घोर पाप का कब अंत होगा ..और फिर इसके लिए कौन दोषी है ....हम ...समाज , या सरकारी तंत्र .../// हां पर थोड़ी राहत तो है आजकल इसमें कुछ कमी तो हुई है ...पिछले वर्षो के मुकाबले अब थोड़ी कमी आई है ....अगर हम सब मिलजुल कर प्रयास करे तो शायद इसका अंत हो सके .....आपकी रचना बेहतरीन है....धन्यवाद
ग़ज़ल
आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा ख़ुदा देगा ।
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा ।
ज़िन्दगी को क़रीब से देखो
इसका चेहरा तुम्हें रूला देगा ।
हमसे पूछो दोस्त क्या सिला देगा
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा ।
इश्क़ का ज़हर पी लिया ‘फ़ाक़िर‘
अब मसीहा भी क्या दवा देगा ।
http://vedquran.blogspot.com/2010/05/hell-n-heaven-in-holy-scriptures.html
अरे संगीताजी आपने तो आँखे ही नम कर दी |
अर्थपूर्ण प्रस्तुती |
विकास ने मानवीय मूल्यों की नई गढ़ दी है परिभाषा क्या ?
हमारे जमाने में तो पांच सात कन्याये होती थी और उनकी शादी में मामा की तरफ से" कुंवारी "भोज देने में मामा गर्व महसूस करते थे |
bahut aacha likha aap ne....
heart storming
http://madhavrai.blogspot.com/
http://qsba.blogspot.com/
आपकी बधाई के लिए शुक्रिया !
संगीता जी . अति मर्मस्पर्शी रचना । गर्भस्थ का अन्तर्द्वन्द साहित्य मे प्रथम बार । बधाई ।
मार्मिक और समसामयिक रचना .......
बहुत मर्मस्पर्शी
बेहतरीन रचना
धन्यवाद
सँगीता जी . अनुपम रचना । मर्मस्पर्शी ।
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