सर्द मुस्कान
>> Wednesday, May 26, 2010
एक साझा नज़्म....
कभी कभी कुछ रचनाएँ मुक्कमल होती हैं जुगलबंदी से.....आज की यह नज़्म भी एक ऐसी ही जुगलबंदी
है...मैंने नज़्म ड्राफ्ट की ही थी कि शिखा (वार्ष्णेय ) Online दिखाई दे गयी...बस मैंने यह नज़्म उसको भेज दी
पढने के लिए...तुरंत जवाब आया कि बहुत अच्छी है..पर इसे पूरा करो ना ....अब दिक्कत यह है कि जहाँ मेरा
लिखना बंद हुआ तो उससे आगे कुछ लिखा ही नहीं जाता...मैंने कहा कि अब मैं आगे नहीं लिख पाऊँगी...तुम ही
पूरा करो....तो बस हो गयी जुगलबंदी ...... शुरू की पंक्तियाँ मेरी हैं तो अंत की शिखा की ....बताइए आपको ये
साँझा नज़्म कैसी लगी ????????????
अश्कों के साथ
बह कर
चिपक गया था
कपोल पर एक
पलक का बाल
और तुमने
चुटकी से पकड़
उसे मेरी उल्टी
बंद मुट्ठी पर रख
कहा था कि
मांग लो
जो मांगना है
मैंने
मांग लिए थे
तेरे तमाम दर्द
और
मेरे चेहरे पर
खिंच गयी थी
एक मुस्कान सर्द |
एक वो दिन था
और एक
आज का दिन है
मेरी झोली में
तेरे दर्द हैं सारे
और तेरे होठों पर
मेरी मुस्कान है ...
40 comments:
ही ही ही ये भी खूब रही :) और फोटो तो कमाल लगाएँ है एकदम हा हा हा .
NICE
आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,
mere blog per jaroor dekhen
विलुप्त नहीं हुई बस बदल गई हैं पंरंपराएं.......!!!
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_26.html
अश्कों के साथ
बह कर
चिपक गया था
कपोल पर एक
पलक का बाल
और तुमने
चुटकी से पकड़
उसे मेरी उल्टी
बंद मुट्ठी पर रख
कहा था कि
मांग लो
जो मांगना है
मैंने
मांग लिए थे
तेरे तमाम दर्द
और
मेरे चेहरे पर
खिंच गयी थी
एक मुस्कान सर्द |
i guess ye mumma wala part hai ...
एक वो दिन था
और एक
आज का दिन है
मेरी झोली में
तेरे दर्द हैं सारे
और तेरे होठों पर
मेरी मुस्कान है ...
aur ye shikha di wala... bahut achhi nazm hai mumma .. aure kitni baar ye harkat maine bhi ki hai ...par log maangte kya hain ye batate hi nahi ... bhale hi palak ke baal ki taraf dhyan diala do ...hehehee
Are wah! Kya mel jama hai!
वाह संगीताजी
भरी गर्मी में सर्द मुस्कान काफी राहत दे गई और बड़ी प्यारी लगी ये जुगलबंदी
बनायें रखे |
श्रृंगार की अतुकांत कविता की बेहतरीन जुगलबंदी के लिए आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई.. :)
क्या बात है...दर्द का ये लेन देन अच्छा लगा...चलती रहें ये जुगलबंदी और पढने को मिलती रहें ऐसी रचनाएं..आमीन
एक वो दिन था
और एक
आज का दिन है
मेरी झोली में
तेरे दर्द हैं सारे
और तेरे होठों पर
मेरी मुस्कान है
Gahre bhaav liye ek sundar kavitaa, Sangeetaji.
rashmi ji ne mere man ki baat keh hi di hai....
ab mai kya kahoon....
kunwar ji,
सेर और सवा सेर
हे स्वप्निल ! तुम ज्योतिषी भी हो? बच कर रहना पड़ेगा अब :)
कई बार कितने सहज भाव से कह दी जाती हैं रोज-मर्रा की बाते..और इन छोटी छोटी बातो में कितना सुख छिपा होता है...हम इन सुखो को जीना सीख लें तो कितने ही हसीं पल सिमट आयें हमारी इस भाग-दौड़ की जिन्दगी में..मुझे तो यही सीख देती है आपकी ये रचना.
दिल में कहीं भीतर तक उतर गए इस रचना के उदगार. बधाई.
@shikha di ...heheh..nahi jyotishi nahi.. bas ek andaja tha... heheh.. bahut saaanjhi nazmen ghazlen likhi hain na maine bhi ...
मेरी झोली में
तेरे दर्द हैं सारे
और तेरे होठों पर
मेरी मुस्कान है ...
...bhavpurn jugalbandhi...
Haardik shubhkamnayen
बहुत बढ़िया रचना, संगीता जी!
हम तो चले भानजे की शादी में!
3 दिन के बाद भेंट होगी!
अच्छी जुगलबंदी , मुझे ज्यादा समझ तो नहीं है ग़ज़ल कि या नज़्म की, इसलिए मै उसपर कोई कमेन्ट नहीं दूंगा. . लेकिन हाँ , ब्लॉग जगत को ऐसी ही खूबसूरत जुगलबंदियो की जरुरत है इसे खूबसूरत बनाने के लिए. मेरे जैसे खालिश पाठक का इस आभासी दुनिया की जुगाड़ बंदिया देखकर (पढ़कर) मोहभंग होने लगा है. क्या पता ऐसे जुगलबंदियो का दौर शुरू करने के लिए आप लोगों की ये पोस्ट उत्प्रेरक का काम करे. amen
साझा दर्द साझी मुस्कान ... इसे समझना सबके वश की बात नहीं
इस दर्द .. इस मुस्कान के पीछे के भाव, दर्द और मुस्कान को साझा करने की कश्मकश
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
@@शिखा @@ स्वप्निल....
वाह क्या अंदाजा है....मैंने सब ऊपर लिखा हुआ है...:):):)
सभी पाठकों को मेरा आभार
बहुत सुन्दर कविता है ... जुगलबंदी सार्थक रही !
दर्द साझा था या मुस्कान?
पर नज़्म अधुरी लगती यदि वहीं छोड़ दिया होता!
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
शिखा जी ने मेरी भी कई बार मदद की है... ऐसे ही.... आजकल मुझे वक़्त ही नहीं मिलता है कि उनसे मदद ले सकूँ....
और तेरे होठों पर
मेरी मुस्कान है ...
इन पंक्तियों ने तो दिल को छू लिया....
बहुत सुंदर प्रस्तुति....
bahut bahut khoobsoorat jugalbandi hui Mumma aur Shikha di...:):) donon ko badhayi hehehhee...:):)
गजब रही यह जुगल बन्दी तो...आनन्द आ गया!!
bahut hi sundar aur gahre bhavon se bhari jugalbandi.........dono hi bhav bejod hain.
बहुत कमाल की जुगलबंदी ... लगता नही की दो अलग अलग विचारों की लिखी रचना है ...
पलक का बिंब बहुत नवीन है ... बहुत लाजवाब ...
बहुत बेहतरीन जुगलबंदी हो गयी ये तो ......उम्मीद से बढ़कर .....पूरा किया ...सार्थक हुई .....
पलक का बिंब,,,,लाजवाब
चलती रहें ये जुगलबंदी और पढने को मिलती रहें ऐसी रचनाएं..
बहुत सुंदर प्रस्तुति!
Hi di.
Nazm Sajha jo padhi to..
Dard aadha ho gaya..
Teri Nazmon ka surur..
Ab aur jyada ho gaya..
Dard tere, hisse jo tha..
Sard si, muskaan laaya..
Uske chehre pe khili, teri hansi bhi sath laya..
Nazm ke 2no bhag ek dusre ka purak karta laga
Sundar nazm..
DEEPAK..
ye jugalbandee to kamal kee rahee.......
maza aa gaya............
sarahna ke liye shavdo ka lala pad raha hai.........
क्या बात है ? संगीता जी और शिखा बस ऐसे ही साझा नज्म और साझा दर्द को मुस्कानों में बदल कर हमें नजर करती रहें और हम भी इस साझे रिश्ते के चश्मदीद गवाह बने लेखनी के कमाल देखते रहें.
रचना ? योजनागत संरचना है ।
प्रयोग अधुनातन ।
bahut khub bilkul hi nayi soch...
achhi rachna...
aur chitra bhi shaandaar....
hahaha...
aur haan mere blog par...
तुम आओ तो चिराग रौशन हों.......
regards
http://i555.blogspot.com/
संगीता आंटी..
बहुत सुंदर भाव..!!!
शिखा जी..
शब्द कम हैं..परन्तु..आपके भाग से ही पूर्ण हुई है..यह 'नज़्म'..!!
शुभ-कामनाओं सहित..
प्रियंका..
मैंने मांग लिए थे तेरे तमाम दर्द
और मेरे चेहरे पर खिंच गयी थी एक मुस्कान सर्द |
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
वाह! यह जुगलबंदी तो खूब रही..
khubsurat... matlab aap dono ke bhaag bilkul poorak se lage :)
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