भगदड़.....
>> Tuesday, August 3, 2010
ज़िन्दगी के
प्लैटफार्म पर
कभी कभी
भावनाओं की
मच जाती है
ऐसी भगदड़
जब होता है
एहसास कि
ख्वाहिशों की गाड़ी
दूसरी लाइन
पर आ रही है
सारे सपने
और भावनाएं
एक दूसरे को
कुचलते हुए
कोशिश करते हैं कि
उस गाड़ी को
पकड़ लें .
और
इस कोशिश में
हो जाती हैं
कितनी ही घायल
और कुछ
समा जाती हैं
असमय ही
मौत के क्रूर
गाल में ....
56 comments:
आज क्या बात है ………………ये इतना दर्द कैसे उतार दिया।बेहद भावप्रवण प्रस्तुति।
dil ko chune yogya prastuti
per kuchalker bhi bhawnayen dam nahi todti, kisi n kisi kee kalam kee dost ban jati hain
zindagi ki badi philosphy....ek dum solid nazm mumma...
बहुत सुन्दर तरीके से व्यक्त किया है। बधाई
ज़िन्दगी के
प्लैटफार्म पर
भावनाओं की
मच जाती है
भगदड़ !!!
इस कोशिश में
हो जाती हैं
कितनी ही घायल
और कुछ
कर लेती हैं
अंगीकार मौत को .....
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है ना...और वो जो कुछ हम खो कर पाना चाहते हैं वो हमारे निर्णय पर आद्धारित होता है तो फिर इस बात का मलाल कहाँ रह जाता है की कुछ भावनाएं कुचली गयी...आखिर उनको नज़र अंदाज़ करने का फैसला भी तो हमारा ही होता है...सो...बैरी मनुवा दुःख की चिंता क्यों सताती है...दुःख तो अपना साथी है...:):):)
ज़िंदगी का प्लैटफॉर्म, ख़्वाहिशों की गाड़ी और भावनाओं और सपनों के मुसाफिर...और उन मुसाफिरों की मौत... ये कविता तो हर रोज़ सड़कों पर, बाज़ारों में, समाज में हर तरफ कभी आँसुओं और कभी ख़ून के हरफ में लिखी दिखती है... संगीता दी! आज तो बस चुप से बेहतर कोई कमेंट नहीं!!!
यह रेल का थीम पैटेन्ट करा लें, नहीं तो मैं चुरा लूँगा।
सुन्दर प्रस्तुति ....
अभिभुत, सुन्दर भावनाओं की अभिव्यक्ति!! बधाई!!
विरले ही ख्वाहिशों की गाड़ी पकड पाते है।
rashmi ravija to me
कमेंट्स बॉक्स नहीं खुल रहा...इसे पोस्ट कर दीजिये..
ओह बहुत ही उम्दा रचना...ये ख्वाहिशों की रेल हमेशा दूसरी लाइन पर ही क्यूँ आती है...जिसे पकड़ने में मन यूँ घायल हो जाता है...बहतु कुछ बयाँ कर गयी ये रचना
भगदड़़ दुनिया में मची, मारा-मारी होय।
क्रूर-काल के चक्र से, बाकी बचा न कोय।।
जीवन की आपाधापी से त्रस्त, व्यवस्था की विसंगतियों से आहत और आंतकित करते परिवेश से आक्रांत मनस्थितियों का आपने प्रभावी चित्रण किया है। अन्योक्ति से एक गहरा संकेत है।
...और जब ऐसा होता है तो पीछे रह जाता है एक शून्य!...जो कि स्थिरता की चरम सीमा पर होता है!...एक मर्म-वेधक अहसास!...उत्तम रचना!
सुन्दर प्रस्तुति ....
सच इस भगदड़ में जाने क्या क्या खो गया अब तो वो भी याद नहीं!!!!!!!!!!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
क्या लिखती हैं आप .. सच में ऐसा ही तो होता है !!
संगीता दी,
आम आदमी के जीबन जात्रा का मार्मिक बर्नन...
सलिल
Hi..di..
Khwahish ki es rail main dekhi..
Bhavon ki jo railam pel..
Kuchle, dabe ahsaas hain dekhe..
Ajab hai jeevan ka ye khel..
DEEPAK..
Hi..di..
Khwahish ki es rail main dekhi..
Bhavon ki jo railam pel..
Kuchle, dabe ahsaas hain dekhe..
Ajab hai jeevan ka ye khel..
DEEPAK..
Hi..di..
Khwahish ki es rail main dekhi..
Bhavon ki jo railam pel..
Kuchle, dabe ahsaas hain dekhe..
Ajab hai jeevan ka ye khel..
DEEPAK..
Hi..di..
Khwahish ki es rail main dekhi..
Bhavon ki jo railam pel..
Kuchle, dabe ahsaas hain dekhe..
Ajab hai jeevan ka ye khel..
DEEPAK..
sunder abhivykti....
Aaap lag raha apne sahi lekhan se bhatak rahi hain
bahut hi marmik chitran hua mumma.......platform par logon ki bheed ka drishya ghoom gaya ankhon ke aage.....................bahut achhi lagi ye rachna...:)
badhayi...:)
ati uttam
bahut bhaavpradhaan aur sunder kavita...
वाह, बहुत बढ़िया!
घुघूती बासूती
तमाम दिलों की व्यथा-कथा ।
भावनाओं की बेहतरीन और अदभुद अभिव्यक्ति
भगदड़ दुनिया में मची, मारा-मारी होय।
क्रूर-काल के चक्र से, नही अछूता कोय।।
--
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/235.html
बहुत बढ़िया प्रस्तुति .....
मच जाती है
ऐसी भगदड़
जब होता है
एहसास कि
ख्वाहिशों की गाड़ी
दूसरी लाइन
पर आ रही है
सारे सपने
और भावनाएं
एक दूसरे को
कुचलते हुए
कोशिश करते हैं कि
उस गाड़ी को
पकड़ लें .
सुन्दर भाव संगीता जी , नसीब का स्टेशन मास्टर भी अपने रेलवे के स्टेशन मास्टरों से कुछ कम नहीं !
ज़िन्दगी अपने आप में ही समुंदर है कभी शांत तो कभी एकदम अशांत.
सुन्दर प्रस्तुति,
आभार....
ज़िन्दगी की सच्चाई को आपने बड़े ही सुन्दरता से वर्णन किया है ! बहुत बढ़िया लगा!
आपने बहुत सुन्दर लिखा...बधाई.
han sach hai ..par isi bhagdad men shayad 1-2 khwaishen manjil paa jayen ..yahi umeed hai :)
behtareen abhivyakti hamesha kee tarah.
मैं तो बस भगदड़ देख बेतहाशा भागा चला आया हूँ -magar yahaann तो bheed lagee है ,सुन्दर कविता !
ब्लोगरों की अभिव्यक्ति में दर्द ही दर्द से यह साबित होता है की सामाजिक परिवेश दर्दनाक होता जा रहा है जहाँ इन्सान और इंसानी जज्बात के लिए जगह कम होता जा रहा है ,निश्चय ही हमसब को गंभीरता से मिलकर सोचना होगा ...अच्छी भावनात्मक पोस्ट ..
बहुत सुन्दर से बिम्ब जोड़ा है रेल और प्लेटफार्म और दूसरी पटरी के साथ.
दर्द छलक उठा हर पंक्ति में.
बधाई.
Itni achhi baat ki comments kerne vaalon ki bhi Bhaag-bhaag ker aa rahe hai.
In lines men jeevan ki sachhai hai.
hmm...soch raha hun, likhun to kya..sach par kahna bharee ho jata hai na
वाह संगीता जी ! बेहतरीन रचना ... जिंदगी के प्लात्फोर्म पर भावनाओं की भगदड़ ... क्या बात है ...!
भावनाओं की बेहतरीन और अदभुद अभिव्यक्ति
..ख्वाहिशों की गाड़ी दूसरी लाइन पर आ रही है..
..यह एहसास जीने नहीं देता.
..अच्छी कविता.
ये दौड़ है चूहों की यही इसका नियम है
आगे जो बढे सारे उसे मिल के गिराओ
Mera ye sher aapki kahi baat ko siddh kar raha hai...Behtariin rachna...badhai...
पर न ख्याहिशों की गाड़ी रुकती है न उसमें चढ़ने वाले। दौड़ जारी है।
शायद एहसासों, इच्छाओं और्र सपनों को हम भी अकेला छोड़ देते हैं जब भी कोई नया मौका/अवसर देखते हैं। गहराई के साथ अपनी बात रखती हुई कविता...दिल को छू लेती है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत सुन्दर----भावनाओं की बेहतरीन प्रस्तुति।
रचना मे प्रशंसनीय शिल्प और अधुनातम कल्पना है ।
एक दर्द का दरिया है जो आपके भीतर जाने कब से बह रहा है
इसे बहने दीजिए... मुझे अच्छी रचना पढ़ने मिल जाती है. मुझे इस दरिया ने बहुत कुछ दिया है.
आपका शुक्रिया.
बेमिसाल! इतनी गहरी बात और इतने सरल शब्दों में ... वाकई कमाल है
ये आज के युग का सत्य है ... एक दूसरे को कुचलना ...
सुंदर बिंब बनाए हैं इस रचना में आपने ...
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