आज़ादी…… अनेक दृश्य ..
>> Saturday, August 14, 2010
स्कूल में बच्चों को
समझाया गया
कल स्वतंत्रता दिवस है
समय से आना
सफ़ेद ड्रेस पहन कर
जूते चमकते हों
लाईन में चलना
प्रार्थना स्थल पर
शांत रहना
कोई शैतानी नहीं
बच्चे स्तब्ध हैं
इतनी बंदिशें ?
यह कैसा स्वतंत्रता दिवस है ?
|
ट्रैफिक सिग्नल पर एक दस साल का बच्चा छोटे - बड़े झंडे लिए भागता हुआ हर गाडी के पीछे आज आज़ादी का परब है बाबू एक झण्डा ले लो कहता हुआ उसके लिए झण्डा बेचना ही आज़ादी है | |
नेता के लिए आज़ादी का दिन व्यस्तताओं से परिपूर्ण जगह जगह ध्वजारोहण और भाषण लेकिन देश की समस्यायों पर राशन |
आम आदमी को आज़ादी है कुछ भी बोलने की कहीं भी , कभी भी क्यों कि वह संतप्त है , पीड़ित है आक्रोशित मन से बोलना चाहता है बहुत कुछ पर उसकी सुनता कौन है इसी लिए उसकी जुबां मौन है .. |
झुग्गी - झोंपडियों की ज़िंदगी जाड़ों में सर्दी से सिकुडती सी ज़िंदगी बारिश में छतों से टपकती ज़िंदगी गर्मी की धूप में पसीने में बहती ज़िंदगी मौत से गले लग आज़ाद होती ज़िंदगी …. |
51 comments:
बिल्कुल यही तो आज़ादी है…………………आज यही सोच तो हर कोई हतप्रभ है।
एक से बढकर एक नायब मोती पिरोए हैं आपने।
हर मोती अनमोल है।
जै हिंद!
हर पहलु को बहुत बारीकी से उकेरा है आपने. ये पोस्ट का नया स्टाईल भी मनभावन लगा. सुंदर प्रस्तुति जो चित्रों से और भी असरदार बन गयी है.
बधाई.
जय हिंद.
सच्चाई को वयां करती अच्छी रचना ,बधाई
बढ़िया रचना ...सुन्दर प्रस्तुति...
स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं.
Wahwa......kya baat hai...sarthak vyangy...
1--समझाने से भी अब बच्चे स्कूल आना नहीं चाहते.....उनके लिए ये छुट्टी का दिन हो गया है।
२--ट्रेफ़िक सिग्नल पर बेचते है बच्चे ,और खरीद लेते है --बड़े ।
३--ऐसे मौके का ही तो इंतजार करते है ,या इस काम के लिए ही तो बनते है ---नेता।
४--पहले बंधुआ बनाए जाते थे ---अब हम बन चुके हैं --बंधुआ।
५--और बस -----"जय हिन्द" --कहती जिंदगी ।
सच्चाई को उद्घृत करती कविताये, अंतर्मन में कचोट उठती है ये सब देख -सुनकर. असली आजादी तो अभी दूर है .
आजादी के कड़वे पर यथार्थ चित्र दिखा दिया आपने
सूक्ष्म दृष्टि .. सधी हुई कलम
वाह
स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं....
अरे बाप रे बाप आज तो गज़ब ही कर दिया ..क्या निशाने लगाये हैं सटीक एकदम ..और पहला वाला तो बहुत ही अच्छा है .
संगीता दी... आप त आज हमरा वाला रोल चुन ली हैं..आप लोगों को प्रेरना देने वाला कबिता लिखती हैं, लेकिन जब आप भी ऐसा लिखेंगी त हम लोग हताश हो जाएँगे.. मन भारी हो गया... इस्कूली बच्चा पर पाबंदी, सिग्नल पर झंडा बेचने वाला बच्चा, झोंपड़ी में जाड़ा, गर्मी, बरसात झेलने वाला अऊर पता नहीं केतना जुलुम सहने वाला आम आदमी..इसी बीच में नेता लोग भी सामिल हैं... आपका कबिता का क्रम भी बहुत कुछ कहता है..सारा समस्या के बीच में नेता है... अगर ई अनायास हो गया है तब भी सही हो गया है..संगीता दी, यथार्थ!!
आपके सारे चित्र सत्य हैं, पर सत्य कितना सुन्दर हो सकता है?
संगीता जी ,
आज के भारत का सच्चा चित्र खींच दिया है आपने .आम जनता के पैसे पर सुख भोगते और बर्बादी करते लोग ही स्वच्छंद हैं!...पर कब से यह सब सहने वाले भी दोषी नहीं हैं क्या ?
एकदम सटीक और उम्दा रचना ...!!
आजादी की आज के सन्दर्भ में वास्तविकता से पहचान करवा दी आपने |देश की आज़ादी अपने अर्थ खोती जा रही और लोग जश्न मनाकर इसे रस्म बनाते जा रहे है
सच सत्य जानकर मन व्यथित हो जाता है पर हर वर्ष १६ अगस्त और २७ जनवरी को मै अपने घर के आसपास जहन तक मै पहुँच सकती हूँ जमीन पर गिरे हुए छोटे छोटे झंडो को उठा कर पांव तले से बचाने का प्रयत्न करती हूँ |
वन्दे मातरम |
आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..मुझे तो पसंद आई.
________________
स्वतंत्रता दिवस की बधाइयाँ..!!
आजादी के सच पैर गंभीर प्रकाश डाला है
किसी को भी नहीं छोड़ा
यह रचनाएं तीखा व्यंग्य है
क्या बात संगीता जी आजकल आपके तेवर गजब ढा रहे हैं
संगीता जी बिल्कुल सटीक चित्रण है जो आज़ाद भारत की परिभाषा व्यक्त कर रहे है...हमें देश हालत से वाकिफ़ है या नज़रअंदाज करते है ये तो पता नही पर इतना सच है की अँग्रेज़ों को भारत से खदेड़ना ही सच्ची आज़ादी समझते है...जबकि भारत में दिन पर दिन पेट भरने के लिए लोग दासता की जिंदगी जीने को मजबूर होते जा रहे है..
बहुत बढ़िया पोस्ट....स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
आजादी के बहाने बहुत सुन्दर पोस्ट..बधाई.
स्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...जय हिंद !!
आज कि सच्चाई को ......दर्शाती ये रचना .अति उत्तम
स्वतंत्रता दिवस कि ढेर सारी शुभकामनाएं .
"आम आदमी को
आज़ादी है
कुछ भी बोलने की
कहीं भी , कभी भी
क्यों कि वह
संतप्त है , पीड़ित है
आक्रोशित मन से
बोलना चाहता है
बहुत कुछ
पर उसकी
सुनता कौन है"
सुनने ना सुनने की भी तो आजादी है आखिर!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
सच को सच लिखा है आपने...मुझे आखिरी वाली सबसे ज्यादा अच्छी लगी कविता के तौर पर..और कुछ कहूँ ऐसा मन नहीं रहता आज मेरा...कोई खुश होने की बात तो नहीं दिखती मुझे.
bahut hi acha laga pad kar..
likhte rahiyega....
happy independence day.
संगीता जी,
रचना(ओं) में
’परत दर परत’खोलकर रख दी है आपने...
स्वतंत्रता और स्वछंदता
के अंतर को समझने के लिए...
ऐसा चिंतन ज़रूरी है...
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
जय हिंद
http://rimjhim2010.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html
स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
हर एक छन्द ने क्या लाख टके के सवाल खडे किये, वाह !
संगीता जी
सादर नमस्ते
सबसे पहले तो स्वतंत्रता दिवस की
ढेर साडी सुभ कामनाएं ......
और फिर आप का तहे दिल से सुकर गुजार हूँ |
की आप मेरा मनोबल बढ़ाये ही जा रही है ..
बहुत ख़ुशी है कि आप जैसे महान लेखिका का सरक्षण मिल रहा है...
बहुत ही अच्छी रचना है
और उसकी प्रस्तुति बड़ी ही प्रभाऊ पूर्ण है
स्वतंत्रता दिवस के अउसर पर अच्छा सन्देश देती है
बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
--
मेरी ओर से स्वतन्त्रता-दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!
--
वन्दे मातरम्!
रचनाओं के दृश्य अति प्रशंसनीय ।
हर पहलु को बहुत बारीकी से उकेरा है आपने.ऐसा लगा कि किसी अखबार की फीचर सम्पादक हों आप !विलम्ब के लिए क्षमा करें .
samay हो तो अवश्य पढ़ें:
पंद्रह अगस्त यानी किसानों के माथे पर पुलिस का डंडा
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_15.html
sundar blog!
bhaavon ki pragalbhta aur sateek abhivyakti ke liye badhai.....
subhkamnayen!
it was wonderful going thru ur blog:)
सुन्दर अभिव्यक्ति,
प्रशंसनीय.
आजादी के मतलब को जब उलटा कर रख दिया जाता है, तब यही होता है!...सुंदर व्यंग्य!
सभी रंग बखूबी दिखाया आपने...सटीक सार्थक चोट करती बेंधती.....
दिल को छूती,बहुत ही सुन्दर पोस्ट...सभी रचनाएं मन में उतर इसे मायूस बोझिल कर गयीं.पर यही तो इसकी सार्थकता है.....
आज़ादी के सारे रंग दिखा दिए आपने ......
पोस्ट पर काफी मेहनत की है आपने ......!!
बहुत खूब ! स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सटीक और सार्थक रचना ... वैसे तो सारे रंग लाजवाब हैं लेकिन मुझे सबसे अच्छा बच्चों का सवाल लगा
"इतनी बंदिशें ?
यह कैसा स्वतंत्रता दिवस है ?"
आजादी के दृश्यों को परिलक्षित करती एक महत्वपूर्ण पोस्ट...बधाई.
'डाकिया डाक लाया' पर भी आयें तो ख़ुशी होगी.
करारा व्यंग है आज़ादी के जश्न पर ..... आज़ादी के सही मायने ढूँढती रचना ...
कुछ व्यस्तताओं के चलते ब्लॉगजगत को जरुरी समय न देने का अफसोस रहता है. यहाँ भी देर से ही आ ही पाया...
क्षणिकाओं के माध्यम से कितने ही कटु सत्यों पर सटीक प्रहार..बेहद उम्दा. बधाई.
kya kuch nahi kaha aapne , sara marm nichoD ke rakh diya hai .............
जय हिंद.
Yahi Sachchaai hai.
बड़े सवाल उठाती...
छोटी-छोटी सी बढ़िया रचनाएं......बेहतर...
well describe "Freedom"
yahi he azadi ka matlab
आपकी आजादी की ये मारमिक कविताएँ बहुत अच्छी लगीं .
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