मैंने सीखा है !!
>> Sunday, August 8, 2010
पीड़ा से लड़ना
मैंने सीखा है
पीड़ा को दास
बनाना सीखा है
फिर मैं
पीड़ा से कैसे
डर जाऊं
जब उस पर
अधिकार जमाना
सीखा है
कभी कभी
मन जब
यूँ ही
आहत हो जाता है
अश्कों का सागर भी जब
नैनों पर लहराता है
जैसे कोई तूफां जब
मन में थोड़ा
गहराता है
उस पल मैंने
पलकों पर
बाँध बनाना
सीखा है ....
तरकश के सब
शब्द तीर जब
मुझ तक आ कर
टकराते हैं
मन के हर कोने को
जैसे घायल सा
कर जाते हैं
उन जख्मों से
फिर जैसे बस
खून टपकता रहता है
उन ज़ख्मों पर भी मैंने
मरहम रखना
सीखा है ......
मन की
गंगा भी जब
बाढ़ लिए
चली आती है
खुशी से
लहलहाते खेतों का
विशाल विध्वंस
कर जाती हैं
उन खेतों पर भी मैंने
मेंड़ बनाना
सीखा है .....
51 comments:
खुशी से
लहलहाते खेतों का
विशाल विध्वंस
कर जाती हैं
उन खेतों पर भी मैंने
मेंड़ बनाना
सीखा है .....
Yah to badee sadhana hai! Gar ye seekh liya to sab saadh liya! Kamalki abhivyakti hai yah!
तरकश के सब
शब्द तीर जब
मुझ तक आ कर
टकराते हैं
मन के हर कोने को
जैसे घायल सा
कर जाते हैं
उन जख्मों से
फिर जैसे बस
खून टपकता रहता है
उन ज़ख्मों पर भी मैंने
मरहम रखना
सीखा है ......
वाह, बेहतरीन भाव ! सोना आग में तपकर ही तो खरा होता है ...
मन की
गंगा भी जब
बाढ़ लिए
चली आती है
खुशी से
लहलहाते खेतों का
विशाल विध्वंस
कर जाती हैं
उन खेतों पर भी मैंने
मेंड़ बनाना
सीखा है .....
सच कहा ……………।ज़िन्दगी के हर पहलू से सारी ज़िन्दगी इंसान कुछ ना कुछ सीखता ही रहता है।
अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
"जैसे कोई तूफां जब मन में थोड़ा गहराता है उस पल मैंने पलकों पर बाँध बनाना सीखा है ...."
अद्भुत, भावभीनी रचना है संगीता जी, बधाई.
व्यक्ति को महावीर तभी कहा जाता है जब वह विकट परिस्थितियों का हँसी-खुशी से सामना करता है। हर टूट्फूट के बाद फिर से उठ खड़ा होता है।
अति उत्तम प्रस्तुति।
Behad sunadr kaavy Sangeetaji.
यही तो जीवन है की अगर इसको अपना कर ही जीवन का पूरा आनंद लिया जा सकता है. जिन्दगी की हर शै का आनंद लेने का नाम ही तो अनुभव है तभी वह कटु और मधुर पता चलता है.
बहुत सुन्दर लिखा है
आपसे मुझे भी सीखना चाहिए.
बहुत सुन्दर संगीताजी ! आपकी साधना, आपकी लगन और आपकी प्रतिकार की अदम्य क्षमता को कोटि-कोटि प्रणाम ! यही हौसला चाहिए हर कठिनाई पर विजय पाने के लिये ! और अपनी जीत पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये ! हमें आपसे बहुत कुछ सीखना है !
कभी कभी
मन जब
यूँ ही
आहत हो जाता है
अश्कों का सागर भी जब
नैनों पर लहराता है
जैसे कोई तूफां जब
मन में थोड़ा
गहराता है
...कठिन परिस्थिति पर काबू पाना ही जीवन है!...सुंदर रचना!
पीड़ा से लड़ना
मैंने सीखा है
पीड़ा को दास
बनाना सीखा है
बहुत सुंदर प्रस्तुति !!
सकारात्मकता से ओतप्रोत
संगीता दी,
यह कविता तो किसी भी थके हारे और निराश व्यक्ति के अंदर स्फ़ूर्ति का संचार कर सकने में समर्थ है.. एक प्रेरणादायी रचना...
सलिल
पुनश्चः “अधिकार ज़माना” में से “ज” के नीचे की बिंदी निकाल दें... शब्द का अर्थ बदल जाता है.
आशा का संचार करती इस शिक्षाप्रद रचना के पढ़वाने के लिए धन्यवाद!
bahut hi adbhut rachna hai .....
अश्कों का सागर भी जब
नैनों पर लहराता है
जैसे कोई तूफां जब
मन में थोड़ा
गहराता है
kitni saralta se aap ne kitna kuch kaha dala
thanks
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.....पलकों का बाँध और खेतों पर मेंड़ की उपमाएं बहुत ही नायाब
हैं..
उम्दा बिम्ब!! सुन्दर अभिव्यक्ति.
बधाई.
मन की
गंगा भी जब
बाढ़ लिए
चली आती है
खुशी से
लहलहाते खेतों का
विशाल विध्वंस
कर जाती हैं
उन खेतों पर भी मैंने
मेंड़ बनाना
सीखा है .....
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
बहुत सुंदर प्रस्तुति !!
संगीता दी,
आप जीबन में जो सीखी हैं, ऊ आपके कबिता में झलकता है... असली बात त ई है कि उसको दुनिया को बताकर आप एलान करती हैं कि जब हम तो तुम क्यों नहीं...सचमुच प्रेरनादायक रचना...
बहुत सुंदर रचना -
इतना सीख जाने पर जीवन जीना आसान हो जायेगा -
जीने की कला सिखाती हुई रचना -
बहुत सुंदर .
आत्मविश्वास को उर्जा प्रदान करती रचना।
जख्मों पर मरहम रखना सीखा है
खेतों पर मेड़ बनाना सीखा है ...
तू मेरे सब्र की इंतिहा देख
मेरी पलके अभी तक नम ना हुई ...!
बहुत ही सुन्दर है। पीड़ा को जी लेना ही उस पर विजय पाने जैसा है।
पीड़ा से कैसे
डर जाऊं
जब उस पर
अधिकार जमाना
सीखा है
...waah, ye hai sahi raaj jivan ka
वैष्णव जन तो उसको कहिए,
पीर पराई जाने जो...
जय हिंद...
बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।
दीदी,
उस पल मैंने
पलकों पर
बाँध बनाना
सीखा है ....
बहुत कुछ सिखा देती है ज़िंदगी हमें और हर पल सिखाती ही जा रही है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....
बस यही सीख लिया ..फिर क्या गम ..यही तो जिंदगी है ..
बेहतरीन भाव ..मर्म्सपर्शी कविता दी !
संगीता जी जिस ने ये सीख लिया उसने ही जिन्दगी को सही मायनों मे जीया है। बहुत सुन्दर प्रेरक और सार्थक रचना है बधाई।
बहुत सुन्दर भाव..बधाई.
Hi di..
Dard ko apna daas banana,
khushi ya gum main bhi muskaana..
Humne "di" se seekha hai..
Apni "di" se seekha hai..
Bahut vilakshan sabak.. Di..
Thnx..
Deepak..
..उस पल मैंने
पलकों पर
बाँध बनाना
सीखा है ....
..नई उर्जा देती मार्मिक अभिव्यक्ति.
aacha aishaas dilati kavita
पीड़ा से लड़ना
मैंने सीखा है
पीड़ा को दास
बनाना सीखा है
..सकारात्मक, प्रेरक और सार्थक अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद!
बस वाह...वाह...और वाह !!!!
मन छूकर हिलकोर गयी आपकी यह रचना...
बहुत बहुत बहुत गहरे उतर गयी मन में...
और क्या कहूँ,समझ नहीं पा रही...
सुंदर प्रस्तुति ...
रचना जीवन्तता का संदेश देती है ।
उत्साह युक्त .पराक्रम का बोध ।
अद्भुत, भावभीनी रचना है संगीता जी, बधाई.
सुंदर भाव..जीवन में हर पल ऐसी घटनाएँ होती रहती है जिससे कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है और वो मन को एक ताक़त दे जाती है..बढ़िया रचना के लिए धन्यवाद संगीता जी
bahut hi sundar rachna......
Meri Nayi Kavita Padne Ke Liye Blog Par Swaagat hai aapka......
A Silent Silence : Ye Paisa..
संगीता जी ,
आपके कमेंन्ट्स पढ़ कर मुझे बहुत अच्छा लगता है |आप बहुत अच्छा लिखतीं हैं |यह रचना बहुत अच्छी लगी |बधाई
आपको शायद पता न हो साधना वैद मेरी छोटी बहन है |
वह अक्सर आपकी बात करती है | जब भी मैं आपको अपने ब्लॉग पर देखती हूं मेरी ख़ुशी का पारावार नहीं रहता |
आशा
पलकों पर
बाँध बनाना
सीखा है ...
खेतों का
विशाल विध्वंस
कर जाती हैं
उन खेतों पर भी मैंने
मेंड़ बनाना
सीखा है .....
बहुत सुन्दर रचना.. हौसला हो तो क्या कुछ नहीं हो सकता ... पलकों पर बाँध हो या विध्वंस के बाद का पुनर्निर्माण , सब संभव है
संगीता जी
बहुत ही सुन्दर कविता है
जीवन से भरी आपकी कविता
मजबूर करे जीने के लिए जीने के लिए ....
आभार
Waah!! kya baat hai ...ye rachaana to prashanshaaon se bhi pare hai. uttsaah badati lajawab rachana.
aapki post ne yah sabit kar diya hai ki koshish
karne walon ki kabhi haar nahi hoti.
bahut hi shandaar abhivykti.
poonam
जिसने मेड़ बनाना सीख लिया उसने दूसरों के लिए रास्ता बनाना सीख लिया.
नए विचार का स्वागत है
अपने लिए तो सभी जीते हैं कविता में दूसरों का ख्याल है इसलिए रचना का फलक अपने आप बड़ा हो जाता है
बधाई
आशा है ... खुद पर भरोसा रखने की कामना ... उत्साह का संचार करती रचना है ... सच है जिसने दर्द से लड़ना सीख लिया उसे कभी दुख नही सताता ....
Nari man ke bahvon ko
bakhoobi darshati hui aapki
ye rachna,
behtreen Sirjan DI
पलकों पर बाँध बनाना मुझे भी सीखना है..घडी दो घडी मैं बह जाता है,सब.
पीडा को सहने..आंसुओं को रोकने ज़ख्मों पे मरहम लगाने की शिक्षा देती...प्यारी रचना.
खुशी से
लहलहाते खेतों का
विशाल विध्वंस
कर जाती हैं
उन खेतों पर भी मैंने
मेंड़ बनाना
सीखा है .....
बेहतरीन।
सादर
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