पत्थर हो गयी हूँ ......
>> Sunday, August 29, 2010
ख़्वाबों की दुनियाँ में
आज
एक तूफ़ान आया था
खुली आँखों से
एक भयानक
ख्वाब आया था
मन था मेरा
ऐसी नाव पर सवार
जिसमें न नाविक था
और न थी पतवार
फंस गयी थी नाव
मेरी बीच मंझधार
मैं चिल्ला रही थी
बार - बार .
बचाओ मुझे बचाओ ...
पर नहीं हुआ किसी को
मेरी बात पर यकीन
और डूब गयी
नाव मेरी
ऐसी नदी में
जो थी जलहीन ...
बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ ...
62 comments:
वाह ---!
बहुत ही सुन्दर भाव के साथ आपने रचनाकारी की है!
--
चित्र भी बहुत सुन्दर है!
बिल्कुल रचना के अनुरूप!
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना .... आभार
बेह्द खूबसूरत दिल मे उतर जाने वाली रचना……………सुन्दर भाव संयोजन्।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
चिंतनपरक अभिव्यक्ति !
बहुत ही भावुक प्रस्तुति।
bhn ji bhut khub dil ki vythaa ko khubsurt alfaazon men byaan kiyaa he preshaani ki ghdi ka chitrn jivnt he. akhtar khan akela kota rajsthan
bahut khoob Sangitaji!...aap ka khwaab aaj lagbhag har kisi ka khwaab hai!...asuraksha ki bhaavana har kisi ke man mein ghar kiye hue hai!...sundar rachna, badhaai!
बहुत ही भावुक रचना...दिल में गहरे उतर जानेवाली
वाह, संगीता जी, सुन्दर रचना के लिए बधाई.
संगीता दी,
आज आपका कबिता पर बस मौन रहकर नत होने का मन करता हैं!!
सलिल
दर्द से भीगी अभिव्यक्ति दिल में निशाँ छोडती सी.
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! आपकी लेखनी के बारे में जितना भी कहा जाए कम है! आपकी लेखनी को सलाम!
बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ ...
बहुत सुन्दर और गहरे भावों को आपने बहुत ही सहजता के साथ शब्दों में पिरोया है---हार्दिक शुभकामनायें।
आपका टेम्पलेट बहुत ही शानदार लग रहा है
एकदम नया लुक है
एक बार फिर बेहतर रचना लिखने के लिए बधाई
ललित भाई ने भी जो परिश्रम किया है उसके लिए मैं उन्हें अभी जाकर साधुवाद देता हूं.
बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ .
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ! कविता की तरह ही असरदार दोनों तस्वीरें ! आपकी रचना ने तो दिल ही जीत लिया !कितना अच्छा लिखती हैं आप ! बहुत बहुत साधुवाद आपको !
सपने जब टूटते हैं तो इंसान जड़वत् हो जाता है। उसकी भावनाएं समय के क्रूर थपेड़ों की चोट से पत्थर की तरह हो जाती हैं। कुछ इन्ही भावनाओं को समेटे आपकी यह रचना अभिव्यक्ति दे रही है।
कई बार ऐसा होता है कि हमारा अस्तित्व अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य से जूझता हुआ खुद को ढूंढता रहता है। स्मृतियों और वर्तमान के अनुभव एक-दूसरे के सामने आ खड़े होते हैं। ऐसे में यह समझना कठिन हो जाता है कि हम जीवन जी रहे हैं या जीवन हमें जिए जा रहा है। या हमारी तरल संवेदना पत्थर-सी हो गई है।
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ! आपका नया टेम्पलेट बहुत सुन्दर है!
मुझे तो मोर बहुत ही अच्छे लगते हैं।
.
संगीता जी,
पता नहीं क्यूँ ये कविता मुझे खुद पर उपयुक्त लग रही है, शायद हर स्त्री की यही नियति है। काश मैं भी पत्थर हो जाऊं या फिर डूब जाऊं।
.
बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ ..
-बहुत उम्दा!
Itni samvedansheel rachnakar kabhi patthar ho sakti hai?
जीवन की जटिलताएं ...............अच्छी रचना है.......
कविता के भाव को चित्र ने बखूबी उभारा ।
इस कविता का दार्शनिक अंदाज बेरतरीन है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इतना सारा अंतर blog template में???
अच्छा है... :)
कविता पर...आज कुछ नहीं, मौन प्रशंसा. :) :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति। बहुत अच्छी कविता।
हिंदी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
संग्रहणीय प्रस्तुति!
एक सुंदर कविता.
बहुत सुंदर पंक्तियाँ......... अंतिम पंक्तियों ने तो दिल को छू लिया....
बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ ...
nihshabd
शायद किसी राम का इंतजार करना होगा।
बहुत सुंदर लिखा है और शलेन्द्र साब के गीत की एक लाइन याद आ रही है -डूब गए बीच भंवर में करके सोलह पार.आप ने लिखा है
और डूब गयी
नाव मेरी
ऐसी नदी में
जो थी जलहीन
सच में अहसास की शिद्दत से लिखी गई रचना है.एक शेर ज़हन में आ रहा है -डूबते हुए हाथ साहिल को पुकार कर रह गए /हाय वोह तिनका भी ना था जिसे सफीना जाना
आपने तो इससे आगे ही बात लिख दी .बहुत खूब मोहतरमा
दिल के जज़्बातों को ज़ुबान दी है आपने ... कुछ ख्वाब ऐसे ही होते हैं ... जीवन रुक जाता है जिन्हे देख कर ...
अच्छी प्रस्तुति.
बहुत सुन्दर कविता लिखी आपने ...बधाई.
बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ ..।
बहुत खूब, आपके इन पंक्तियों ने तो भावमय कर दिया, बहुत ही अनुपम प्रस्तुति ।
संगीता जी
कमाल कर दिया आपने तो बहुत गहरे अंतर्मन तक जाती है इस कविता की आखिरी पंक्तिया |
बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ ...
-सुन्दर
संगीता जी ,इस संवेदना में कासी हुई रचना के लिए आप को हार्दिक बधाई.
bahut hi sunder .
बिना पानी के आज...मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी...पर आज हो गयी हूँ ...
रचना और चित्रों का प्रभावशाली संगम...
अपना एक शेर सुनाएं!
कुदरत से तो मिला था मुझे आईना मगर
इस दिल को हादसात ने पत्थर बना दिया.
सबसे पहले तो आपका टेम्पलेट देखती ही रह गई !
और इस कविता के विषय में क्या कहूँ -बस मौन रह कर अनुभव कर रही हूँ उस अनुभूति को ग्रहण कर रही हूँ .-
और डूब गयी
नाव मेरी
ऐसी नदी में
जो थी जलहीन ...
बहुत गहन !
-
Rekha Srivastava to me
संगीता,
कमेन्ट बॉक्स नहीं खुल रहा है, इस लिए नीचे वाला कमेन्ट में डाल देना.
-रेखा
सूखी नदी में पत्थर ही हुआ करते हैं, लेकिन एक गीतकार पत्थर नहीं हुआ करते. उनके शब्दों से पत्थर भी पिघल कर शीशा बन जाते हैं.
बहुत सुन्दर रचना.
बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ ..
Bahut gahara prabhav chodati hai dil par yah rachan Di.....Aabhar.
are itna sundar tamplet aur ye rachna bhi ....ab itni saree tareef ke liye shabd nahi hain mere pass.
bas Love u ittaaaa saraaa
और डूब गयी
नाव मेरी
ऐसी नदी में
जो थी जलहीन ...
बहुत गहन दिल मे उतर जाने वाली रचना
बहुत ही अनुपम प्रस्तुति ।
बहुत सुंदर भाव --
कई बार वाकई लगता है जैसे
वक़्त के साथ सहिष्णुता कुछ कम सी होती क्यों जा रही है -
सुंदर कविता के लिए बधाई .
ज़बरदस्त रचना... बहुत आभार...
दी नमस्ते
आशा करता हूँ आप अछि होंगी
समय अभाव के कारन आज कल थोडा मुस्किल हो रहा है किन्तु कोई बात नहीं
यही जीवन है.....
बहुत ही प्यारी रचना है दी !
और ये पंक्तियाँ तो....
**
बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ ...
***
मन को छु गयी ...
और हम्म
आप का ब्लॉग बहुत सुन्दर लग रहा है ....(":")
bahut hi behtareen!!!!!!!!
gaane ki ek line yaad aa rhi hai.....'maanjhi jab naw duboye use kaun bachaye..."
"pattharon ne bhi naaw ko dubte dekha tha shayad...tabhi paani nahi thaharta ab wahaan"...!!!
बहुत सुन्दर रचना...श्री कृष्ण-जन्माष्टमी पर ढेर सारी बधाइयाँ !!
________________________
'पाखी की दुनिया' में आज आज माख्नन चोर श्री कृष्ण आयेंगें...
सुन्दर रचना
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये
बहुत सुंदर भाव लिए कविता |बधाई |जन्माष्टमी पर आपको सपरिवार शुभ कामनाओं के साथ |
आशा
सुन्दर रचना
"बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ ..."
रचना के अंदर आपने कितने भाव एक साथ पिरो दिये।
गहराई को नाप कर चलती हैं आप।
आभार।
हरमिन्दर सिंह
सुंदर अभिव्यक्ति.....भावपूर्ण रचना के लिए बधाई संगीता जी
संगीता जी,
जड़ होते हुये भावों ने चेतना का संचार कर दिया.... बहुत ही सुन्दर भाव ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
वाह! क्या बात है, तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं!
वाह! क्या बात है, तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ रहे हैं!
बिना पानी के आज
मैं खो गयी हूँ
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ .
सुंदर अभिव्यक्ति......
Sunder kavita.....badhaai
पत्थर तो नहीं थी
पर आज हो गयी हूँ ...
अब आप ही बताइए ..इस ख्याल की कैसे तारीफ़ करूँ
ऊपर जो भी कहा गया है उस सब को मिला दूँ तो मेरे मन के भाव समझो .
बंधाई इस खूबसूरत ख्याल के लिए
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