copyright. Powered by Blogger.

कमी नहीं होती ...

>> Monday, November 21, 2011

कोई भी मंजिल 
अंतिम नहीं होती 
ज़िंदगी में लक्ष्यों की 
कोई कमी नहीं होती .

मंजिल पाने के लिए 
निरतता*  होनी चाहिए 
फिर रास्ते बनने के लिए 
पगडंडियों की कमी नहीं होती .

पगडंडियों  के लिए भी 
तितिक्षा*  होनी चाहिए 
यवस पर चलते हुए 
पगों की  कमी नहीं होती .

लक्ष्य को भेदने के लिए 
जिगीषा* होनी चाहिए 
फिर तुणीर* में 
तीरों की कमी नहीं होती .

इस हौसले को लेकर 
जो जिए ज़िंदगी 
उसके जीवन में 
त्विषा* की कमी नहीं होती ..


निरतता -- आसक्ति 

तितिक्षा*---धैर्य , सहनशीलता 

यवस -- घास , दूब

जिगीषा* --- जीतने की इच्छा 

तूणीर -- तरकश 

त्विषा --- किरण , आभा , ज्योति 

तलाश प्रेम की

>> Thursday, November 10, 2011





कस्तूरी मृग 
कस्तूरी की चाह में 
आधूत हो 
फिरता है दर - बदर 
होता है लहुलुहान 
और तोड़ देता है दम 
पर 
नहीं खोज पाता 
कस्तूरी को 
जो बसती है 
उसीकी नाभि में ,

उसी तरह तुम 
प्रेम का वास 
स्वयं के हृदय में
रखते हुए 
व्याकुल मन लिए 
फिरते हो मारे मारे 
विक्षिप्त से हुए 
प्रेम का राग 
अलापते हुए 
प्रेम को ही 
करते हो लांछित 
महज़ अपनी 
तृप्ति के लिए 
पर फिर भी ,
कहाँ हो पाते हो तृप्त
क्या खतम होती है 
कभी प्रेम की तलाश ?


तुमने प्रेम पुष्प नहीं 
बल्कि 
चाहत के कुसुम सजाये हैं 
जिनके रंग देख 
तुम्हारे दृग 
स्वयं ही भरमाये हैं 
जिस दिन तुम 
कस्तूरी को 
खोज पाओगे 
सहज ही तुम 
प्रेम को 
पा जाओगे ...









ज़िद

>> Wednesday, November 2, 2011


clouds-m6n7.jpg (1292195 Byte) cloud sky picture



मन के बादल 
उमड़ घुमड़ कर 
क्यों  जल 
बरसा जाते हैं 
सीले सीले से 
सब सपने 
आँखों से 
झर जाते हैं 

उलट - पलट कर 
फिर मैं उनको 
धूप दिखाया 
करती हूँ 
गंध हटाने को 
मैं उनको 
हवा लगाया 
करती हूँ .

सूख धूप में 
फिर से वो 
मेरी आँखों में 
सज जाते हैं 
उमड़ घुमड़ कर 
बादल फिर से 
जल की गगरी 
भर लाते हैं .

बादल और मुझमे 
जंग हरदम 
रहती है बस 
छिड़ी हुयी 
खुद को जीत 
दिलाने को मैं 
हरपल  रहती 
अड़ी  हुयी 

देखें आखिर 
किसकी ज़िद 
अपना रंग 
दिखलाएगी 
कभी तो मेरी 
आँखों में 
धानी चुनरी 
लहराएगी .....

सोने का पिंजर ... अमेरिका और मैं ...

>> Tuesday, November 1, 2011

ajeet gupta

सोने का पिंजर ... अमेरिका और मैं ...
पिछले कुछ दिनों पूर्व मुझे डा० अजीत गुप्ता जी द्वारा लिखी यह पुस्तक पढने को मिली ... पुस्तक को पढते हुए लग रहा था कि सारी घटनाएँ मेरे सामने ही उपस्थित होती जा रही हैं ..यह पुस्तक उन लोगों को दिग्भ्रमित होने से बचाने  में सहायक हो सकती है जो अमेरिका के प्रति भ्रम पाले हुए हैं .निजी अनुभवों पर लिखी यह एक अनूठी  कृति है .
" अपनी बात " में कथाकार लिखती हैं कि उन्हें आठवें विश्व हिंदी सम्मलेन में भाग लेने के लिए अमेरिका जाने का सुअवसर मिला .. उनको देखने से ज्यादा देश को समझने की चाह थी ...रचनाकार के मन में बहुत सारे प्रश्न थे  कि ऐसा क्या है अमेरिका में जो बच्चे वहाँ जा कर वहीं के हो कर रह जाते हैं ..वहाँ का जीवन श्रेष्ठ मानते हैं ..माता पिता के प्रति अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं .वो अपनी बात कहते हुए कहती हैं कि --" मैंने कई ऐसी बूढी आँखें भी देखीं हैं जो लगातार इंतज़ार करती हैं , बस इंतज़ार | मैंने ऐसा बुढ़ापा भी देखा है जो छ: माह अमेरिका और छ: माह भारत रहने पर मजबूर है . वो अपना दर्द किसी को बताते नहीं ..पर उनकी बातों से कुछ बातें बाहर निकल कर आती हैं ..


अजीत जी का मानना है कि -- अमेरिका नि: संदेह सुन्दर और विकसित देश है .. वो हमारी प्रेरणा तो बन सकता है पर घर नहीं ..
पुस्तक का प्रारंभ संवादात्मक शैली से हुआ है .. कथाकार सीधे अमेरिका से संवाद कर रही हैं ..जब वो बच्चों के आग्रह पर अमेरिका जाने के लिए तैयार हुयीं तो उनको वीजा नहीं मिला .. उस दर्द को सशक्त शब्दों में उकेरा है ...२००२ अप्रेल माह से जाने की  चाह पूरी हुई जुलाई २००७ में  जब  उनको अवसर मिला विश्व हिंदी सम्मलेन में भाग लेने का तब ही वो अमेरिका जा पायीं ..ज़मीन से जुड़े कथानकों  से यह पुस्तक और रोचक हो गयी है .. महानगर और गाँव की  पृष्ठभूमि को ले कर लिखी घटना सोचने पर बाध्य करती है ..
अमेरिका जिन बूढ़े माँ बाप को वीजा नहीं देता उसे भी सही बताते लेखिका हुए कहती हैं  -- " मेरे देश की  लाखों बूढी आँखों को तुमसे शिकायत नहीं है , बस वे तो अपने भाग्य को ही दोष देते हैं . वे नहीं जान पाते कि गरीब को धनवान ने सपने दिखाए हैं , और उन सपनों में खो गए हैं उनके लाडले पुत्र . मैं समझ नहीं पाती थी कि तुम क्यों नहीं आने देते हो बूढ़े माँ बापों को तुम्हारे देश में ? लेकिन तुम्हारी धरती पर पैर रखने के बाद जाना कि तुम सही थे .क्या करेंगे वे वहाँ जा कर ? एक ऐसे पिंजरे में कैद हो जायेंगे जिसके दरवाज़े खोलने के बाद भी उनके लिए उड़ने के लिए आकाश नहीं है ...तुम ठीक करते हो उन्हें अपनी धरती पर न आने देने में ही समझदारी है . कम से कम वे यहाँ जी तो रहे हैं वहाँ तो जीते जी मर ही जायेंगे ...
इस पुस्तक में बहुत बारीकी से कई मुद्दों को उठाया है ..जैसे सामाजिक सुरक्षा के नाम पर टैक्स वसूल करना ..बूढ़े माता पिता की  सुरक्षा करना वहाँ की  सरकार का काम है .. भारतीयों से भी यह वसूल किया जाता है पर उनके माता पिता को वहाँ बसने की  इजाज़त नहीं है ... वरना सरकार का कितना नुकसान हो जायेगा ...यहाँ माता पिता क़र्ज़ में डूबे हुए अपनी ज़िंदगी बिताते हैं ..
अमेरिका पहुँच कर होटल में कमरा लेने और भोजन के लिए क्या क्या पापड़ बेलने पड़े वो सब विस्मित करता है ..
पूरी पुस्तक  में भारत और अमेरिका को रोचक अंदाज़ में लिखा है ..अमेरिका की अच्छाइयां हैं तो भारत भी बहुत चीजों में आगे है ..
अपने अमेरिका प्रवास  के अनुभवों को बाँटते हुए यही कहने का प्रयास किया है कि हम भारतीय जिस हीन भावना का शिकार हो जाते हैं  ऐसा कुछ नहीं है अमेरिका में ... वो तो व्यापारी है ..जब तक उसे लाभ मिलेगा वो दूसरे देश के वासियों का इस्तेमाल करेगा ..
इस पुस्तक को पढ़ कर  अमेरिका के प्रति  मन में पाले भ्रम काफी हद तक कम हो सकते हैं ..रोचक शैली में लिखी यह पुस्तक मुझे बहुत पसंद आई ..
पुस्तक का नाम -- सोने का पिंजर .. अमेरिका और मैं
लेखिका --  डा० ( श्रीमती ) अजीत गुप्ता
प्रकाशक --- साहित्य चन्द्रिका प्रकाशन , जयपुर
प्रथम संस्करण -  २००९
मूल्य -- 150 / Rs.
ISBN - 978- 81 -7932-009-9

हमारी वाणी

www.hamarivani.com

About This Blog

आगंतुक


ip address

  © Blogger template Snowy Winter by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP