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अलगनी पर टंगे ख्वाब

>> Wednesday, December 9, 2009



चाहत की अलगनी पर


टांग दी थी


मैंने अपने


ख़्वाबों की पैरहन ।


उम्मीद का चाँद भी


देख रहा था उन्हें


बड़ी हसरत से


ख़ुशी की शबनम ने


भिगो दिया था


और कर दिया था


सीला - सीला सा


प्यार की बयार ने भी


सहलाया था धीरे से ।



पर


वक़्त के सूरज ने


भेज दिया था


नाउम्मीद का


प्रचंड ताप


और अलगनी पर ही


टंगे टंगे


झुलस गए थे


सारे मेरे ख्वाब ॥



20 comments:

दिगम्बर नासवा 12/09/2009 2:40 PM  

बहुत कमाल के बिंबों से सजाया है आपने लाजवाब रचना को ......... अक्सर कुछ ख्वाब झुलस जाते हैं ववत की गर्मी से ........

मनोज कुमार 12/09/2009 2:42 PM  

भाषा की सर्जनात्मकता के लिए बिम्बों का उत्तम प्रयोग, अच्छी रचना। बधाई।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) 12/09/2009 2:47 PM  

अलगनी पे टंगे ख्वाब...... बहुत ही सुंदर शीर्षक के साथ ......... बहुत बेहतरीन कविता.........

shikha varshney 12/09/2009 3:04 PM  

वाह वाह और वाह... क्या ख्वाब टाँगे हैं और क्या सुखाएं हैं ....सॉरी झुलसाये हैं...दी शब्दों का चयन और बुनाई देखते ही बन रही है...कमाल लिखा है बस.और हाँ शीर्षक भी धांसू है एकदम [;)]

shikha varshney 12/09/2009 3:08 PM  

अरे हाँ.....एक बात तो रह ही गई...पिक्चर भी कमाल का ढून्ढ निकला है आपने...taddy भी है हा हा हा .....वो मुझे चाहिए.

रंजना 12/09/2009 3:09 PM  

WAAH ...... KOMAL BHAVON KO BAHUT HI KHOOBSOORTI SE AAPNE ABHIVYAKTI DI HAI...

Amrendra Nath Tripathi 12/09/2009 3:46 PM  

लेकिन सूरज के बिना कपड़े सूखेगें भी नहीं ..

महेन्द्र मिश्र 12/09/2009 3:51 PM  

रस्सी पे टंगे आपके ख्वावो के पहरन... बेहतरीन अंदाज ....

अनिल कान्त 12/09/2009 3:51 PM  

कविता निसंदेह बहुत अच्छी और एहसासों से ओत-प्रोत है. अच्छी लगी पढ़कर.

शब्द पहरन कहीं पैरहन तो नहीं

vandana gupta 12/09/2009 4:07 PM  

bahut hi zabardast rachna.............prateekon ke madhyam se rachna mein char chand laga diye hain.

संगीता स्वरुप ( गीत ) 12/09/2009 4:11 PM  

anil ji,

shukriya , rairahan shabd ko durust karwaane ka.


aap sabhi ka aabhaar ki aapne rachna ko samay diya .

रश्मि प्रभा... 12/09/2009 7:30 PM  

अलगनी पर ही ख्वाब झुलस गए.........और ज़िन्दगी बेरंग हुई........
इतने गहरे जज़्बात.....झुलस ही नहीं सकते

Dr. Ashok Kumar Mishra 12/10/2009 12:49 AM  

बहुत अच्छा लिखा है आपने । भाव, विचार और शिल्प का सुंदर समन्वय रचनात्मकता को प्रखर बना रहा है । मैने भी अपने ब्लाग पर एक कविता लिखी है। समय हो तो पढ़ें और कमेंट भी दें-
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com

अनामिका की सदायें ...... 12/11/2009 2:34 PM  

bahut acchhi rachna...khwaab khawabo k roop me hi sajeele aur sunder lagte hai jaise hi yathharth ki dhara par utarte hai rang badalne lagte hai...bahut khoobsurat shabdo se ehsaaso ko dhaala hai..

pic.selection bahut pyara hai...ye teddy bear ka dressup to kamaal hai..

स्वप्न मञ्जूषा 12/11/2009 3:59 PM  

संगीता जी,
आपके अलगनी में टंगे ख्वाब....आपकी कविता..उसे जुडी तस्वीर और आपके मुखरित भावों के लिए मेरे पास एक शब्द है 'कमाल'
सबकुछ मनोरम लगा...!!

36solutions 12/12/2009 7:31 PM  

ताप का परिमाप.

सुन्‍दर रचना.

Apanatva 12/12/2009 8:38 PM  

Sangeetaji itanee sunder rachana hai ki tareef ke liye shavdo kee kamee
mahsoos ho rahee hai aisa mere sath kum hee hota hai .

Sweta sinha 12/17/2021 12:59 PM  

ओह्हो हृदयस्पर्शी भावपूर्ण सृजन दी।
एक से बढ़कर एक उपमाएं... वाह 👌

रेणु 10/09/2022 12:00 AM  

बहुत उपमाओ में दर्द पिरोया है आपने प्रिय दीदी! जीवन में प्रेम की सुकुमारता की उम्र बहुत छोटी होती [है।मार्मिक अभिव्यक्ति जो मन को छू गई 🙏🌹🌹

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