वृद्धाश्रम
>> Monday, December 28, 2009
दर्जनों बूढी आँखें
थक गयी हैं
पथ निहारते हुए
कि शायद
उस बड़े फाटक से
बजरी पर चलता हुआ
कोई अन्दर आए
और हाथ पकड़
चुपचाप खड़ा हो जाये
कान विह्वल हैं
सुनने को किसी
अपने की पदचाप
चाहत है बस इतनी सी
कि आ कर कोई कहे
हमें आपकी ज़रुरत है
और हम हैं आपके साथ
पर अब
उम्मीदें भी पथरा गयी हैं
अंतस कि आह भी
सर्द हो गयी है
निराशा ने कर लिया है
मन में बसेरा
अब नहीं छंटेगा
अमावस का अँधेरा
ये मंज़र है उस जगह का
जहाँ बहुत से बूढ़े लोग
पथरायी सी नज़र से
आस लगाये जीते हैं
जिसे हम जैसे लोग
बड़े सलीके से
वृद्धाश्रम कहते हैं........
22 comments:
बहुत सुंदर कविता....दिल को छू गई....
भगवान किसी को वृद्धाश्रम नसीब ना करे।
भावुक कर गया शब्द चित्र का भाव!!
---
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
Very touching ! par aaj kee hakeekat to ye hee hai.
badee hee pyaree rachana.
Very touching ! par aaj kee hakeekat to ye hee hai.
badee hee pyaree rachana.
bahut maarmik manzer dikha diya aapne budhape ka. such me ham sab aise kathore hridye kaise ho gaye hai jo apne buzurgo ko vridhaashram ki raah dikha dete hai. mujhe bhi aane wale kal ki tasveer dikhayi dene lagi hai.
acchha chitran aur sudrad rachna k liye badhayi ke sath nav varh ki shubhkaamnaye.
सादर वन्दे
क्योंकि हम आधुनिक हो गए हैं!
रत्नेश त्रिपाठी
भाव पूर्ण मार्मिक रचना ..... युवा समाज को आईना दिखला दिया आपने ... काश आज की युवा पीडी कुछ दर्द महसूस करे ...........
आपको नव वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ...........
javab nahi ..laajavab
bahut hi marmik , dil ko chuti , samvedansheel rachna...........ek sabak deti huyi..........agar aaj nhi sanwara to kal hashra yahi hona hai.
कान विह्वल हैं सुनने को
किसी अपने की
पदचाप ......
संगीता जी बहुत ही मार्मिक भाव लिए आपकी ये नज़्म जितनी भी तारीफ करूँ कम है ....क्योंकि हर किसी की नज़र वो नहीं देख पाती जो आपने देखा ......शुक्रिया .....!!
behd dard liye marmik kavita shayd isko pdhkar hi unki umeede jeevan pa jaye .antrmn ko choo gaye ye ahsas.
चाहत है बस इतनी सी
कि आ कर कोई कहे
हमें आपकी ज़रुरत है
और हम हैं आपके साथ
पर अब
उम्मीदें भी पथरा गयी हैं
अंतस कि आह भी
सर्द हो गयी है
निराशा ने कर लिया है
मन में बसेरा
अब नहीं छंटेगा
अमावस का अँधेरा
मन को उद्वेलित करने के साथ ही आज के समाज के बारे में बहुत कुछ चिन्तन करने को मजबूर कर रही है आपकी यह कविता----शुभकामनायें।
पूनम
संवेदनाएं मृतप्रायः हैं,संस्कार की जगह ;स्व' की भाषा पैनी है.........काश ! यह रचना कोई द्वार खोल पाने में कामयाब हो जाये !
पथरायी सी नज़र से
आस लगाये जीते हैं
जिसे हम जैसे लोग
बड़े सलीके से
वृद्धाश्रम कहते हैं........
नम कर गयीं आँखे ...इतनी मार्मिक रचना है..,.क्यूँ
भूल जाते हैं,सब एक दिन सबका ये हाल होना है..एक कविता मैंने भी लिखी थी.. "उम्र की सांझ का बीहड़ अकेलापन"
http://mankapakhi.blogspot.com/2009/12/blog-post_14.html
सच-मुच...
एक मार्मिक रचना
आज का अनोखा सच
अभिवादन स्वीकारें
संगीता जी आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ अच्छा लगा बड़ा मीठा सा दर्द है लगभग सभी कविताओं में बधाई स्वीकारें
नववर्ष पर हार्दिक बधाई आप व आपके परिवार की सुख और समृद्धि की कामना के साथ
सादर रचना दिक्षित
आपकी प्रस्तुति वृद्धाश्रम के बारे में तो सिर्फ इतना ही कहूँगी की ये एक बहुत बेहतरीन रचना गंभीर भाव लिए हुए इसके आगे कुछ कह नहीं सकती क्योंकि मैं निशब्द हूँ
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत बधाई .....
बहुत सुन्दर रचना
Di, gehri baat...aur kehne ka andaaz...jaisa ki maine pehle bhi kaha tha ki kavi aur aam insaan me bas yehi farq hota hai ki kavi ek baat ko aise keh deta hai ki wah baat asar chhod jaati hai. Aisi hi kavita ek yeh bhi rahi. asardaar rachna.
--Gaurav
ओह! पारिवारिक जीवन से निष्काषित इन बूढ़ी आँखों का मार्मिक शब्द चित्र आँखें नम कर गया प्रिय दीदी।चाहूंगी ये सब कभी अपनी आँखों से ना देखूँ! कयोंकि कुछ कर ना पाऊँ शायद पर देखकरग्लानि भाव से कभी मुक्त नहीं हो सकूँगी! मार्मिक अभिव्यक्ति जो दिल को बींध गयी 😞😞🙏🙏
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