मुखौटा
>> Saturday, December 19, 2009
मैंने नहीं चाहा कि
कोई मेरे दिल के नासूरों को
रिसते हुए देखे ,
और ये भी नहीं चाहा कभी कि
कोई मेरे मन के छालों पर
फाहे रक्खे ।
पर फिर भी दिल
दुखता तो है
दर्द होता तो है ।
लोग कहते हैं कि
दर्द हद से गुज़र जाये तो
ग़ज़ल होती है
सच ही है ये
क्यों कि
मेरी लेखनी भी
कागज़ से लिपट रोती है
नहीं चाहा कभी किसी को
मेरे दर्द का अहसास हो पाए
इसीलिए आ जाती हूँ
सबके बीच
हंसी का मुखौटा लगाये .
22 comments:
सुंदर पंक्तियों के साथ बहुत सुंदर कविता....
इसीलिए आ जाती हूँ
सबके बीच
हंसी का मुखौटा लगाये .
सच में ..... हमें कई बार दर्द को छुपाना ही पड़ता है....
bahut bahut achhaa hai
कोई भी मुखौटा कितने शातिराना अंदाज में क्यों न लगाया जाए, एक न एक दिन वह उतर ही जाता है।
------------------
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
बहुत सुन्दर कविता. दिल में भीतर तक पैठती हुई. धन्यवाद.
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
नहीं रोता दर्द सिर्फ कागजों के संग
जाने कितनी आँखों से टपकता है.......
दर्द का मुखौटा लगाने से बेहतर है हंसी का मुखौटा पहन लिया जाए ....!!
मेरी लेखनी भी
कागज़ से लिपट रोती है
नहीं चाहा कभी किसी को
मेरे दर्द का अहसास हो पाए
इसीलिए आ जाती हूँ
सबके बीच
हंसी का मुखौटा लगाये .
kya baat kahi aur sach kahi hai.............bahut khoob.
निर्मला कपिला said...
संगीता जी क्या लाजवाब लिखा है मेरी लेखनी भी कागज़ से लोपट कर रोती है। बिलकुल सही कहा। बहुत से दुख इन्सान जो अपनों से नहीं कह पाता वो कागज़ों से कह लेता है। मेरी ये पँक्तियाँ आपके नाम
ये तमाम रिश्ते मेरे लिये गुमनाम बन गये
कागज़ के चन्द टुकडे मेरे दिल के राज़दां बन गये
शुभकामनायें
निर्मला जी.
आपकी इस रचना पर दी गयी टिपण्णी मैंने यहाँ पोस्ट कर दी है...
असल में इस रचना का मुझे printout निकलना था इसलिए अपने दूसरे ब्लॉग में पोस्ट की थी.
मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुयी की आपने मुझे वहाँ भी पढ़ा. बहुत बहुत शुक्रिया .
बाकी तीन साथियों की टिप्पणियां भी यहाँ पोस्ट कर रही हूँ...उनका भी आभार .
आप सबकी टिप्पणियां मेरी लेखनी की ताकत है.
शुक्रिया
क्रिएटिव मंच said...
waaah ...bahut khoob
khubsurat bhaav
behtareen kavita
aabhaar
kya bhav hain. kya kahan hai aur kya soch hai, umda, badhai.
dweepanter said...
बहुत सुंदर रचना
pls visit...
www.dweepanter.blogspot.com
12 December 2009 18:16
Devendra said...
अच्छे भाव
सुंदर कविता
15 December 2009 08:48
नहीं चाहा कभी किसी को
मेरे दर्द का अहसास हो पाए
इसीलिए आ जाती हूँ
सबके बीच
हंसी का मुखौटा लगाये
हंसी के मुखौटे दर्द को छुपा नही पायेंगे. गज़ल बनकर फिर भी नज़र आ ही जायेगी.
बहुत सुन्दर
आप लाख मुखौटे लगाएं
दर्द तो दर्द है
आँखों से छलक ही जाता है.
एक भावपूर्ण रचना है.
- सुलभ
bahut sunder.
bhut accha likhatee hai aap.
मैंने नहीं चाहा कि
कोई मेरे दिल के नासूरों को
रिसते हुए देखे ,
yahi to mushkil hai.log doorbeen liye baithe hai aur kuchh log to haath dho kar peechhe pad jate hai na...jabardasti even nasoor footne ka waqt,din aur halaat bhi poochhte hai...ch.ch.ch..i hate dt gyes...(ha.ha.ha.)
और ये भी नहीं चाहा कभी कि
कोई मेरे मन के छालों पर
फाहे रक्खे ।
aap jaisi majbooti kash ham jaiso ko bhi mil paaye. hey bhagwaaaaaaaaannnn kithe ho tusi sun lo jara .....
पर फिर भी दिल
दुखता तो है
दर्द होता तो है ।
लोग कहते हैं कि
दर्द हद से गुज़र जाये तो
ग़ज़ल होती है
सच ही है ये
क्यों कि
मेरी लेखनी भी
कागज़ से लिपट रोती है
par kagaz bhi to log search kar kar k padh lete hai na....????
नहीं चाहा कभी किसी को
मेरे दर्द का अहसास हो पाए
इसीलिए आ जाती हूँ
सबके बीच
हंसी का मुखौटा लगाये .
ha.ha.ha...is baat par ek geet ki line yaad aa gayi..
duniya badi jalim hai dil tod ke hasti hai...
ab isme me ek line mila du..
duniya badi jalim hai mukhoto k neeche bhi jhaankti hai....
ha.ha.ha...nice post...
badhayi.....galti maaf.
संगीता जी,
'पर फिर भी
दिल दुखता तो है...
भावनाओं को सटीक शब्दों में पिरोया है आपने
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
सच ही है ये
क्यों कि
मेरी लेखनी भी
कागज़ से लिपट रोती है ...
सच है .. तभी तो आँसू स्याही बन कर बह जाते हैं काग़ज़ पर, बिखर जाते हैं शब्द बन कर .......... दर्द के मर्म को उडेल दिया है आपने ...........
कवि का दर्द ना चाहते हुए सबको नज़र आ जाता है 😞🙏
Post a Comment