सागर
>> Friday, December 18, 2009
तुम सागर हो
मैं इसके साहिल पे
सीली सी रेत पर बैठ
तुम्हारी लहरों की
अठखेलियाँ निहारती हूँ
और उन लहरों को देख
सुकून पाती हूँ ।
जानती हूँ कि
तुम्हारे गर्भ में
दर्द की
ना जाने कितनी
वनस्पति उगी है
हर छोटे बड़े
पेड़ पर
एक दर्द टंगा है
पर तुम उन्हें
सुप्तावस्था में ही
रहने दो
बस अपनी लहरों से
सबको उल्लसित करो
लेकिन
जब भी कोई पेड़
सिर उठाये
और अपना तेज़ाब
तुम तक पहुंचाए
तुम मुझे आवाज़ देना
मैं वो सब दर्द
पी जाउंगी
और थोड़ी सी
तुम्हारी उम्र
जी जाउंगी.
21 comments:
गहरे भाव समेटे हुए सुंदर रचना
बहुत अच्छी कविता है लगता है मैने पहले भी इसे पढा है । संवेदनाओं को सुन्दर शब्दों से सजाया है। दर्द भी स्कून देता है ये पढ कर बधाई
अत्यन्त सुन्दर प्रविष्टि । खूबसूरत कविता । आभार ।
बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
जब भी कोई पेड़ अपना तेज़ाब तुम तक पहुंचाए........मैं हूँ ना !
बहुत ही बढ़िया
मैं हूँ ना.......बहुत बढ़िया है दी
gahre bhav sanjoye hain.
bahut sunder rachana.
Badhai.
bahut sunder rachana.
Badhai.
जानती हूँ कि
तुम्हारे गर्भ में
दर्द की
ना जाने कितनी
वनस्पति उगी है
हर छोटे बड़े
पेड़ पर
एक दर्द टंगा है ...
इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया......
बहुत सुंदर कविता....
आभार......
main kya kahoon mumma aunty.....pehle bhi kaha tha...k maa ki mamta wali fikr hai...aur anubhavi hriday ka chhupa hua aagrah....saare takleefein mang lene ka..............:)
BAHUT SUNDER RACHNA...:D
Badhayi..:)
मैं वो दर्द पी जाउंगी ...तुम्हारी उम्र जी जाउंगी ...हर नदी सागर से यही तो कहना चाहती है ...
बहुत सुन्दर कविता ...!!
तुम मुझे आवाज़ देना
मैं वो सब दर्द
पी जाउंगी
और थोड़ी सी
तुम्हारी उम्र
जी जाउंगी.
शायद यही हम सभी करते आये हैं...
बाहुत ही भावमयी कविता आपकी....हृदयस्पर्शी...
तुम सागर हो
मैं इसके साहिल पे
सीली सी रेत पर बैठ
तुम्हारी लहरों की
अठखेलियाँ निहारती हूँ
और उन लहरों को देख
सुकून पाती हूँ ।
kisi apne k hotho ki hansi sukoon hi deti hai. hai na.
जानती हूँ कि
तुम्हारे गर्भ में
दर्द की
ना जाने कितनी
वनस्पति उगी है
हर छोटे बड़े
पेड़ पर
एक दर्द टंगा है
jo kareebi hote hai vo awaaz se to kya door se hi jaan lete hai apno ka dard. kyuki unke man k taar mile hote he na.(ha.ha.)
पर तुम उन्हें
सुप्तावस्था में ही
रहने दो
ab ye to na-insafi hai huzoor...ho sakta hai vo aapka marham pakar thoda sukoon pa jaye.aur un dard bhare ehsaso ko hamesha k liye supt kar pane me bhi safal ho jaye....aji janaab aapka kya jata hai gar faahe rakh doge thode pyar k to.
बस अपनी लहरों से
सबको उल्लसित करो
vo to logo ko dikhane k liye hai na..sagar ki gehrayi me kya he vo to apne jaante hai na.
लेकिन
जब भी कोई पेड़
सिर उठाये
और अपना तेज़ाब
तुम तक पहुंचाए
तुम मुझे आवाज़ देना
मैं वो सब दर्द
पी जाउंगी
succhhhhhh???? par itni door mat jana ki awaz na vo de paye..na aap sun pao.
और थोड़ी सी
तुम्हारी उम्र
जी जाउंगी.
lol ye to dharam sankat me daal diya...bhala vo apka apna b to aapko aisi isthiti me nahi daalna chahega na...
isliye ho sakta he yahi soch kar vo aapko apne garbh me chhupe dard na dikhaye.
Sangeeta ji rachna mere mann k kinaro ko bhi bhigo gayi. bahut acchhi meri pasand ki si rachna. jawab ke style ko dekh umeed karti hu bura nahi manengi..aur bura lage to maafi chaahungi.
शनिवार १७-९-११ को आपकी पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया पधार कर अपने सुविचार ज़रूर दें ...!!आभार.
वाह! बहुत सुन्दर.
गहन भाव जगाती अनुपम
प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.
जब भी कोई पेड़
सिर उठाये
और अपना तेज़ाब
तुम तक पहुंचाए
तुम मुझे आवाज़ देना
मैं वो सब दर्द
पी जाउंगी
और थोड़ी सी
तुम्हारी उम्र
जी जाउंगी.
वाह!..बेहतरीन!
सादर
वाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
bhau hi sundar....
....तुम मुझे आवाज़ देना
मैं वो सब दर्द
पी जाउंगी
और थोड़ी सी
तुम्हारी उम्र
जी जाउंगी.....
लाज़वाब दी...
सादर..
सागर से उसका महासागर सा दर्द पीने की प्रबल लालसा
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