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धुरी ज़िंदगी की

>> Wednesday, April 1, 2009

ज़िंदगी -

एक धुरी पर टिकी है

और उस धुरी पर ही

घूमती रहती है

नियमित , निरंतर

गर ज़रा सा भी

हो जाए धुरी में परिवर्तन

तो ज़िंदगी

बिखर जाती है

और आ जाते हैं

भूकंप और जलजले से

ज़िंदगी में।

और फिर ज़िंदगी को

धुरी पर लाना

नामुमकिन नही तो

मुश्किल ज़रूर होता है

और इस तरह हर इंसान

अपनी ज़िंदगी में

न जाने कब

क्या और कितना खोता है

यूँ तो हिसाब से भी

नही चलती ज़िंदगी

सब कुछ बेहिसाब होता है

पाना हो या खोना

किसी का हिसाब नही मिलता

फिर ज़िंदगी

पकड़ती है एक धुरी

और बस

यूँ ही चलती रहती है

ज़िंदगी एक निश्चित धुरी पर.

5 comments:

masoomshayer 4/01/2009 1:01 PM  

bahut achee lagee ye dhuree kee kalpna apa kalpnayon ka vicharon ka samndar hain

Anil

निर्झर'नीर 4/03/2009 4:27 PM  

dhuri pe ghoomna aasan bhi to nahii
kya karen haalat ke zajlzale santulan bigad hi dete hai..bahot sahii vyakhaya ki hai zindgii ki aapne ..ati sundar

पूनम श्रीवास्तव 4/04/2009 10:42 PM  

आदरणीय संगीता जी ,
बहत सुन्दर ..भावनात्मक कविता है आपकी ...
पूनम

अनामिका की सदायें ...... 4/09/2009 12:59 PM  

हो जाए धुरी में परिवर्तन
per sochne ki baat hai ki parivartan kyu hota hai???? lekin parivartan sansar ka niyam hai to kahi.n na kahi.n, kabi na kabi partivartan hona wazib hai..aur isliye zindgi me utar-chadaav aane bhi sambhav hai...lekin shri krishn k anusar..hey manav tu dukhi mat ho..ye waqt ka badlaav he...koi waqt ek sa nahi rehta..so.

धुरी पर लाना
नामुमकिन नही ...
aur thoda saber kare aur shanti se is sailaab ko guzer jane de..yahi waqt ka takaza hai..

फिर ज़िंदगी
पकड़ती है एक धुरी
और बस
यूँ ही चलती रहती है
ज़िंदगी एक निश्चित धुरी पर.
-aur yahi saar hai..yahi rasta hai...yahi yathaart hai..!!

ek gehri soch liye apki ye kavita zindgi ko chhu jane wali..

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