मुस्कराहट की चाहत
>> Saturday, April 18, 2009
लोग कहते कि
समाज बदल रहा है
शिक्षा का
प्रसार हो रहा है
लड़कियां लड़कों के साथ
कंधे से कन्धा मिला कर
आगे बढ़ रही हैं
और बेटियाँ बेटों की
जगह ले रही हैं ।
पर सोच है कि-
वहीँ की वहीँ खड़ी
है
भारतीय परिवेश में
आज भी लड़की का
कोई स्वतंत्र आस्तित्व
नज़र नहीं आता है
कहने को लोग
पढ़े - लिखे हैं
पर पुरातनपंथी ही बने रहना
उनको भाता है ।
आज भी कन्या को
जायदाद समझा जाता है
विवाह पर
उन्हें दान किया जाता है ।
कहने को बेटियाँ
आज अर्थ भी कमाती हैं
पर क्या सही अर्थों में
अपने मन की कर पाती हैं?
आज भी
जात - बिरादरी की जंजीरें
उनके पांवों की
बेडियाँ बनी हुई हैं
माँ -बाप की ख़ुशी के
आगे उनकी इच्छा
दांव पर लगी हुई है
कहाँ कुछ बदला है?
बदला है तो
बस इतना ही कि-
लड़कियों को
सोचने की ताकत तो दी है
पर सोचने की आज़ादी नही
धन कमाने की
चाहत तो दी है
पर उपभोग की इजाज़त नही
आज कहने को आजाद भी हैं
पर बंधनों से आज़ादी नहीं ।
गर सच में
आज़ादी पानी है
तो पहले अपनी सोच को
बुलंद करना होगा
ख़ुद की सोच के बंधनों से
ख़ुद को आजाद करना होगा
तभी मिलेगा वो मुकम्मल आसमां
जिसको पाने की चाहत की है
तभी खिलेगी मुस्कराहट चेहरे पर
जिसको पाने की तमन्ना की है।
3 comments:
sabkuch kahne ke liye hai....soch me badlaaw zaruri hai,par hona !
.......sthiti ka sahi chitran
Bahut sundar aur yatharthparak chitran.
poonam
रचना करती, पाठ-पढ़ाती,
आदि-शक्ति ही नारी है।
फिर क्यों अबला बनी हुई हो,
क्या ऐसी लाचारी है।।
प्रश्न-चिह्न हैं बहुत,
इन्हें अब शीघ्र हटाना होगा।
नारी के अस्तित्वों को,
फिर भूतल पर लाना होगा।।
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