copyright. Powered by Blogger.

पत्थर हो गयी हूँ ......

>> Sunday, August 29, 2010



ख़्वाबों  की दुनियाँ में 
आज 
एक तूफ़ान आया था 
खुली आँखों से 
एक भयानक 
ख्वाब आया था 
मन  था मेरा 
ऐसी नाव पर सवार 
जिसमें न नाविक था 
और न थी  पतवार 
फंस गयी थी  नाव 
मेरी बीच मंझधार 
मैं चिल्ला रही थी 
बार - बार .
बचाओ  मुझे बचाओ ...

पर नहीं हुआ किसी को 
मेरी बात पर यकीन 
और डूब गयी 
नाव मेरी 
ऐसी नदी में 
जो थी जलहीन ...

बिना  पानी के आज 
मैं खो गयी हूँ 
पत्थर तो नहीं थी 
पर आज हो गयी हूँ ...






नीला आसमान

>> Thursday, August 26, 2010

[lahren.bmp]

मैं -

आसमान हूँ ,

एक ऐसा आसमान 

जहाँ बहुत से 

बादल आ कर 

इकट्ठे हो गए हैं 

छा गई है बदली 

और 

आसमान का रंग 

काला पड़ गया है।


ये बदली हैं 

तनाव की , चिंता की 

उकताहट और चिडचिडाहट की 

बस इंतज़ार है कि 

एक गर्जना हो 

उन्माद की 

और -

ये सारे बादल 

छंट जाएँ 


जब बरस जायेंगे 

ये सब तो 

तुम पाओगे 

एक स्वच्छ , चमकता हुआ 

नीला आसमान...





नारी मन की थाह

>> Sunday, August 22, 2010



सदियों से करते आए हो

खामोश तुम नारी को

आज भी यही चाहत है

खामोशी के सन्नाटे में

बस तुम्हारी ही आवाज़

गुंजित  रहे ..

सुकून मिलता है तुम्हें

दंभ  अपना दिखा कर

तुम्हारी चाहत के अनुरूप ही

सुर  हमारा बदलता  रहे

ख्वाहिशों को

अंजाम देने के लिए

कभी मनुहार करते हो

पर उसमें भी तो

आदेश का स्वर भरते हो

दिखाते तो हो जैसे

ख़ुशी के इन्द्रधनुष

पर हर धनुष पर

एक बाण भी रखते हो

आहत हो जाती हैं

भावनाएं कोमल मन की

बिखर जाती हैं जैसे

पत्ती - पत्ती किसी गुल की

तुम्हारे अहम् तले पंखुरियां

रौंद  दी  जाती हैं

और नारी फिर भी

उफ़  तक नहीं कर पाती है

जूझती रहती है वो

अपने अंतर्मन से

सिलती रहती है ज़ख्म

सहनशीलता के फ़न  से 

उसके इस फ़न  को तुम

मान लेते हो उसकी  कमजोरी

और समझते रहते हो कि

ये है उसकी मजबूरी

काश -

कभी उसके मन की

पहली पर्त ही खोल पाते

तो नारी के मन की तुम

थाह  ही पा जाते......
 
 
 
 
 

सुडोकू .....और ज़िंदगी

>> Tuesday, August 17, 2010




सुडोकू खेलते हुए 

मैं अक्सर 

सोचने लगती हूँ 

ज़िंदगी  के बारे में ,

और मुझे 

लगने लगता है कि

ज़िंदगी भी 

सुडोकू ही है .

जहाँ 

हर खाना 

निश्चित है 

एक सही आंकड़े 

के लिए 

एक गलत नंबर 

और खेल 

रह जाता है 

अनसुलझा हुआ ...





आज़ादी…… अनेक दृश्य ..

>> Saturday, August 14, 2010



स्कूल में बच्चों को 

समझाया गया 

कल स्वतंत्रता दिवस है 
समय से आना 
सफ़ेद ड्रेस पहन कर 
जूते चमकते हों 
लाईन  में चलना 
प्रार्थना स्थल पर 
शांत रहना 
कोई शैतानी नहीं 
बच्चे  स्तब्ध हैं 
इतनी बंदिशें ? 
यह कैसा स्वतंत्रता दिवस है ?


ट्रैफिक सिग्नल पर
एक दस साल का बच्चा
छोटे - बड़े झंडे लिए
भागता हुआ
हर गाडी के पीछे
आज आज़ादी का
परब है  बाबू
एक झण्डा ले लो
कहता हुआ
उसके लिए
झण्डा बेचना ही
आज़ादी है |


नेता के लिए
आज़ादी का दिन
व्यस्तताओं से परिपूर्ण
जगह जगह ध्वजारोहण
और  भाषण
लेकिन
देश की समस्यायों पर राशन


आम आदमी को
आज़ादी है
कुछ भी बोलने की
कहीं भी , कभी भी
क्यों कि वह
संतप्त है , पीड़ित है
आक्रोशित मन से

बोलना चाहता है 
बहुत कुछ 
पर उसकी 
सुनता कौन है 
इसी लिए 
उसकी जुबां 
मौन है ..


झुग्गी - झोंपडियों की ज़िंदगी
जाड़ों में सर्दी से
सिकुडती सी ज़िंदगी
बारिश में छतों से
टपकती ज़िंदगी
गर्मी की धूप में
पसीने में
बहती ज़िंदगी
मौत से गले लग
आज़ाद होती ज़िंदगी ….

मैंने सीखा है !!

>> Sunday, August 8, 2010







पीड़ा से लड़ना 

मैंने सीखा है 

पीड़ा को दास 

बनाना सीखा है 

फिर मैं 

पीड़ा से कैसे 

डर जाऊं 

जब उस पर 

अधिकार जमाना 

सीखा है 


कभी कभी 

मन जब 

यूँ ही 

आहत हो जाता है 

अश्कों का सागर भी जब 

नैनों पर लहराता है 

जैसे कोई तूफां जब 

मन में थोड़ा 

गहराता है 

उस पल मैंने 

पलकों पर 

बाँध बनाना 

सीखा है ....


तरकश के सब 

शब्द तीर  जब 

मुझ तक आ कर 

टकराते हैं 

मन के हर कोने को 

जैसे घायल सा 

कर जाते हैं 

उन जख्मों से 

फिर जैसे बस 

खून टपकता रहता है 

उन ज़ख्मों पर भी मैंने 

मरहम रखना 

सीखा है ......


मन की 

गंगा भी जब 

बाढ़ लिए 

चली आती है 

खुशी से 

लहलहाते खेतों का 

विशाल विध्वंस 

कर जाती हैं 

उन खेतों पर भी मैंने 

मेंड़  बनाना  

सीखा है .....



भगदड़.....

>> Tuesday, August 3, 2010






ज़िन्दगी के 

प्लैटफार्म  पर  

कभी कभी 

भावनाओं की  

मच जाती है 

ऐसी भगदड़ 

जब होता है 

एहसास कि 

ख्वाहिशों की गाड़ी

दूसरी लाइन 

पर आ रही है 

सारे  सपने 

और भावनाएं 

एक दूसरे को

कुचलते हुए 

कोशिश करते हैं कि

उस गाड़ी को 

पकड़  लें .

और 

इस कोशिश में 

हो जाती हैं 

कितनी ही घायल 

और कुछ 
समा जाती हैं 
असमय ही 

मौत के क्रूर 

गाल में ....

 






हमारी वाणी

www.hamarivani.com

About This Blog

आगंतुक


ip address

  © Blogger template Snowy Winter by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP