खामोशियाँ
>> Thursday, March 11, 2010
खामोशियाँ
जब बोलती हैं
ज़ेहन का
वर्क - दर- वर्क
खोलती हैं
होठ हिलते नहीं हैं
मगर
मन ही मन
ना जाने कितने
राज़ खोलती हैं
आँखों में
उतर आते हैं
कितने ही सैलाब
जब खामोश लब
बोलते हैं
लफ्ज़ जुबां से
निकलते नहीं
फिर भी
तास्सुरात
चेहरे के
बोलते हैं .
आज मेरे तुम्हारे
दरमियान
पसरी है
सन्नाटे की चादर
जिस पर
मेरी खामोशी ने
लिख दी है
एक इबारत .
इबारत की खामोशी को
खामोश ही रहने दो
मुझे आज खुद से
खुद को कुछ कहने दो
जब बोलती हैं
ज़ेहन का
वर्क - दर- वर्क
खोलती हैं
होठ हिलते नहीं हैं
मगर
मन ही मन
ना जाने कितने
राज़ खोलती हैं
आँखों में
उतर आते हैं
कितने ही सैलाब
जब खामोश लब
बोलते हैं
लफ्ज़ जुबां से
निकलते नहीं
फिर भी
तास्सुरात
चेहरे के
बोलते हैं .
आज मेरे तुम्हारे
दरमियान
पसरी है
सन्नाटे की चादर
जिस पर
मेरी खामोशी ने
लिख दी है
एक इबारत .
इबारत की खामोशी को
खामोश ही रहने दो
मुझे आज खुद से
खुद को कुछ कहने दो
26 comments:
वाह सन्नाटे पर ख़ामोशी की इबारत...बहुत खुबसूरत अंदाज है,,,,बहुत कुछ कह गई आपकी ये खामोशियाँ.
"जब बोलती हैं
ज़ेहन का
बर्क - दर- बर्क
खोलती हैं
होठ हिलते नहीं हैं
मगर
मन ही मन
ना जाने कितने
राज़ खोलती हैं"
ख़ामोशी की भाषा बहुत भायी - हार्दिक बधाई
इबारत की खामोशी को
खामोश ही रहने दो
मुझे आज खुद से
खुद को कुछ कहने दो
bahut khoobsoorat.......
इबारत की खामोशी को
खामोश ही रहने दो
मुझे आज खुद से
खुद को कुछ कहने दो
खामोशी जब कुछ कहती है
सब्र की दीवारें तब ढहती हैं
बहुत खूब
आखिर की दो पंक्तियाँ बहुत उच्च हैं ,मैंने तो अपने आपको जोड़ा लिया इन दो पक्तियो से ,सच में बहुत ही अच्छी .
विकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
आज मेरे तुम्हारे
दरम्याँ
पसरी है
सन्नाटे की चादर
जिस पर
मेरी खामोशी ने
लिख दी है
एक इबारत .
.आपकी कलम ने तो खामोशी की कई परतें खोल कर रख दिन......बहुत बढ़िया...
kitna sahi likha he...
khamoshiya jehan ka vark-dar-vark kholti hai...
TASSURAT lafz ka prayog ati uttam laga.
aur rachna par kya kahu...itni acchhi lagi ki mere vicharo par bhi khamoshi ki ibarat izad ho gayi hai..aur maun aankho se maun daad de rahi hai..
kabool farmaiyega..
wah bahut hi achchi kavita.
बहुत बढ़िया...थोड़े से शब्दों में आपने जितना भावपूर्ण गीत रचा है उतना ही चित्र भी मनोहारी है.
बेहतरीन अभिव्यक्ति...कभी कभी.खामोशियाँ बहुत कुछ कह जाती है.....बढ़िया रचना बधाई
आज मेरे तुम्हारे
दरम्याँ
पसरी है
सन्नाटे की चादर
इबारत की खामोशी को
खामोश ही रहने दो
मुझे आज खुद से
खुद को कुछ कहने दो
बहुत अच्छी रचना। चुपचाप सहना और स्वयं से वर्तालाप ही एकमात्र विकल्प रह गया है?
रहिमन एक दिन वे रहे, बीच न सोहत हार
वायु जु ऐसी बह गई, बीचन परे पहार
शानदार होती है खामोशी की भाषा ।
Waah! kya kahu main aapki is rachana ke aage waah waah waah bahut kam hai Khamoshi ko itani sundar zubaan di hai aapane ki wo bhi bol uthi ...bahut pasand aai yah rachana!
Aabhar
बहुत खूब सन्नाटे की अपनी आवाज़ होती है शुक्रिया
मगर
मन ही मन
ना जाने कितने
राज़ खोलती हैं"
ख़ामोशी की भाषा बहुत भायी - हार्दिक बधाई
बहुत ही लाजवाब लगी रचना , बधाई ।
meri khamosh vismit aankhen vark dar vark kah rahi hain.......kya likha hai, bemisaal
wakai kavita apane aap me khamoshi samete huye hai gaharai se ek khoobsurat andaaj me.
poonam
जब बोलती हैं
ज़ेहन का
बर्क - दर- बर्क
खोलती हैं
होठ हिलते नहीं हैं
मगर
मन ही मन
ना जाने कितने
राज़ खोलती हैं"
क्या कहूँ निशब्द हूँ आपकी इस रचना पर ।बधाई
आपके भावो की गहराई सागर से कम नहीं होती ..हमेशा की तरह जवाब नहीं रचना का लाजवाब
बंधाई स्वीकारें .......
बहुत ख़ूबसूरत रचना! अक्सर ख़ामोशी हर बात कह देती हैं और ज़ुबान खोलने की ज़रुरत नहीं होती! सुन्दर प्रस्तुती!
kitni saadgi se ..gunjit hota hai khamoshi ka shor......kya ham sabhi is shor se bach paate hain...
कितनी मुखर हो उठी है ख़ामोशी की बिना कुछ बोले ही बहुत कुछ कह गयी
आभार
आज मेरे तुम्हारे
दरमियान
पसरी है
सन्नाटे की चादर
जिस पर
मेरी खामोशी ने
लिख दी है
एक इबारत .
bahut khoob....bahut hi shaandaar lekhan
badhayee ho
bahut hi sundar bhav piroye hain di aapne is kavita me
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