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एक मुलाक़ात ...शहीद की आत्मा से

>> Tuesday, March 23, 2010



कल रात



एक विचित्र बात हो गयी


स्वप्न में भगत सिंह की


आत्मा से


मेरी मुलाकात हो गयी




ज़र- ज़र थी बहुत


पीड़ित थी वेदना से


लहू लुहान थी वो


अपनों की प्रताड़ना से


विस्मित सी बस मैं


देखे जा रही थी


उस आत्मा ने मुझ पर


जैसे दृष्टि जमा दी थी


बोली हौले से -


ऐ मेरे भारतवासी


चाहती हूँ बांटना मैं


अपनी थोड़ी सी उदासी


भूलो तुम शहीदों को तो


कोई बात नहीं है


रखो वतन की याद


बस हमारे लिए


यही बहुत है .


आज़ादी के लिए


जांबाजों ने


ना जाने कितने


आन्दोलन चलाये


पर आज ना जाने देश में


कहाँ से इतने "वाद "


उभर आए


कहीं आतंकवाद है तो


कहीं नक्सलवाद


क्या इन सबके साथ ही


करते हैं आज़ादी को याद ?


गर हो शत्रु बाहर का तो


उससे लड़ा जा सकता है


जब भेदी हो घर का


तो लंका भी ढहा सकता है


ये सुन मेरे मन पर


छा गयी स्तब्धता की स्थिति


पूछा मैंने कि


क्या कर सकता है


कोई अदना सा कवि ?




बोली वो सहज कि -

तेरे पास तो है


वह हथियार जो


तख़्त राजाओं के


पलट सकता है


तेरी कलम में


वो  ताकत है


जो सरकार


बदल सकता है


बस अपने गीतों में


ज़रा नया जोश लाओ


इसकी धार में


थोड़ी रवानी मिलाओ


ऐसे गीत रचो


जो हर जुबान गाये


एक एक गीत तुम्हारा


नया इतिहास रच जाये...




हतप्रभ सी हो मैं


सब सुन रही थी


मेरी आत्मा जैसे


मुझ को ही


कचोट रही थी


क्या सच में ही


हमने अपना कोई


धर्म निभाया है ?


या बस स्वयं से


स्वयं को भरमाया है?


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23 comments:

shikha varshney 3/23/2010 3:21 PM  

क्या लिखा है दी..hats off .एक एक पंक्ति में शहीद की तरफ से आपके दिल की वेदना झलक रही है...बहुत बहुत बहुत भावपूर्ण रचना है

शोभना चौरे 3/23/2010 3:29 PM  

क्या सच में ही


हमने अपना कोई


धर्म निभाया है ?


या बस स्वयं से


स्वयं को भरमाया है?

bahut sateek bat kahi hai kuchh na kuchh kmi hamme hi hai .bahut sashakt rachna .

vandana gupta 3/23/2010 3:38 PM  

बिल्कुल सही बात कही है ………………॥अपनी ताकत का सही इस्तेमाल किया है आपने…………………।बहुत गहन्।

Pawan Kumar 3/23/2010 4:20 PM  

एक प्रासंगिक रचना.......दिल- दिमाग को झिंझोड़ने वाली कविता.....

M VERMA 3/23/2010 5:12 PM  

क्या सच में ही
हमने अपना कोई
धर्म निभाया है ?
यही तो वह सवाल है जो हर सार्थक सोच को विचलित कर देती है.
बहुत सुन्दरता से आपने पीड़ा को पिरोया है

दिगम्बर नासवा 3/23/2010 5:27 PM  

सच्ची श्रधांजलि दी है आपने इन वीरों को .... काश देशवासी समझें ......

शेफाली पाण्डे 3/23/2010 5:39 PM  

bahut saargarbhit rachna...badhaii sangeeta ji

rashmi ravija 3/23/2010 5:41 PM  

ओह्ह एक शहीद की आत्मा का दर्द बता दिया आपने...उन्हें सच कितना दुःख होता होगा...कि इसी के लिए ऐसी कुर्बानी दी थी...सच्ची श्रधांजलि है यह..एक कविता के माध्यम से

Apanatva 3/23/2010 5:48 PM  

kuch hatke sshakt avum sashakt ek pyara sa jagrut karate hue sandesh degayee ye rachana .

Dev 3/23/2010 7:50 PM  

बहेतरीन प्रस्तुति ....जवाब नहीं आपकी इस रचना का

मनोज कुमार 3/23/2010 7:52 PM  

आज के दिन के लिए इससे बेह्हतर और सटीक रचना मैंने नहीं पढ़ी। यह कविता काफी मर्मस्पर्शी बन पड़ी है। आपकी कविता पढ़ने पर ऐसा लगा कि आप बहुत सूक्ष्मता से एक अलग धरातल पर चीज़ों को देखते हैं। इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है। इस कविता की कोई बात अंदर ऐसी चुभ गई है कि उसकी टीस अभी तक महसूस कर रहा हूं।

रश्मि प्रभा... 3/23/2010 9:53 PM  

is swapn ka main aahwaan kartee hun har aankhon ke liye.........bahut hi bhawpurn koshish

شہروز 3/23/2010 11:00 PM  

शहीद भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी का स्वप्न में आना...
खैर आपने जिस भाव-विचार की बात की है.स्वागतेय है.
हम सभी जब ज़रुरत हुई भगत सिंह, अशफाक उल्लाह, सुखदेव जैसे ढेरों शहीदों की माला तो जबते हैं...लेकिन ज़रुरत है इन सबसे अलग उनके साहित्य को पढ़कर जीवन में उतारने की.
सरकार से मांग करनी चाहिए कि इनके साहित्य किफायती कीमत पर जन जन को उपलब्ध कराए.

Anil Pusadkar 3/24/2010 10:30 AM  

नमन करता हूं शहीदों को।बहुत सही लिखा है आपने और आपकी कलम को भी मैं प्रणाम करता हूं।

अनामिका की सदायें ...... 3/24/2010 10:58 AM  

तेरे पास तो है
वह हथियार जो
तख़्त राजाओं के
पलट सकता है
तेरी कलम में
वो ताकत है
जो सरकार
बदल सकता है
बस अपने गीतों में
ज़रा नया जोश लाओ
इसकी धार में
थोड़ी रवानी मिलाओ
ऐसे गीत रचो
जो हर जुबान गाये
एक एक गीत तुम्हारा
नया इतिहास रच जाये...

आपकी लेखनी को शत शत नमन ....हां. आज आपकी लेखनी से निकले ये आशार इतना उत्साह भर गये कि हम
अपनी लेखनी से बहुत कुछ कर सकते है...इसी के माध्यम से हम अपने देश के प्रति अपना फर्ज निभा सकते है..
वरना मै कयी बार सोचती थी कि हम अपने देश में फैली बुराईयो के प्रति शोक प्रकट करने के अलावा कुछ नही कर पाते..
लेकिन आज मुझे भी लगता है कि हम भी कुछ कर सकते है.
बधाई

Urmi 3/24/2010 12:42 PM  

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!
शहीदों को मेरा शत शत नमन !

रानीविशाल 3/24/2010 7:40 PM  

Bahut sarthak rachana .....jiske madhyam se aapane sacche hindustaani ke hriday ka rodan to bakhaan kiya hai lekin yah bhi spasht kar diya ki har vyakti agar apana kaam hi puri imandari se kar le to wahi bahut badi desh sewa hogi...yakin maaniye aapane bahut imandari se is rachana ko racha hai..bahut bahut dhanywaad.
Aajadi ke parvaano ko shat shat naman
Jai Hind

पूनम श्रीवास्तव 3/24/2010 7:57 PM  

तेरी कलम में
वो ताकत है
जो सरकार
बदल सकता है
बस अपने गीतों में
ज़रा नया जोश लाओ
इसकी धार में
थोड़ी रवानी मिलाओ
ऐसे गीत रचो
जो हर जुबान गाये
एक एक गीत तुम्हारा
नया इतिहास रच जाये.

dil ko andar tak jhakjhor gai aapki yah post,
bahut, bahut, bahut hi badhiya. badhai

निर्झर'नीर 3/26/2010 2:47 PM  

क्या सच में ही


हमने अपना कोई


धर्म निभाया है ?


या बस स्वयं से


स्वयं को भरमाया है?


aapne aatma ko jhakjhor diya

रंजना 3/26/2010 4:51 PM  

वाह....बहुत ही सार्थक और सुन्दर बात कही आपने इस अनुपम कविता के माध्यम से....
सचमुच जो तलवार की धार नहीं कर सकती ,वह कलम कर सकती है...

रेणु 4/19/2022 11:42 PM  

आज की अराजकता और कुव्यव्स्थाओं को देखकर वतन के बलिदानियों कीआत्मा जरुर रोती कल्पती होगी। सार्थक रचना के लिए बधाई।🙏🙏🌺❣❣🌷🌷❤❤

Sudha Devrani 4/20/2022 10:31 PM  

साहित्यकारों को साहित्य धर्म सिखाती देश के हालातों
का आइना दिखती दमदार कृति...
वाकई शहीदों को याद किस मुँह से करते है घर घर विभीषण कैसे लड़े अपनों से...
उत्कृष्ट सृजन ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/24/2022 2:50 PM  

प्रिय रेणु ,प्रिय सुधा जी
आप मेरी पुरानी रचनाओं तक पहुँचीं और अपनी प्रतिक्रिया से नवाजा इसके लिए हृदयतल से आभार ।

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