अवचेतन मन की चेतना
>> Friday, March 5, 2010
मन के
अवचेतन में
कुछ चेतन सा
चलता रहता है
एक आग लगी हो
सीने में
और मन
धधकता रहता है
सोचों से परे कोई
चिंगारी
भड़कती रहती है
खुद के
वजूद की तलाश में
एक आग
सुलगती रहती है
टूट टूट कर
बिखर गयी
और हर कण
कण में समा गया
फिर भी
कोई मुझ पर
बेगैरत की तोहमत
लगा गया
अब मैं
तपती रेत बनी
खुद को
झुलसाती रहती हूँ
शबनम की बूंदों को भी
धुआँ बनाती रहती हूँ
कुछ था
जो मन में
दरक गया
पल - पल का
एहसास गया
अब खाली हाथ
खड़ी हूँ मैं
वक़्त हाथ से
निकल गया |
17 comments:
कुछ था
जो मन में
दरक गया
पल - पल का
एहसास गया
अनूभूति की यह खूबसूरत रचना कई परतों को खोलती है
"भाव बहुत अच्छे हैं पर आपने कुछ चिरपरिचित शब्दों का उपयोग किया है जैसे दरक । पर क्या करें कुछ शब्द होते ही इतने अच्छे हैं कि उन पर जी ललचा जाता है, अच्छा लिखा है आपने..........और गुज़्ररती रंगापंचमी की शुभकामनाएँ.........."
प्रणव सक्सैना
amitraghat.blogspot.com
पिछली पोस्ट का शबनम अचानक ...
तपती रेत बनी
खुद को
झुलसाती रहती हूँ
शबनम की बूंदों को भी
धुआँ बनाती रहती हूँ
इतना परिवर्तन ...? अत्माभिव्यक्ति की अनूठी मिसाल!!
दी ! मैं निशब्द हूँ ...मुझे समझ नहीं आ रहा कि आपके पैर छूँ या आपकी कलम को माथे से लगा लूं..एक ही सांस में न जाने कितनी बार पढ़ गई मैं इसे .लग रहा है जैसे मेरा ही मन निकल कर रख दिया हो.किस किस चीज़ का जिक्र करूँ...शैली का...भाव का..या शब्द संयोजन का...न बाबा इस पर कुछ भी नहीं कहा जायेगा मुझसे..
.
are! lagata hai pichalee kavita ko aur aage badaya hai
jaise agalee kadee ho.
bahut dard samete hai apane astitv me ye kavita.
dil ko choo gayee gahraee tak.
NISHABD KAR DIYA AAJ TO.
Great expression of subconscious mind
कुछ था
जो मन में
दरक गया
पल - पल का
एहसास गया
बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति है...इतने अच्छे से बयाँ किया है,मन की बेबसी को...हमेशा की तरह भावप्रवण अभिव्यक्ति
Bahut khoob,ati sundar rachna,shabdo ka adbhut sangam.
VIKAS PANDEY
www.vicharokadarpan.blogspot.com
मन के आन्तरिक द्वन्द और उसकी पीड़ा का इतना सुन्दर शब्दों में चित्रण बहुत अच्छा लगा ...इस रचना के लिए आपको धन्यवाद !!
अंतर्मन की पीड़ा का सुन्दर और भावभीना अंकन. अद्भुत !
वाह अद्भुत सुन्दर पंक्तियाँ! बिल्कुल सही कहा है आपने! बेहद पसंद आया आपकी ये भावपूर्ण रचना!
खुद के
वजूद की तलाश में
एक आग
सुलगती रहती है
वैसे तो ये आग सुलगती रहनी चाहिए ... खुद की तलाश नियंतर चलनी चाहिए ...
अच्छा लिखा है बहुत ही ..
दिल को छुने वाली रचना!!!!!!!!!!
बहुत अच्छा लगा पढ़कर.........
आदर सहित-
रोहित
जो मन में
दरक गया
पल - पल का
एहसास गया
अब खाली हाथ
खड़ी हूँ मैं
वक़्त हाथ से
निकल गया...
बहुत सार्थक और खूबसूरत अभिव्यक्ति.... के साथ सुंदर कविता.... कल आपकी यह कविता मैंने पॉडकास्ट में गा कर सुनाई थी....
बहुत अच्छी लगी यह कविता....
कुछ पंक्तीया आपकी पंक्तियो पर ...
टूट टूट कर बिखर गयी
और हर कण, कण में समा गया
फिर भी कोई मुझ पर
बेगैरत की तोहमत लगा गया
- जिसके लिए टूट कर बिखरे
शायद वो इस काबिल ना था..
बेगैरत तुम्हे कहने वाला
खुद भी तो बे-इन्तेहा सुल्गा होगा .
अब मैं तपती रेत बनी
खुद को झुलसाती रहती हूँ
शबनम की बूंदों को भी
धुआँ बनाती रहती हूँ
- तपती रेत में खुद को झुल्साने से
क्या होगा हासिल
शबनम की बूंदों को धुआँ बनाने से
ना वज़ूद की तळाश पायेगी मंजिल
कुछ था जो मन में दरक गया
पल - पल का एहसास गया
अब खाली हाथ खड़ी हूँ मैं
वक़्त हाथ से निकल गया
- आने वाली दरारो को
ना जगह दो मन की दिवारो में
वक्त बहुत निष्ठुर है
बेहतर है वक्त को बदल लो खुशियो में.
न खौफ है
न कोई मजबूरी है
अलबत्ता, इस जहान का
दर्द पीने को
मेरे हृदय का दरक जाना जरूरी है।
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