बाज़ी दर बाज़ी
>> Thursday, March 18, 2010
जिंदगी की बिसात पर
रिश्तों की बाज़ी
लगी होती है
हर रिश्ता
अपनी अहमियत लिए
होता है खड़ा
आमने सामने .
कोई प्यादा तो
कोई वजीर
सब चलते रहते हैं
अपनी चालें
आड़ी - तिरछी
एक दूसरे को
शह और मात
देने की होड़ में
और जब
मिल जाती है
किसी रिश्ते को मात
तो मन
भर जाता है
अवसाद से
और रह जाती है
मात्र एक घुटन .
फिर
घुटन से
उबरने के लिए
बिछ जाती है
नयी बाज़ी
एक नया रिश्ता लिए
ज़िन्दगी की बिसात पर .
24 comments:
वाकई कितना कठिन है ये जिन्दगी का खेल ...और कितनी जटिल चाले हैं ...बाज़ी दर बाज़ी...बहुत ही अच्छा लिखा है
अति सुन्दर !
रत्नेश त्रिपाठी
घुटन से
उबरने के लिए
बिछ जाती है
नयी बाज़ी
एक नया रिश्ता लिए
==
आज के रिश्ते ---
घुटन ही सही ---
रिश्तो को उकेरती बेह्तरीन रचना
bahut badiya .jindgee ka sach yahee hai............
rishte banate hai bigadate hai....jindgee par thamatee nahee ......isakee raah me aur naye rishte judte chale jate hai...........
सब चलते रहते हैं
अपनी चालें
आड़ी - तिरछी
एक दूसरे को
शह और मात
देने की होड़ में
सच्चाई की रोशनी दिखाती आपकी बात हक़ीक़त बयान करती है। रिशतों की असलियत को उजागर करने के लिए जो आपने यह रचना की है वह आपके विशिष्ट कवि-व्यक्तित्व का गहरा अहसास कराती है।
Zindagi ke safar me rishto ke is taane baane ko bakhubi abhivyakt kiya aapane....bahut sundar abhivyakti....Dhanywaad!
चालो में चाल चलती जिन्दगी की बाजिया देखने में मात्र एक खेल हो, लेकिन सदा से ही इस खेल ने रिश्तो के साथ साथ जिंदगियो को भी लीला है...कितने ही बादशाह अपनी बादशाही से गए...अफ़सोस खेल फिर भी अपनी चाल चलता रहा और जिंदगी की बिसात पर फिर एक नया रिश्ता बाज़ी में शह और मात खाता रहा.
रिश्तो को जितनी ख़ूबसूरती से चेस्स की बिसात पर बिछाया है उतनी ही मार्मिक अभिव्यक्ति से उसमे घुटन और अवसाद को उभारा है.. दिल को छू लेने वाली रचना.
घुटन से
उबरने के लिए
बिछ जाती है
नयी बाज़ी
एक नया रिश्ता लिए
रिश्तों को बड़ी अच्छी तरह परिभाषित किया है...
वाकई..ऐसी बिसात कि मन खट्टा हो जाये..हारें या जीतें!!
सच है जिन्दगी कभी कभी क्यूं शतरंज की बिसात लगने लगती है और इर्द गिर्द सब जुआरी !
सब चलते रहते हैं
अपनी चालें
आड़ी - तिरछी
एक दूसरे को
शह और मात
देने की होड़ में
आज के जीवन का सच । सुन्दर रचना बधाई
ज़िन्दगी शतरंज की बिसात ही तो है और आपने उसे बहुत ही सुन्दर शब्दों मे पिरोया है।रिश्तो को अलग ढंग से परिभाशित किया है।
zindagee ke ye khel...inhen nibhana sachmuch bahut jatil kaam hai...
zindagi ki isi bisaat se shayad main indino kuch uthal-puthal si sthiti me hoti hun....
सब चलते रहते हैं
अपनी चालें
आड़ी - तिरछी
एक दूसरे को
शह और मात
देने की होड़ में....kya mil jayega? ant to ek hi hai
main rashmi prabha maa'm se bilkul sahmat hun.
waqt kaafi badal chuka hai.rishte bhi bajarwaad ka hissa ban gaye hain ab,bas ek dusre ko nicha or apne se chota sabit karne ki jaddojahat ho rahi hai.
in sab se agar sabse jyada ghata hota hai to khud ko hi!!
--
rgrds-
rohit
main rashmi prabha maa'm se bilkul sahmat hun.
waqt kaafi badal chuka hai.rishte bhi bajarwaad ka hissa ban gaye hain ab,bas ek dusre ko nicha or apne se chota sabit karne ki jaddojahat ho rahi hai.
in sab se agar sabse jyada ghata hota hai to khud ko hi!!
--
rgrds-
rohit
isi uho-poho me jindgi gujar jati he, insaan yahi sochta reh jata he ki aakhir usne jiya kis liye, kiske liye
very good sangeet di
rishto ki kshmksh ko bahut hi sundar dhang se rekhankit kiya hai aapne .
ye bhi sach hai bisat na hogi to rishto me svad kahan hoga ?
घुटन सेउबरने के लिए
बिछ जाती है
नयी बाज़ी
एक नया रिश्ता लिए
ज़िन्दगी की बिसात पर
bahut hi umda rachana.
poonam
Rishte jatil ho rahe hain..sundar shabd diye aapne..badhai
आपने बहुत ही खूबसूरती से रिश्तों की कश्मकश को प्रस्तुत किया है जो सराहनीय है! आपकी ये रचना मुझे बेहद पसंद आया!
अच्छी अभिव्यक्ति !
हर ओर बिसात पर रिश्ते बीछे नज़र आते है।समाज की सच्चाई बयान करती रचना।
रिश्तों के खेल में कभी कभी पीस कर रा जाता है इंसान .... रिश्तों को निभाना सच में मुश्किल होता है ...
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