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हे कृष्ण - आओ तुम एक बार

>> Monday, May 31, 2010



हे  कृष्ण -

आओ  तुम एक बार 

लेकर  कल्की  अवतार 


पापों का नाश कर  तुमने 

पापियों को मुक्ति  दी 

आज पापों के बोझ से 

अवनि  है धंस रही 

फ़ैल  रहा दसों दिशाओं में 

अपरिमित  भ्रष्टाचार 

हे कृष्ण -

तुम आओ  एक बार 


सतीत्व  की रक्षा को तुमने 

था स्वयं को अर्पित किया 

आज यहाँ हर चौराहे पर 

स्त्रीत्व  खंडित  हो रहा 

संवेदनाएं  प्रस्तर हुयीं 

हुआ  असीमित व्याभिचार 

हे कृष्ण -

आओ तुम एक बार 


धर्म रक्षा  हेतु तुमने 

श्राप गांधारी का लिया 

आज धरती पर है 

अधर्म का दिया  जला 


धर्मान्ध  बने  हुए सब 

कर रहे एक दूजे पर प्रहार 

हे कृष्ण -

आओ तुम एक बार 

ले कर कल्की अवतार


सर्द मुस्कान

>> Wednesday, May 26, 2010



एक   साझा  नज़्म....


कभी कभी कुछ रचनाएँ मुक्कमल होती हैं जुगलबंदी से.....आज की  यह नज़्म भी एक ऐसी ही जुगलबंदी 

है...मैंने नज़्म ड्राफ्ट की ही थी कि शिखा (वार्ष्णेय ) Online दिखाई  दे गयी...बस मैंने यह नज़्म उसको भेज दी 

पढने के लिए...तुरंत जवाब आया कि बहुत अच्छी है..पर इसे पूरा करो ना ....अब दिक्कत यह है कि जहाँ मेरा     

लिखना बंद हुआ तो उससे आगे कुछ लिखा ही नहीं जाता...मैंने कहा कि अब मैं आगे नहीं लिख पाऊँगी...तुम ही 

पूरा करो....तो बस हो  गयी जुगलबंदी ...... शुरू की  पंक्तियाँ मेरी हैं तो अंत की शिखा की ....बताइए आपको ये 

साँझा  नज़्म कैसी लगी ???????????? 


अश्कों के साथ 

बह कर 

चिपक गया था 

कपोल पर एक 

पलक का बाल 

और तुमने 

चुटकी से पकड़ 

उसे मेरी उल्टी

बंद मुट्ठी पर रख 

कहा था कि

मांग लो 

जो मांगना है  

मैंने 

मांग लिए थे 

तेरे तमाम दर्द 

और 

मेरे चेहरे पर 

खिंच गयी थी 

एक मुस्कान सर्द |



एक  वो  दिन था


और  एक 

आज का दिन है


मेरी झोली में 

तेरे दर्द हैं सारे


और तेरे होठों पर  

मेरी मुस्कान  है ...


मुआवज़ा ......एक ख्वाहिश ऐसी भी ..... ( लघु कथा )

>> Sunday, May 23, 2010

new-delhi-railway-station




रेलवे  स्टेशन  पर  अचानक हुई भगदड़  से लोग एक दूसरे पर गिर रहे थे ...जो गिर गए थे लोग उनके ऊपर से ही उन्हें कुचलते  भागे जा रहे थे....किसी को कुछ जैसे होश नहीं था... सबको बस अपनी फ़िक्र थी.....बहुत मुश्किल से भीड़ पर काबू पाया गया ....इस हादसे में तीन की  मृत्यु  हो गयी  और पंद्रह  घायल हुए |

रेलवे  मंत्रालय ने घोषणा की ..कि मृतक के परिवार को दो लाख और घायल को पचास हज़ार मुआवज़ा  दिया जायेगा...
घायलों में एक चौबीस साल का गरीब परिवार का युवक भी था....उसे बहुत गहरी चोटें आयीं थीं...अस्पताल में भरती कराया गया...दोनों पैर की हड्डियां टूट गयीं थीं और पसलियाँ टूट कर एक दूसरे में घुस गयीं थीं ....डाक्टर   का कहना था   कि   जल्दी ही ऑपरेशन नहीं  हुआ  तो  बचाना  मुश्किल  हो जाएगा..  ....ऑपरेशन  में तीन लाख का खर्चा था  जिसका  इंतजाम उसका गरीब बाप नहीं कर पा रहा था...हरसंभव कोशिश कर  हार गया .... निराशा अंतिम चरण पर थी...दिल से आह निकली...काश ये हादसे में  ही  मर  जाता तो  ना इलाज करवाना पड़ता और........








http://charchamanch.blogspot.com/2010/05/164.html




आह.. चाँद ......!

>> Thursday, May 20, 2010




ख्व्वाबों के

तारों के

बीच

एक

तमन्ना सा

चमकता चाँद..








तारों की

कटोरियों

के बीच

रोटी सा

रखा चाँद..



अरसे बाद

तेरा आना

और यूँ

मुस्कुराना

जैसे

दिखा हो

ईद

का चाँद ...





खुले

आसमान के तले

पथरीली

धरती पर पड़े

छोटे से

घर की

छत सा

दिखा चाँद ..







आँखें बंद कर

जब तुझे

महसूस किया

चांदनी सा

शीतल

था चाँद.... 

लेखनी को चाहिए अब अंगार

>> Tuesday, May 18, 2010






मच   रहा  है 


चहुँ ओर 

हाहाकार 

लेखनी को चाहिए 

अब  अंगार 


एक धमाके से 

कितनी ही जाने 

हो  रहीं  निसार 

और कान में तेल दिए 

बैठी  है सरकार 

अपने ही कर रहे 

पीठ  पीछे  वार 

लेखनी को चाहिए 

अब  अंगार .


व्यवस्थाएं  सब जैसे 

चरमरा  गईं 

सहिष्णुता  भी सबकी 

है  भरभरा गयी 

रोज़  ही  

होते हैं  लोग 

हादसों  के  शिकार 

लेखनी को चाहिए 

अब  अंगार .


जल रहा   हर क्षेत्र है 

अब  इस देश का 

लहरा  रहा परचम 

है व्याभिचार का 

छाद्मधारी 

वेश धारण कर 

विकास का कर रहे 

बस झूठा  प्रचार 

लेखनी को चाहिए 

बस  अंगार ...... 




महिला ब्लॉगर्स का सन्देश जलजला जी के नाम

>> Monday, May 17, 2010

कोई मिस्टर जलजला एकाध दिन से स्वयम्भू चुनावाधिकारी बनकर.श्रेष्ठ महिला ब्लोगर के लिए, कुछ महिलाओं के नाम प्रस्तावित कर रहें हैं. (उनके द्वारा दिया गया शब्द, उच्चारित करना भी हमें स्वीकार्य नहीं है) पर ये मिस्टर जलजला एक बरसाती बुलबुला से ज्यादा कुछ नहीं हैं, पर हैं तो  कोई छद्मनाम धारी ब्लोगर ही ,जिन्हें हम बताना चाहते हैं कि हम  इस तरह के किसी चुनाव की सम्भावना से ही इनकार करते हैं.

ब्लॉग जगत में सबने इसलिए कदम रखा था कि न यहाँ किसी की स्वीकृति की जरूरत है और न प्रशंसा की.  सब कुछ बड़े चैन से चल रहा था कि अचानक खतरे की घंटी बजी कि अब इसमें भी दीवारें खड़ी होने वाली हैं. जैसे प्रदेशों को बांटकर दो खण्ड किए जा रहें हैं, हम सबको श्रेष्ट और कमतर की श्रेणी में रखा जाने वाला है. यहाँ तो अनुभूति, संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति से अपना घर सजाये हुए हैं . किसी का बहुत अच्छा लेकिन किसी का कम, फिर भी हमारा घर हैं न. अब तीसरा आकर कहे कि नहीं तुम नहीं वो श्रेष्ठ है तो यहाँ पूछा किसने है और निर्णय कौन मांग रहा है?  

हम सब कल भी एक दूसरे  के लिए सम्मान रखते थे और आज भी रखते हैं ..
                            
 अब ये गन्दी चुनाव की राजनीति ने भावों और विचारों पर भी डाका डालने की सोची है. हमसे पूछा भी नहीं और नामांकन भी हो गया. अरे प्रत्याशी के लिए हम तैयार हैं या नहीं, इस चुनाव में हमें भाग लेना भी या नहीं , इससे हम सहमत भी हैं या नहीं बस फरमान जारी हो गया. ब्लॉग अपने सम्प्रेषण का माध्यम है,इसमें कोई प्रतिस्पर्धा कैसी? अरे कहीं तो ऐसा होना चाहिए जहाँ कोई प्रतियोगिता  न हो, जहाँ स्तरीय और सामान्य, बड़े और छोटों  के बीच दीवार खड़ी न करें.  इस लेखन और ब्लॉग को इस चुनावी राजनीति से दूर ही रहने दें तो बेहतर होगा. हम खुश हैं और हमारे जैसे बहुत से लोग अपने लेखन से खुश हैं, सभी तो महादेवी, महाश्वेता देवी, शिवानी और अमृता प्रीतम तो नहीं हो सकतीं . इसलिए सब अपने अपने जगह सम्मान के योग्य हैं. हमें किसी नेता या नेतृत्व की जरूरत नहीं है.
इस विषय पर किसी  तरह की चर्चा ही निरर्थक है.फिर भी हम इन मिस्टर जलजला कुमार से जिनका असली नाम पता नहीं क्या है, निवेदन करते हैं  कि हमारा अमूल्य समय नष्ट करने की कोशिश ना करें.आपकी तरह ना हमारा दिमाग खाली है जो,शैतान का घर बने,ना अथाह समय, जिसे हम इन फ़िज़ूल बातों में नष्ट करें...हमलोग रचनात्मक लेखन में संलग्न रहने  के आदी हैं. अब आपकी इस तरह की टिप्पणी जहाँ भी देखी जाएगी..डिलीट कर दी जाएगी.

रचयिता सृष्टि की

>> Friday, May 14, 2010








माँ के गर्भ में साँस लेते हुए


मैं खुश हूँ बहुत


मेरा आस्तित्व आ चुका है


बस प्रादुर्भाव होना बाकी है।


मैं माँ की कोख से ही


इस दुनिया को देख पाती हूँ


पर माँ - बाबा की बातें समझ नही पाती हूँ


माँ मेरी सहमी रहती हैं और बाबा मेरे खामोश


बस एक ही प्रश्न उठता है दोनों के बीच


कि परीक्षण का परिणाम क्या होगा ?


आज बाबा कागज़ का एक पुर्जा लाये हैं


और माँ की आँखों में चिंता के बादल छाये हैं


मैं देख रही हूँ कि माँ बेसाख्ता रो रही है


हर बार किसी बात पर मना कर रही है


पर बाबा हैं कि अपनी बात पर अड़े हैं


माँ को कहीं ले जाने के लिए खड़े हैं


इस बार भी परीक्षण में कन्या- भ्रूण ही आ गया है


इसीलिए बाबा ने मेरी मौत पर हस्ताक्षर कर दिया है।

मैं गर्भ में बैठी बिनती कर रही हूँ कि-


बाबा मैं तुम्हारा ही बीज हूँ-


क्या मुझे इस दुनिया में नही आने दोगे?

अपने ही बीज को नष्ट कर मुझे यूँ ही मर जाने दोगे?

माँ ! मैं तो तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ , तुम्हारी ही कृति हूँ

तुम्हारी ही संरचना हूँ , तुम्हारी ही सृष्टि हूँ।

माँ ! मुझे जन्म दो, हे माँ ! मुझे जन्म दो 

मैं दुनिया में आना चाहती हूँ 

कन्या हूँ ,इसीलिए अपना धर्म निबाहना चाहती हूँ। 

यदि इस धरती पर कन्या नही रह पाएगी 

तो सारी सृष्टि तहस - नहस हो जायेगी ।

हे स्वार्थी मानव ! ज़रा सोचो- 

तुम हमारी शक्ति को जानो 

हम ही इस सृष्टि कि रचयिता हैं 

इस सत्य को तो पहचानो.







स्वयं सिद्धा बन जाओ

>> Monday, May 10, 2010







नारी - 


तुम कब खुद को जानोगी 


कब खुद को पहचानोगी ? 



कुंठाओं से ग्रसित हमेशा 


खुद को शोषित करती हो 


अपने ही हाथों से खुद की  


गरिमा भंगित करती हो 



पुरुषों को ही लांछित कर 


खुद को ही भरमाती हो 


पर मन के विषधर को 


स्वयं  ही दूध पिलाती हो 



घर - घर में नारी ही 


नारी से  द्वेष भाव रखती है 


अपनी वर्चस्वता रखने को 


हर संभव प्रयास करती है 



नारी ही नारी की शोषक 


कितना विद्रूप लगता है ? 


पर ये खेल तो ना जाने 


कितनी सदियों से चलता है 



जिस दिन तुम नारी बन 


नारी का सम्मान करोगी 


उसके प्रताड़ित होने पर 


उसके  लिए दीवार बनोगी 



उस दिन ये समाज तुम्हारी 


महा शक्ति को पहचानेगा 


दीन - हीन कहलाने वाली को 


अपने सिर  माथे पर रखेगा .



दूसरे को कुछ कहने से पहले 


स्वयं में दृढ़ता  लाओ 


नारी का आस्तित्व बचाने को 

है चेतावनी !......

>> Thursday, May 6, 2010







पुरुष ! तुम सावधान रहना ,

बस है चेतावनी कि

तुम अब ! सावधान रहना .


पूजनीय कह नारी को

महिमा- मंडित करते हो

उसके मान का हनन कर

प्रतिमा खंडित करते हो .

वन्दनीय कह कर उसके

सारे अधिकारों को छीन लिया

प्रेममयी ,वात्सल्यमयी कह

तुमने उसको दीन किया .

पर भूल गए कि नारी में



एक शक्ति - पुंज जलता है

उसकी एक नज़र से मानो

सिंहांसन भी हिलता है.


तुम जाते हो मंदिर में

देवी को अर्घ्य चढाने

उसके चरणों की धूल ले

अपने माथे तिलक सजाने

घंटे - घड़ियाल बजा कर तुम

देवी को प्रसन्न करते हो

प्रस्तर- प्रतिमा पर केवल श्रृद्धा रख

खुद को भ्रमित करते हो.

पुष्पांजलि दे कर चाहा तुमने कि

देवी प्रसन्न हो जाएँ

जीवन में सारी तुमको

सुख - समृद्धि मिल जाएँ .


घर की देवी में तुमको कभी

देवी का रूप नहीं दिखता ,

उसके लिए हृदय तुम्हारा

क्यों नहीं कभी पिघलता ?

उसकी सहनशीलता को बस

तुमने उसकी कमजोरी जाना

हर पल - हर क्षण तुमने उसको

खुद से कम तर माना..


नारी गर सीता - पार्वती बन

सहनशीलता धरती है

तो उसके अन्दर शक्ति रूप में

काली औ दुर्गा भी बसती है.

हुंकार उठी नारी तो ये

भूमंडल भी डोलेगा

नारी में है शक्ति - क्षमा

पुरुषार्थ भी ये बोलेगा.


इसीलिए -

बस सावधान रहना

अब तुम सावधान रहना .








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