कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
7 comments:
प्यार के साथ फूलों से अधिक अहतियात की ज़रूरत होती है
....बहुत अच्छी
सचमुच दी ! बिना स्वछंद जगह के कुछ नहीं पनप सकता चाहे पौधा हो या प्यार.सारगर्भित रचना.
सचमुच दी ! बिना स्वछंद जगह के कुछ नहीं पनप सकता चाहे पौधा हो या प्यार.सारगर्भित रचना.
सही है
कोमल एहसास
PYAAR KA POUDHA TO AUR BHI KACHEE DOR SE BANDHA HOTA HAI ...... USKO PAALNA PADHTA HAI NAAZUKI SE ..... SUNDAR LIKHA HAI
sach me sunder rachna
सच कहा आपने प्यार पर बंधन रूपी ईटो की दिवार खड़ी नहीं की जा सकती..इसे तो चाहिए आज़ादी और फैलने की असीमता...
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