मोहब्बत
>> Friday, October 23, 2009
मैंने तुमसे
मोहब्बत की है
बेपनाह मोहब्बत की है ।
इसीलिए
कभी तुमसे
कुछ माँगा नहीं
सुना है मैंने
कि
मोहब्बत में
पाने से ज्यादा
देने की चाहत होती है
इसीलिए
कभी तेरे सामने
मैंने अपना हाथ
फैलाया नहीं।
और वैसे भी
भला मैं तुझे
क्या दूंगी ?
ये आंसू के
कुछ कतरे हैं
जिन्हें तेरे
चरणों पर रख दूंगी ।
सच में मैंने तुझसे
मोहब्बत की है
ऐ मेरे खुदा
बेपनाह मोहब्बत की है.
मोहब्बत की है
बेपनाह मोहब्बत की है ।
इसीलिए
कभी तुमसे
कुछ माँगा नहीं
सुना है मैंने
कि
मोहब्बत में
पाने से ज्यादा
देने की चाहत होती है
इसीलिए
कभी तेरे सामने
मैंने अपना हाथ
फैलाया नहीं।
और वैसे भी
भला मैं तुझे
क्या दूंगी ?
ये आंसू के
कुछ कतरे हैं
जिन्हें तेरे
चरणों पर रख दूंगी ।
सच में मैंने तुझसे
मोहब्बत की है
ऐ मेरे खुदा
बेपनाह मोहब्बत की है.
8 comments:
एक खुदा का दर ही ऐसा होता है की जहा बिना रोक-टोक अपना दुःख कह सकते है बहा सकते है...is se jyada shraddha ham aur kisi tareh se dikha bhi nahi sakte shayed.
bahut acchhi rachna.
AANSU KE SACHHE KATRE BHI APNE AAP MEIN PREM HI TO HAIN .... BAHOOT HI BHAAVOK LIKHA HAI ....
मुहब्बत के गीत के साथ" बाल ब्रह्मचारी बजरंगबली" का चित्र, बात कुछ समझ नहीं आई?????
थोडा ज्ञान बाधाएं तो उपकृत हूँगा.
कहीं यह प्रभु के शरण में आपकी अरदास तो नहीं????
रचना प्रभावशाली रही.
बधाई...........
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
आप सबका आभार....
चन्द्र मोहन जी,
आपने सही कहा, ये प्रभु के चरणों में मेरी अरदास ही है....अंतिम पंक्तियों में यही लिखा है..
शुक्रिया
sangeeta
bahut acha likhti hai aap...aapko jab bhi padha sukun mila hai ...main aapki kavitaon ko padhne ka entizar kerta reha hun shayrfamily mein aaj blog mil gaya to maja aa gaya ...
बहुत सुन्दर रचना प्रिय दीदी।मुहब्बत में पाने का ज़ज़्बा रहे तो वह समाप्ति की ओर बढ़ती जाती है।प्यार में खुद को गँवा देना ही प्यार की सार्थकता है।
मोहब्बत में
पाने से ज्यादा
देने की चाहत होती है
वाह!!!!
क्या बात...
बहुत ही लाजवाब।
प्रिय रेणु और सुधा जी
आप जैसे पाठक किस्मत वालों को मिलते हैं । दिलीशुक्रिया ।
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