उत्सव
>> Friday, October 9, 2009
तुमसे ये कहना तो
बेमानी है
कि
राह तकते तकते
मेरी आँखें पथरा गयी हैं।
इनकी तपिश से
मेरे घर के
सामने की सड़क भी
कुछ पिघल सी गयी है
मौसम कुछ
बदल सा गया है ।
हवाएं शुष्क
हो चली है
और चल रही है
ठंडी बयार
पर मन में आँधियाँ हैं
और उठ रहा है
गुबार ।
साँसों के धधकने से
जैसे धुआं सा उठ रहा है ।
पर सच मानो
तुमसे कोई शिकवा नहीं है ।
आज मैं तर्पक
बन गयी हूँ
और कर दिया है
तर्पण मैंने
अपने रिश्ते का ।
आज उसी रिश्ते का
श्राद्ध है
इस उत्सव में
तुम ज़रूर आना..
21 comments:
वाह !!
क्या तारीफ करूँ आपकी ...
रिश्ते का तर्पण........हाँ यह पल भी आता है.....मेरे मंत्र आपके साथ हैं
RISHTON K TARPAN कर के जीना आसान नहीं .......... पर दर्द BHARE RISTON का और किया भी क्या जाये ....... लाजवाब अभिव्यक्ति
आदरणीया संगीता जी,
बहुत ही भावुक कर देने वाली कविता ---
पूनम
वाह...अद्भुत रचना...बहुत बहुत बधाई इसके लिए आपको...
नीरज
सड़क का पिघलना नया प्रयोग अच्छा लगा, लेकिन हवाए शुष्क और ठंडी बयार का साथ एक दुसरे के विरोधाभासी है..लेकिन कलम की सोच कुछ भी सोच सकती है, रचना ने अंत तक पढने वाले को बंधा हुआ है जो रचना की सफलता है...
रिश्तो को तर्पण कर खुद तर्पक बन जाना और उसके बाद उस अवस्था को उत्सव कह श्राद्ध कर निमंत्रण देना एक दिल को गहराइयों तक बींध जाने वाली बात..जितनी आसानी से कह दी गयी उतना ही मुश्किल काम..
दिल से दाद कबूल करे..
दिल को छू गयी आपकी ये रचना..और बहुत कुछ सोचने पर भी..
सच मे अद्भुत रचना है रिश्ते का श्राद्ध? ितनी मार्मिक अभिव्यक्ति ? क्या खूब कहा है शुभकामनायें
अच्छे भाव की रचना।
रिश्तों का तर्पण कर देना साहस का है काम।
और निमंत्रण उसे भेजना सीधा काम तमाम।।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
bahut sundar rachna. heera. par johri ki nigahey kuchh aur mamuli si trash ki apeksha karti hain.
श्राद्ध इतनी शिद्दत से किया है तो क्यों नहीं आयेंगे
लेकिन तर्पण्ा काल तो बीत गया
फिर भी कर दीजिए
http://chokhat.blogspot.com/
बहुत सुन्दर रचना मन अशांत हो गया पढ़ के आगे भी ऐसी रचना लिखते रहे आपका ब्लॉग बहुत सुन्दर है
आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं, और भी अच्छा लिखें, लेखन के द्वारा बहुत कुछ सार्थक करें, मेरी शुभकामनाएं.
ati sunder
मनभावन. नारायण,नारायण
uffffff!!!!!!!!! ab kya kahoon? kya likha hai aapne............... itni sunder aur dardbhari kavita......... hai......... jisko aapne bahut bhaavpoorna andaaz mein likha hai..........
स्वागत एवं शुभकामनायें
mn ke aise gehre ehsasaat ko
lafzoN ka libaas de paana
sach meiN bahut mushkil kaam hai
lekin...apne apni iss
nayaab nazm ke zariye
dard ko ek zaban hi de daali hai
lajawaab rachnaa
abhivaadan
---MUFLIS---
hawaaen shushk aur thandee bayaar---virodhee bhaaav, kaavy men dhyaan rakhanaa chaahiye.
आप सबने मेरा उथाह बढाया इसके लिए आभार .
अनामिका जी और श्याम भाई जी ,
आपने जिस विरोधाभास की बात की है तो मैं
अपनी तरफ से कुछ कहना चाहूंगी कि
जब हवाएं ठंडी होती हैं यानि कि सर्दी का मौसम शुरू होता है तो शुष्कता प्रतीत होती है..इसका अनुभव आपको अवश्य प्रतीत हुआ होगा.
वैसे आगे से मैं कोशिश करुँगी कि इस तरह की शिकायत का अवसर न दूँ ..शुक्रिया
हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं......
इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूं..
www.samwaadghar.blogspot.com
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