निर्वाण
>> Thursday, October 15, 2009
मृत्यु पर आरूढ़ हो
सोचता है इन्सान कि
शायद जीवन से उसको
मिल गया है निर्वाण ।
पर ये शब्द भी
आरूढ़ हो चुका है
एक अर्थ के लिए
प्राप्त नहीं होता
सबको निर्वाण
जब छूट जाती हैं साँसें
और तन हो जता है जड़
उस अवस्था को केवल
कह सकते हैं देहावसान ।
जो मनुष्य होता है मुक्त
काम , क्रोध , लोभ ,से
उसे ही मिल जाता है
जीते जी निर्वाण ।
5 comments:
काम क्रोध लोभ माया से मुक्ति ही जो जीवन है .......... सत्य और सार्थक रचना है ...........आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर रचना
ढेर सारी शुभकामनायें.
SANJAY KUMAR
Haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
A beautiful creation!
Wish you and all the readers of this blog a very very Happy Deewali!
निर्वाण के लिए जरुरी है मन के विकारों को भस्म कर उत्कृष्ट विचारो से अपने जीवन को पवित्र कर के भी निर्वाण प्राप्त कर सकता है..!!
आप की रचना देहावसान और निर्वाण के अंतर को स्पष्ट करती हुई, दर्शन के दर्शन कराती हुई सारगर्भित रचना है...बधाई
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