प्रदुषण
>> Thursday, August 14, 2008
जीवन के आधार वृक्ष हैं ,
जीवन के ये अमृत हैं
फिर भी मानव ने देखो,
इसमें विष बोया है.
स्वार्थ मनुष्य का हर पल
उसके आगे आया है
अपने हाथों ही उसने
अपना गला दबाया है
काट काट कर वृक्षों को
उसने अपना लाभ कमाया है
पर अपनी ही संतानों के
सुख को स्वयं खाया है
आज जिधर देखो
प्रदुषण फ़ैल रहा है
वृक्षों के अंधाधुंध कटाव से
ये दुःख उपजा है
क्यों नहीं समय रहते
इन्सान जागा है
सच्चाई के डर से
आज मानव भागा है.
बिना वृक्षों के क्या
मानव जीवन संभव होगा
इस प्रदुषण में क्या
सांसों का लेना संभव होगा
आज अग्रसित हो रहा
मानव विनाश की ओर
इस धरती पर क्या मानव का
जीवित रहना संभव होगा?
कुछ करना है गर
काम तो ये कर डालो
पोधों को रोपो और
वृक्षों को दुलारों
आज समय रहते यदि
तुम चेत जओगे
तो आगे आने वाली नसलों को
तुम कुछ दे पाओगे
.हे मनुज!
अंत में प्रार्थना है मेरी तुमसे
वृक्षों को तुम निज संताने जानो
वृक्ष तुम्हारी सम्पत्ति,
तुम्हारी धरोहर हैं
इस सच को अब तो पहचानो.
9 comments:
यदि मानव इस बात को समझ जाए, तो शायद कंक्रीट के जंगल उगने बंद हो जाएँ...
वृक्ष तुम्हारी सम्पत्ति,
तुम्हारी धरोहर हैं
इस सच को अब तो पहचानो... आपके हेर विचार मील का पत्थर हैं
सार्थक सन्देश!
एक बेहद उम्दा और सार्थक संदेश देती प्रस्तुति।
तुम्हारी धरोहर हैं
इस सच को अब तो पहचानो.
सार्थक ...बहुत सही और ज़रूरी बात की है आज आपने ..संगीता जी ....
कोमल अहसास ,सार्थक सन्देश ...
शुभकामनाएँ!
आपने तो मेरे ह्रदय की बात लिख दी ..
आजकल हमारे शहर में सड़क चौड़ी करने के लिए वर्षों पुराने वट वृक्षों को काट रहे हैं ..
जब भी कोई वृक्ष पड़ा देखती तो ह्रदय मूंह को आ जाता है ..लगता है कोई मानव मृत पड़ा है ..
क्या करून बड़ा असहाय महसूस करती हूँ ..
kalamdaan.blogspot.com
काश की लोग इसे समझ पाते, अंधयुग में आज किसी को सच भी नहीं दिखता है। आभार।
प्रणाम! आपकी आज्ञा हो तो आपकी एक-दो रचना आज की हलचल पर प्रस्तुत करें? लिंक लगाना नहीं आता है तो काॅपी-पेस्ट करते हैं। कृपया आज्ञा दें।
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