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पीले फूल

>> Wednesday, September 9, 2009


मैंने

यादों के दरख्त पर

टांग दिए थे

अपनी चाहतों के

पीले फूल

और

देखा करती थी

उनको अपनी

निर्निमेष आँखों से

जब भी

कोई चाहत

होती थी पूरी

तो एक फूल

वहां से झर

आ गिरता था

मेरी झोली में

और मैं

उसे बड़े जतन से

सहेज कर

रख लेती थी

अपने दिल के

मखमली डिब्बे में।

बहुत से

फूलों की सुगंध से

सुवासित है

मेरा मन

पर

अभी भी

इंतज़ार है मुझे

उस फूल का

जो मैंने

तुम्हारे नाम का

टांगा था....

4 comments:

दिगम्बर नासवा 9/09/2009 12:38 PM  

PREM KE RANG MEIN RANGI KOMAL RACHNA ... BAOOT SUNDAR INTEZAAR HAI PEELI FOOL KE GIRNE KA ....

ओम आर्य 9/09/2009 3:47 PM  

एक सुन्दर कोमल भाव मे रंगी रचना......

रश्मि प्रभा... 9/09/2009 7:02 PM  

abhi bhi intzaar hai........bahut gahre ehsaas

निर्झर'नीर 9/17/2009 5:01 PM  

sundar samarpit rachna

bandhaiii

lambe samay se aana nahi hua aapke lekhan se vanchit rahna badkismatii hai

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