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चेतावनी

>> Tuesday, September 22, 2009


पुरुष ! तुम सावधान रहना ,
बस है चेतावनी कि
तुम अब ! सावधान रहना .

पूजनीय कह नारी को
महिमा- मंडित करते हो
उसके मान का हनन कर
प्रतिमा खंडित करते हो .
वन्दनीय कह कर उसके
सारे अधिकारों को छीन लिया
प्रेममयी ,वात्सल्यमयी कह
तुमने उसको दीन किया .

पर भूल गए कि नारी में
एक शक्ति - पुंज जलता है
उसकी एक नज़र से मानो
सिंहांसन भी हिलता है.

तुम जाते हो मंदिर में
देवी को अर्घ्य चढाने
उसके चरणों की धूल ले
अपने माथे तिलक सजाने
घंटे - घड़ियाल बजा कर तुम
देवी को प्रसन्न करते हो
प्रस्तर- प्रतिमा पर केवल श्रृद्धा रख
खुद को भ्रमित करते हो.
पुष्पांजलि दे कर चाहा तुमने कि
देवी प्रसन्न हो जाएँ
जीवन में सारी तुमको
सुख - समृद्धि मिल जाएँ .

घर की देवी में तुमको कभी
देवी का रूप नहीं दिखता ,
उसके लिए हृदय तुम्हारा
क्यों नहीं कभी पिघलता ?
उसकी सहनशीलता को बस
तुमने उसकी कमजोरी जाना
हर पल - हर क्षण तुमने उसको
खुद से कम तर माना..

नारी गर सीता - पार्वती बन
सहनशीलता धरती है
तो उसके अन्दर शक्ति रूप में
काली औ दुर्गा भी बसती है.
हुंकार उठी नारी तो ये
भूमंडल भी डोलेगा
नारी में है शक्ति - क्षमा
पुरुषार्थ भी ये बोलेगा.
इसीलिए -
बस सावधान रहना
अब तुम सावधान रहना .

3 comments:

अनामिका की सदायें ...... 9/22/2009 7:11 PM  

संगीता जी...
बहुत कटु सत्य...जिसे पुरुष समाज मान कर भी नहीं मान सकता...ये उसका अहेंकार ही है जो इतनी सी बात उसका मन स्वीकार नहीं करता...
बहुत अच्छी रचना...बधाई.

दिगम्बर नासवा 9/23/2009 9:12 AM  

kadva saty है .......... आपकी रचना में naari मन में chipi shakti को shashakt dhang से लिखा है .......... सुन्दर ..

monali 9/25/2009 10:49 AM  

Alag dhang aur behad khubsoorati se aapne bata diya hai ki hum samajhte hain naari ko vandniya kehne ki wejeh...

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