मन का रथ
>> Friday, September 25, 2009
मन के रथ पर
सवार हो जाती हैं
मेरी भावनाएं
और एहसास के घोडे
हो जाते हैं तैयार
ख्वाहिशों की चाबुक
देखने भर से ही
दौड़ पड़ते हैं सरपट
सोच की पवन से
लग जाती है होड़
और रथ पर बैठी
भावनाएं
खाती हैं हिचकोले ।
दिखते हैं असीम दृश्य -
कहीं कोई कली है
तो कहीं वल्लरी है
कहीं हरियाली है
तो कहीं सूखी क्यारी है।
कहीं आभाव हैं
तो कहीं खुश-हाली है
कहीं चहकते परिंदे हैं
तो कहीं मायूस बन्दे हैं
दिखता है ज़िन्दगी का
विरोधाभास
यही ज़िन्दगी है
ऐसा होता है आभास ।
जब मंद होती है पवन
और घोडे भी
जाते हैं थक
तो हिचकोले खाती
भावनाएं भी
थम जाती हैं
दृश्य भी सारे
हो जाते हैं अदृश्य
और रूक जाता है
मन का रथ।
8 comments:
मन के रथ पर
एहसास के घोडे
ख्वाहिशों की चाबुक
थक कर भी यह चलायमान रहता है......
बहुत अलग-सी कल्पना....
जिंदगी का सही फलसफा.
बढ़िया भावों की कविता.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cngupta.blogspot.com
मन के रथ पर
एहसास के घोडे
ख्वाहिशों की चाबुक
waah kya baat ...........aapki rachanaaye man ke moulik bhaw se bahre hote hai...........behad khubsoorat
bahut pyaree kavita .
aapke mann ka rath aise hi ehsaas ke ghodo par daudta rahe ......http/jyotishkishore.blogspot.com
संगीता जी
जिन्गदी के विरोधाभासों से निकलता आपका मन का रथ हमें भी साथ ले उडा था. जैसे जैसे नज़ारे apke ehsaas के ghodo ने dikhaye वो सब आपके साथ hamne भी dekhe..ghane bhawnao के janglo se guzerte huai aur aseem drishye dekhte huai..hamari bhawnaye bhi thaki aur socho ki pawan ke sath sath man ka rath bhi ruk gaya...waaaaaaaaaah kya khoob alankaro se shobhit kiya hai aapne apni rachna ko...kaabile tareef hai...
बहुत ही विस्तृत है आपका कल्पना संसार ........... नए प्रयोग हैं इस रचना में ...... laajwaab लिखा है .....
sundar ati sundar
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