भाषा
>> Monday, September 14, 2009
जब भी
मैं देखती हूँ
मूक प्राणियों की
आँखों में
तो उनकी
आँखों की
चमक के साथ
एक भाषा
उभर कर आती है
जिसमें शब्द नहीं होते
बस होता है प्यार ।
काश -इंसान भी
केवल
इसी भाषा को जानता ,
समझता सोचता
और जीता
यदि ऐसा होता तो
उसकी भाषा में
नफरत जैसे शब्द
नहीं होते....
6 comments:
लाजवाब और खूबसूरत लिखा है .......हिंदी दिवस पर bhashaa का सही gyan dikhlatio shashakt rachna है .........
काश !
बिल्कुल ही सही कहा आपने ........आज सिर्फ और सिर्फ प्यार की भाषा की जरुरत है ..........बहुत ही सुन्दर
काश -इंसान भी
केवल
इसी भाषा को जानता ,
ुसमझता सोचता
और जीता
यदि ऐसा होता तो
उसकी भाषा में
नफरत जैसे शब्द
नहीं होते....
आदरणीया संगीता जी,
बहुत ही सार्थक बात कही आपने इस कविता में।
पूनम
खूबसूरत सोच की खूबसूरत प्रस्तुति......
sundar hamesha ki tarah
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