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निर्मल धारा

>> Friday, September 4, 2009

मन की अगन को
बढा देती हैं
काम , क्रोध,
मोह , लोभ
की आहुतियाँ .

बढ़ाना है
गर इसको
तो
बहानी होगी
प्रेम की निर्मल धारा .

बढाने के दो अर्थ हैं --
१--- अधिक करना
२-- बुझाना

2 comments:

रश्मि प्रभा... 9/04/2009 2:08 PM  

bahut hi badhiyaa...bahut aasan shabd me samjhaya

दिगम्बर नासवा 9/04/2009 2:10 PM  

BAHOOT HI SAARTHAK LIKHA HAI .... NIRMAL DHAARA KE HI MAN NIRMAL HOGA... LAJAWAAB

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