गुलमोहर
>> Sunday, September 27, 2009
याद है तुम्हें ?
एक दिन
अचानक आ कर
खड़े हो गए थे
मेरे सामने तुम
और पूछा था तुमने
कि - तुम्हें
गुलमोहर के फूल
पसंद हैं ?
तुम्हारा प्रश्न सुन
मैं स्वयं
पूरी की पूरी
प्रश्नचिह्न बन गयी थी ।
न गुलाब , न कमल
न मोगरा , न रजनीगंधा ।
पूछा भी तो क्या
गुलमोहर?
आँखों में तैरते
मेरे प्रश्न को
शायद तुमने
पढ़ लिया था
और मेरा हाथ पकड़
लगभग खींचते हुए से
ले गए थे
निकट के पार्क में ।
जहाँ बहुत से
गुलमोहर के पेड़ थे।
पेड़ फूलों से लदे थे
और वो फूल
ऐसे लग रहे थे मानो
नवब्याहता के
दहकते रुखसार हों ।
तुमने मुझे
बिठा दिया था
एक बेंच पर
जिसके नीचे भी
गुलमोहर के फूल
ऐसे बिछे हुए थे
मानो कि सुर्ख गलीचा हो।
मेरी तरफ देख
तुमने पूछा था
कि
कभी गुलमोहर का फूल
खाया है ?
मैं एकदम से
अचकचा गयी थी
और तुमने
पढ़ ली थी
मेरे चेहरे की भाषा ।
तुमने उचक कर
तोड़ लिया था
एक फूल
और उसकी
एक पंखुरी तोड़
थमा दी थी मुझे ।
और बाकी का फूल
तुम खा गए थे कचा-कच ।
मुस्कुरा कर
कहा था तुमने
कि - खा कर देखो ।
ना जाने क्या था
तुम्हारी आँखों में
कि
मैंने रख ली थी
मुंह में वो पंखुरी।
आज भी जब
आती है
तुम्हारी याद
तो
जीव्हा पर आ जाता है
खट्टा - मीठा सा
गुलमोहर का स्वाद।
10 comments:
meethee yado bharee rachana dil ko choo gai
आज भी जब
आती है
तुम्हारी याद
तो
जीव्हा पर आ जाता है
खट्टा - मीठा सा
गुलमोहर का स्वाद।
आदरणीया संगीता जी ,
बहुत खूबसूरती से अपने यादों को संजोया है .प्रकृति और प्रेम को लेकर लिखी गयी बढ़िया कविता .विजयादशमी की हार्दिक बधाई
पूनम
बहूत सी बार कोई चीज जुड़ जाती किसी बात से जो हमेशा दिल में छाए रहती है ......... आपकी रचना ने भी गुलमोहर को थाम रखा है ........ विजयदशमी की शुभ कामनाएं ..........
wah di wah...bahut pyaari rachna or pic. bhi ekdam mast lagai hai aapne.
gulmohar.....pyaar ka prateek hota hai
गुलमोहर का इतना तगड़ा विज्ञापन!!!!!!!
गुलमोहर से कोई कान्ट्रेक्ट साइन किया है??????????और कितने में??????????
खैर ये तो रही मजाक की बात.
रचना बहुत ही सुन्दर, ऊपर हरे पत्ते और उसके ऊपर लाल-लाल फूल ही फूल.
मौसम में नीचे गिरे फूल तो सचमुच कालीन माफिक ही तो बिछे रहते हैं............
फूल का स्वाद तो आपने बताया खट्टा-मीठा. नया प्रयोग, पर मैंने कभी नहीं आजमाया..............
सुन्दर रचना पर हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
संगीता जी,
यादे वैसे तो अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं रखती जब तक की इंसान अपनी भावनाओ से उसे अपने दिल की गमले में पोषण न दे..आपकी भावनाओ ने भी बीती यादो को भरपूर पोषण दिया है जिस से ये रचना एक बहुत ही खूबसूरत याद और ताजगी से लबालब है..कुछ यादो ने हमें भी घेर लिया है...इन्ही सुखद यादो के साथ बधाई देती हुई विदा लेती हु..
यादे वैसे तो अपने आप में कोई अस्तित्व नहीं रखती जब तक की इंसान अपनी भावनाओ से उसे अपने दिल के गमले में उन्हें पोषण न दे..आपकी भावनाओ ने भी बीती यादो को भरपूर पोषण दिया है जिस से ये रचना एक बहुत ही खूबसूरत याद और ताजगी से लबालब है..कुछ यादो ने हमें भी घेर लिया है...इन्ही सुखद यादो के साथ इस रचना की सफलता पर बधाई देती हु.. !
बहुत सुन्दर संगीता जी ...
गुलमोहर की पंखुरी का स्वाद मीठी याद बन कर रहा...
और निम्बोली का स्वाद शायद कुछ रिश्तों की कड़वाहट लिए था!!!!
अच्छा लगा पुरानी रचना पढ़ना.....
धीरे धीरे सभी पढ़ती हूँ अब...
सादर.
प्रेम और गुलमोहर
दग्ध हृदय पर शीतलता
का लेप कर
अनुभूतियों की
सरस स्मृतियां दे जाती हैं।
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अति भावपूर्ण खूबसूरत रचना दी।
सादर।
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