ख्वाहिशों के पंख
>> Tuesday, September 22, 2009
मैंने
अपने ख़्वाबों की तितली के
पंखों में भर दी थीं
सारी रंगीन ख्वाहिशें
और सोचा कि
बंद कर लूँ
इस तितली को
अपनी मुट्ठी में ।
पर वो उड़ कर
कभी इधर और
कभी उधर
बैठ जाती है ।
मैं जब भागती हूँ
उसके पीछे
तो वो हाथ नहीं आती
बस दूर से
मुस्कुराती है ।
एक दिन अचानक
आ बैठी मेरी हथेली पर
और मुझसे पूछा
कि तुम मेरे पीछे
क्यों भागती हो?
मुझे
क्यों पकड़ना चाहती हो?
गर तुमने मुझे
पकड़ लिया
तो तुम्हारी
रंगीन चाहतें
मर जाएँगी
और ख्वाब ख्वाब न रह
हकीकत बन जायेंगे
मैं उसकी बात सुन
देर तक सोचती रह गयी
और वो
मेरी ख्वाहिशों के
नए रंग ले
फिर से उड़ गयी
17 comments:
ek nayee komalata hai aap kee kavitaon men aaj kal titlee jaisee har rachana amar kah raheen hai aaj kal bahut khoon
तितली कहीं जाये,ख़्वाबों के ,ख्वाहिशों के जज़्बात तो आपके हैं
pyaree rachana .
pyaree rachana .
Lovely and sweet poem! Life is best lived in dreams.
बहुत ही सुन्दर एहसास से रंगी है आपकी कविता ........ सच में ख्वाहिशों को पा लेने के बाद जीवन से उमंग, उसके रंग निकल जाते हैं ......... उनकी तो बस उड़ान होनी चाहिए ....... और हमारी कोशिश ....... मन को छूती है आपकी रचना ..... लाजवाब ...
दी! बहुत कोमल एहसास लिए है ये कविता बहुत ही सुंदर .ऐसे ही सपनो में रंग भरते रहिये.
बेहद नाजुक और कोमल भाव/पढने के बाद ख्वाहिशे रंगीन सी होने लगी/बहुत बहुत सुन्दर!
kisi ne kaha hai ki..
tamanna ne zindgi ke daman mein sar rakhkar kaha ki mai kab poori hungi ,to zindagi ne muskrakar kaha ki ..........jo poori ho jaye vo tamanna hi kya.
संगीता जी..
कविता इस बार आपकी अन्य रचनाओ से हटकर है..एक ताजगी का सा एहसास हो रहा है सोचो में इस बार आपकी इस रचना में..
एक जगह jaha aapne likha hai..ki gar tumne mujhe pakad liya to tumhari रंगीन चाहते मर जाएँगी..
इसकी जगह ये हो सकता था...गर तुमने मुझे पकड़ लिया तो मेरे रंगीन पंखो में समाई सारी तुम्हारी रंगीन खवाहिशे तुम्हारे हाथो पर बिखर जाएँगी..और ये सरे खाब बे-रंग हो जायेंगे..
बहुत अच्छी कविता..बधाई..
संगीता जी..
कविता इस बार आपकी अन्य रचनाओ से हटकर है..एक ताजगी का सा एहसास हो रहा है सोचो में इस बार आपकी इस रचना में..
एक जगह jaha aapne likha hai..ki gar tumne mujhe pakad liya to tumhari रंगीन चाहते मर जाएँगी..
इसकी जगह ये हो सकता था...गर तुमने मुझे पकड़ लिया तो मेरे रंगीन पंखो में समाई सारी तुम्हारी रंगीन खवाहिशे तुम्हारे हाथो पर बिखर जाएँगी..और ये सरे खाब बे-रंग हो जायेंगे..
बहुत अच्छी कविता..बधाई..
अहसास की अच्छी और भावभीनी प्रस्तुति.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
निपुण पाण्डेय said...
वाह!
कितनी खूबसूरत बात कह दी आपने इन पंक्तियों में !!!
6 December 2009 19:57
बेहतरीन...
सादर प्रणाम
और ख्वाब ख्वाब न रह
हकीकत बन जायेंगे
अब असमंजस ये है कि "ख्वाब को ख्वाब रहने दें या हकीकत बनाने दे"
वाह दी,मन के कोमल भाव लिए बेहद प्यारी रचना,सादर नमन आपको 🙏
बहुत ही सुंदर लिखा दी सच ख्वाहिशें तितली सी ऐसे ही उड़ती हैं।
गहनता लिए सराहनीय सृजन।
क्यों पकड़ना चाहती हो?
गर तुमने मुझे
पकड़ लिया
तो तुम्हारी
रंगीन चाहतें
मर जाएँगी
ख्वाहिशों का उड़ान देना...माध्यम खुद नहीं तो तितली ही सही...
जहाँ से मिले जैसे भी मिले ख्वाहिशों को उड़ान मिलनी ही ज
चाहिए...
वाह!!!
अद्भुत ... लाजवाब।
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