ज़रूरत नही है
>> Monday, September 1, 2008
प्यार के वर्णो को कभी जाना नही
प्यार कि परिभाषा को भी पहचाना नही
इसीलिए मुझे -
प्यार पढ़ने की ज़रूरत नही है।
ना मुझे मुहब्बत का मालूम है
और ना ही इश्क़ का पता है
इसीलिए मुझे -
मुहब्बत जताने की ज़रूरत नही है ।
दिल की धड़कने धड़कती हैं बस
उन्होने मुझसे कभी कुछ कहा ही नही
इसीलिए मुझे -
धड़कनो को भी सुनने की ज़रूरत नही है ।
अगले जन्म के ख्वाबों में रह कर भी
शायद रूह बदलती नही हैं
इसीलिए --
पुन: जन्म की भी कोई अहमियत नही है ।
चाहूं किसी को या ना चाहूं मैं
ये मेरी किस्मत ही सही
पर कोई मुझे चाहे-
इसकी मुझे कोई आरज़ू नही है ।
हक़ीक़त में जीती हूँ लेकिन फिर भी
ख्वाबों की दुनिया में खुश हूँ बहुत मैं
पर इन ख्वाबों में --
आने की किसी को इजाज़त नही है ।
गुम हैं सारे रास्ते जो मुझ तक आते हैं
कोई रास्ता भी मुझ तक पहुँचता नही है
इसीलिए इन रास्तों पर -
कदम बढ़ाने की किसी को ज़रूरत नही है ।
पत्थर हूँ मैं , ये मैं जानती हूँ
और मुझे पिघलना भी आता नही है
इसीलिए-
इस पत्थर को तराशने की ज़रूरत नही है ।
अब तलक मैने यूँ ही ज़िंदगी जी ली है
और अब जो लम्हे बाकी हैं
इस बची ज़िंदगी में -
कुछ भी पाने की ख्वाहिश नही है.
5 comments:
Sangeeta ji aapki racha padh k likhne wale ki mano vivashta prakat ho rahi hai..kahi.n kahin us vivash insan ki doordarshita b dikhayi deti hai..jb vo puneh janam ki baat karta hai..aapka ka kaalpnik insaan hakikat me jeete huai bhi khaabo ki duniya me khushi mehsoos karta hai isi se pata chalta hai..vo chaahta sb kuch hai, use jarurat to hai..magar na jane kon si mazboori use ye sab bolne per mazboor karti hai..waise bhi kaha jata hai..ki jis cheez ko insaan sab se jyada chaahta hai agar vo na mile to avsaad me, nirash me bher kar u hi kehta hai..MUJHE JAROORAT NAHI...
nice sharing sangeeta ji..aage bhi aapki rachnao ka intzaar me..
अत्यंत गंभीर एवं सैद्धांतिक कृति ...
बधाई .
हक़ीक़त में जीती हूँ लेकिन फिर भी
ख्वाबों की दुनिया में खुश हूँ बहुत मैं
पर इन ख्वाबों में --
आने की किसी को इजाज़त नही है ।
एकदम अलग तरह की कविता है यह.
बहुत अच्छी लगी.
सादर
हक़ीक़त में जीती हूँ लेकिन फिर भी
ख्वाबों की दुनिया में खुश हूँ बहुत मैं
पर इन ख्वाबों में --
आने की किसी को इजाज़त नही है ।
वाह !!! बहुत ख़ूब !!!
अब तलक मैने यूँ ही ज़िंदगी जी ली है
और अब जो लम्हे बाकी हैं
इस बची ज़िंदगी में -
कुछ भी पाने की ख्वाहिश नही है.
इस तरह की तटस्थता संवेदनशील हृदय का आवरण है अभिलाषा या अपेक्षा से परे...सुख एवं दुख से परे....जीवन कुछ आसान हो जाता हैऔर मन कुछ मजबूत...
सुन्दर सीख देती लाजवाब कृति
वाह!!!
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