बंद दरवाजा
>> Monday, September 8, 2008
इधर और उधर के बीच
बंद दरवाजा है /
दरवाज़े पर /
हर क्षण
हल्की - हल्की /
थपथपाहट का एहसास /
इधर ज़िन्दगी की साँसे
हल्की या बोझिल ।
बंद दरवाज़े के इधर
तुम हर पल अपना लो
हर क्षण /
अपना बना लो ।
न जाने कब /
हवा के झोंके से
यह दरवाजा खुल जाए ।
और उधर अनंत में ,
देखते हुए हम /
केवल किवाड़ के पल्ले
हिलते देखते रह जाएँ.
7 comments:
न जाने कब /
हवा के झोंके से
यह दरवाजा खुल जाए ।
और उधर अनंत में ,
देखते हुए हम /
केवल किवाड़ के पल्ले
हिलते देखते रह जाएँ.
ISS E BEHATAR ISHARA NAHEE HO SAKTA KOYEE BHEE KAMAL
ANIL
"न जाने कब /
हवा के झोंके से
यह दरवाजा खुल जाए ।
और उधर अनंत में ,
देखते हुए हम /
केवल किवाड़ के पल्ले
हिलते देखते रह जाएँ. "
गुजरते लम्हों को थाम लेने की खूबसूरत जुंबिश है आपकी लेखनी में ....
दरवाज़े पर
हर क्षण
हल्की - हल्की
थपथपाहट का एहसास
इधर ज़िन्दगी की साँसे
हल्की या बोझिल
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संगीता जी, आपने इतने कम शब्दो मे ही जीन्दगी का सच उडेल कर रख दिया यहाँ| इन शब्दो को मै महशुश कर पा रहा हुँ... उस थपथपाहट को भी, उस अनन्त को भी...ना जाने राजकपुर पे फिल्माया मुकेश का वो गाना भी याद आ रहा है.. ना हाथी है ना घोडा है, जहाँ पैदल ही जाना है...
इतनी गहरी बात इतने धीमे से कह जाने के लिये बहुत बहुत बधाई|
एक खामोशी में विलीन होना
उससे पहले का रोमांच......अति सुन्दर
hmmmmmm bahut gehre ehsaas zindgi aur maut ka mano milan hone ko be-karar...
rachna ko kitne khoobsurat ehsaas deker aapne apni baat kitne sankshipt roop me keh di..kaabile tareef...
bahut gehri soch...poorn roop se mano khud ko vileen ho jane ki ek maun sweekrti..nice
itni gahrii baat ko halke se kah diya aapne..sundar ati sundar
sangeeta ji namaskaar
band dfarwaja men ye panktiyan achchhi lagi...
इधर और उधर के बीच
बंद दरवाजा है /
दरवाज़े पर /
हर क्षण
हल्की - हल्की /
थपथपाहट का एहसास /
इधर ज़िन्दगी की साँसे
हल्की या बोझिल ।
achchha hai
aapka
vijay tiwari
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