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ग़ज़ल

>> Saturday, September 20, 2008

इस कदर पीड़ा मिली कि
अश्क मोती बन गए
रुखसार पर ढलने से पहले
पलकों पर थम गए।

चाहतें जो भी मिलीं
वो अधूरी आस थी
तेरी चाहत के लिए
हम हद से गुज़र गए।

तोहफा तेरी वफाई का
रखा है दिल के करीब
तेरी वफ़ा कि आंच से
ये आंसू भी पिघल गए ।

आज जैसी ख्वाहिशों को
तरसती थी साल दर साल
इन ख्वाहिशों के लिए
वक्त के कारवां गुज़र गए ।

रात भर बैठा किए
और बातें करते रहे
तुम ग़ज़ल कहते गए
और हम ग़ज़ल हो गए .

1 comments:

taanya 9/22/2008 4:56 PM  

sageeta ji zidgi gam ka sagar bhi hai..iske us paar jana padega..ye hi bol aa gaye zuba per apko rev.dete dete..kuch haseen pal hi hamari zindgi me aise hote hai..jinki yaado me kho kar ham apne ird-gird k saare gamo ko seh lete hai..bhool bhi pate hai..aur has bhi paate hai..so...keep smilining jis haal me bhi raho..haste raho...shayed jhooti hansi hi kahi.n koi kamaal kar jaye..aur such me hoth asli hasi has le...

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