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आस्तित्व

>> Monday, September 15, 2008

जब आया पैगाम मेरी मौत का मेरे पास
कहा मैंने ठहर अभी उसका ख़त आएगा
गर ठहर तू जायेगी कुछ देर और
तो क्या धरा पर भूचाल आ जायेगा ।

हंस कर बोली यूँ मुझसे मौत तब
ज़िन्दगी हो गई है अब तेरी पूरी
चाह तेरी निकली नही अब तलक
भटक रही है क्यों तू लिए आशा अधूरी ।

छोड़ दे ये अधूरी आस तू
मत भटक अब इस संसार में
ज़िन्दगी के क्षण तुझे जितने मिले
बिता दिए तुने उन्हें बस प्यार में ।

आई थी जब अकेली इस संसार में
कोई भी बंधन तुझसे नही जुडा था
बंध गई तू इन सांसारिक बंधनों से
कि तुझ पर झूठा आवरण एक पड़ा हुआ था ।

जब असलियत " मैं " आ गई सामने तेरे
अब भी तुझे एहसास नही होता है
काट दे इन सांसारिक बंधनों को
कि इंसान का बस यही आस्तित्व होता है.

1 comments:

taanya 9/16/2008 10:09 AM  

aaaah sangeeta ji insaan zindgi ki ek mrigtrishna me puri zindgi nikal deta hai aur ant samay tak uski ye trishna kuch paa lene ki icchha khatam nahi hoti aur isi me aasakt ho ker vo is maut k kadve such ko face nahi karna chaahta..

Baut sunder rachna aapne paish ki..

ati sunder..

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