खाली हाथ
>> Monday, September 15, 2008
खुली आँख से
बस एक शून्य
नज़र आता है ।
दम तोड़ता श्वास
लरजता कांपता सा उच्छ्वास
नज़र नही आता
एक भी विश्वास ।
ज़िन्दगी जैसे ,
बिखर सी गई है
वक्त है कि
मेहरबान हो कर भी
मेहरबान नही है
बिखरी चाहतें भी
शायद यहीं कहीं हैं
सब कुछ पास रहते हुए भी
कुछ भी पास नही है ।
इसी को जीना कहते हैं
शायद ज़िन्दगी यही है ।
बंद आंखों में बस
एक सपना है
बस -
वही केवल अपना है
सपने में सारी चाहतें
मैंने पा ली हैं
हकीकत में मेरा
पूरा का पूरा हाथ खाली है .
1 comments:
SANGEETA JI kitni aashaaye mano aapke is ucchshwaas me dam tod gayi ho..
Sameitna to padega na is bikhri zindgi ko aage chalaane k liye..waqt ki meherbani ko bhi samajhna padega..varna zindgi, zindgi na lak k ek saza lagne lagegi..
haa.n kabi kabi aise hi mod per zindgi aa jati hai jb ham kehte hai ki kya isi ko jeena kehte hai??
hmmm kai baar band aanko me jo sukh pa lete ai vo ek bherpoor sakoon de jate hai..ki mano bherpoorr zindgi ji li ho..
sangeeta ji bahut acchhi rachna..seedhe dil me uterti huii...
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