तासीर नीम की
>> Thursday, September 11, 2008
मैंने  एक  दिन
नीम  के  पेड़  से  पूछा
कि   भाई  -
तुम  कड़वे   क्यों  हो  ?
उसने  मेरी  तरफ़ 
आश्चर्य    से  देखा
मैं  उसकी  ओर    ही 
निहार  रही  थी
उसके  उत्तर  के  लिए
मैं  प्रतीक्षारत   थी ।
मुझे  लगा कि 
उसके   सारे  अस्तित्व  में
एक  व्याकुलता  भर गई है ।
उसकी  पत्ती - पत्ती  जैसे
व्यथित  हो  गई  है ।
आकुल  हो  तब  वह  बोला -
हाँ ! मैं  कड़वा    हूँ।
लेकिन  तब ही तो  तुम
दूसरे  तत्वों  में
मीठे  का  अहसास
कर  पाते  हो ।
मैं  कितने  रोगों की दवा हूँ
तभी  तो  तुम जी   पाते  हो ।
ज़रा तुम  मेरे फूल  -फल और   पत्ते  खाओ
और  फिर  तुम  कहीं  का भी  पानी  लाओ
और  उसे  पी  कर  बताओ
  कि वो  पानी  कैसा  है  ?
शर्त  के  साथ  कहता  हूँ  कि
वो  तुमको  मीठा  ही  लगेगा ।
तो    हे   मेरे  प्रश्नकर्ता !
मैं  ख़ुद  को  कड़वा   रखता   हूँ 
लेकिन  दूसरे  की  तासीर  
मीठी  कर  देता  हूँ।
यह  सुन  मैं  सोचती  हूँ 
कि   शायद    सच   भी 
इसीलिए   कड़वा  होता है.
   





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