परदा
>> Sunday, September 14, 2008
हम सभ्य कहाते हैं ,
और सभ्य समाज में रहते हैं
सभ्यता दिखाने के लिए ही
अपने छोटे -बड़े घरों को
परदे से ढके रखते हैं ।
हर खिड़की और दरवाज़े पर
परदा टंगा होता है
किसी को भी बिना इजाज़त
अन्दर आना मना होता है ।
हम अपने घर की बातें छिपाते हैं
और इसीलिए शायद परदा लगते हैं
जिनके घर में गर परदे नही होते
उन्हें हीन दृष्टि से देखते हैं
सोचते हैं कि कैसे बेशर्म हैं ये लोग
कि ये परदा भी नही करते हैं।
पर मैं जानती हूँ
कि ये लोग
जो दर औ दीवार पर
परदा लगाते हैं
वो परदे का अर्थ ही नही जानते हैं।
गर सच ही जानना चाहते हो
कि परदा क्या है -
तो चलो मेरे साथ
गाँव के उस सुदूर
आदिवासी इलाके में
जहाँ कहीं कोई परदा नही होता
एक छोटा सा चीथडा ही
स्त्री का अधोवस्त्र कहाता है
बाकी बदन
निर्वसन होता है ।
उन्हें उसमें कोई शर्म नही आती
क्यों कि यही वहाँ का चलन होता है
वहां सब एक सी ज़िन्दगी जीते हैं
मात्र चावल का मांड पीते हैं ।
कच्चे घरों में दरवाज़े नही होते
पर टाट के टुकड़े लगा
घर की इज्ज़त ढकते हैं।
असल में यही उनका परदा है
और झुकी पलक उनकी शर्म है
सोचती हूँ कभी कभी कि -
कैसी विसंगति है हमारे समाज में
और कैसा हमारा धर्म है ..
4 comments:
सच पूछा जाये तो झुकी पलकों में ही हया होती है
परदे की दुहाई क्या !
बहुत सच्ची तस्वीर,सही आकलन,सही परिवेश का ज़िक्र किया आपने
कलम की जय हो
bahut bahut dil ko choone walee baat kee hai parde ka kitna achha swaroop dikhaya hai
Anil
grameen aadivasiyon ka sajeev chitran kar aapne ye sabit kar diya ki sahity samaaj ka darp[an hota hai, kaash is darpan ko hamaare rajneta dekh pate , to shaayad aaj bhaarat ki tashveer hi kuchh hoti, shayad bhagwaan ganesh hi inhen sadbuddhi denge,,
achchha likha hai. ek vaky men aapne insaniyat ka sabk sikha diya , bas samajhne ki jaroorat hai :- झुकी पलक उनकी शर्म है. meri hardik badhai sweekaren
bhaut sachhi tasveer bhaut ghari bhavna
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